Friday, December 31, 2010

हरयाणा का सामाजिक सांस्कृतिक परिद्रश्य

हरयाणा का सामाजिक सांस्कृतिक परिद्रश्य

रणबीर सिंह दहिया

हरयाणा एक कृषि प्रधान प्रदेश के रूप में जाना जाता है |राज्य के समृद्ध और सुरक्षा के माहौल में यहाँ के किसान और मजदूर , महिला और पुरुष ने अपने खून पसीने की कमाई से नई तकनीकों , नए उपकरणों , नए खाद बीजों व पानी का भरपूर इस्तेमाल करके खेती की पैदावार को एक हद तक बढाया , जिसके चलते हरयाणा के एक तबके में सम्पन्नता आई मगर हरयाणवी समाज का बड़ा हिस्सा इसके वांछित फल नहीं प्राप्त कर सका |

यह एक सच्चाई है कि हरयाणा के आर्थिक विकास के मुकाबले में सामाजिक विकास बहुत पिछड़ा रहा है | ऐसा क्यों हुआ ? यह एक गंभीर सवाल है और अलग से एक गंभीर बहस कि मांग करता है |हरयाणा के सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र पर शुरू से ही इन्ही संपन्न तबकों का गलबा रहा है |यहाँ के काफी लोग फ़ौज में गए और आज भी हैं मगर उनका हरयाणा में क्या योगदान रहा इसपर ज्यादा ध्यान नहीं गया है | इसी प्रकार देश के विभाजन के वक्त जो तबके हरयाणा में आकर बसे उन्होंने हरयाणा कि दरिद्र संस्कृति को कैसे प्रभावित किया ; इस पर भी गंभीरता से सोचा जाना शायद बाकी है | क्या हरयाणा की संस्कृति महज रोहतक, जींद व सोनेपत जिलों कि संस्कृति है? क्या हरयाणवी डायलैक्ट एक भाषा का रूप ले ले सकता है ? महिला विरोधी, दलित विरोधी तथा प्रगति विरोधी तत्वों को यदि हरयाणवी संस्कृति से बाहर कर दिया जाये तो हरयाणवी संस्कृति में स्वस्थ पक्ष क्या बचता है ? इस पर समीक्षात्मक रुख अपना कर इसे विश्लेषित करने कि आवश्यकता है | क्या पिछले दस पन्दरा सालों में और ज्यादा चिंताजनक पहलू हरयाणा के सामाजिक सांस्कृतिक माहौल में शामिल नहीं हुए हैं ? व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं और पुरुषों ने बहुत सारी सफलताएँ हांसिल की हैं | समाज के तौर पर १८५७ की आजादी की पहली जंग में सभी वर्गों ,सभी मजहबों व सभी जातियों के महिला पुरुषों का सराहनीय योगदान रहा है | इसका असली इतिहास भी कम लोगों तक पहुँच सका है |

हमारे हरयाणा के गाँव में पहले भी और कमोबेश आज भी गाँव की संस्कृति , गाँव की परंपरा , गाँव की


इज्जत व शान के नाम पर बहुत छल प्रपंच रचे गए हैं और वंचितों, दलितों व महिलाओं के साथ न्याय कि बजाय बहुत ही अन्याय पूर्ण व्यवहार किये जाते रहे हैं |

उदाहरण के लिए हरयाणा के गाँव में एक पुराना तथाकथित भाईचारे व सामूहिकता का हिमायती रिवाज रहा है कि जब भी तालाब (जोहड़) कि खुदाई का काम होता तो पूरा गाँव मिलकर इसको करता था | रिवाज यह रहा है कि गाँव की हर देहल से एक आदमी तालाब कि खुदाई के लिए जायेगा | पहले हरयाणा के गावों क़ी जीविका पशुओं पर आधारित ज्यादा रही है |गाँव के कुछ घरों के पास १०० से अधिक पशु होते थे | इन पशुओं का जीवन गाँव के तालाब के साथ अभिन्न रूप से जुदा होता था | गाँव क़ी बड़ी आबादी के पास न ज़मीन होती थी न पशु होते थे | अब ऐसे हालत में एक देहल पर तो सौ से ज्यादा पशु है वह भी अपनी देहल से एक आदमी खुदाई के लिए भेजता था और बिना ज़मीन व पशु वाला भी अपनी देहल से एक आदमी भेजता था | वाह कितनी गौरवशाली और न्यायपूर्ण परंपरा थी हमारी? यह तो महज एक उदाहरण है परंपरा में गुंथे अन्याय को न्याय के रूप में पेश करने का |

महिलाओं के प्रति असमानता व अन्याय पर आधारित हमारे रीति रिवाज , हमारे गीत, चुटकले व हमारी परम्पराएँ आज भी मौजूद हैं | इनमें मौजूद दुभांत को देख पाने क़ी दृष्टि अभी विकसित होना बाकी है | लड़का पैदा होने पर लडडू बाँटना मगर लड़की के पैदा होने पर मातम मनाना , लड़की होने पर जच्चा को एक धडी घी और लड़का होने पर दो धडी घी देना, लड़के क़ी छठ मनाना, लड़के का नाम करण संस्कार करना, शमशान घाट में औरत को जाने क़ी मनाही , घूँघट करना , यहाँ तक कि गाँव कि चौपाल से घूँघट करना आदि बहुत से रिवाज हैं जो असमानता व अन्याय पर टिके हुए हैं |सामंती पिछड़ेपन व सरमायेदारी बाजार के कुप्रभावों के चलते महिला पुरुष अनुपात चिंताजनक स्तर तक चला गया है | मगर पढ़े लिखे हरयाणवी भी इनका निर्वाह करके बहुत फखर महसूस करते हैं | यह केवल महिलाओं की संख्या कम होने का मामला नहीं है बल्कि सभ्य समाज में इंसानी मूल्यों की गिरावट और पाशविकता को दर्शाता है | हरयाणा में पिछले कुछ सालों से यौन अपराध , दूसरे राज्यों से महिलाओं को खरीद के लाना और उनका यौन शोषण तथा बाल विवाह आदि का चलन बढ़ रहा है | सती, बाल विवाह अनमेल विवाह के विरोध में यहाँ बड़ा सार्थक आन्दोलन नहीं चला | स्त्री शिक्षा पर बाल रहा मगर को एजुकेसन का विरोध किया गया , स्त्रियों कि सीमित सामाजिक भूमिका की भी हरयाणा में अनदेखी की गयी | उसको अपने पीहर की संपत्ति में से कुछ नहीं दिया जा रहा जबकि इसमें उसका कानूनी हक़ है | चुन्नी उढ़ा कर शादी करके ले जाने की बात चली है | दलाली, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से पैसा कमाने की बढती प्रवृति चारों तरफ देखी जा सकती है | यहाँ समाज के बड़े हिस्से में अन्धविश्वास , भाग्यवाद , छुआछूत , पुनर्जन्मवाद , मूर्तिपूजा , परलोकवाद , पारिवारिक दुश्मनियां , झूठी आन-बाण के मसले, असमानता , पलायनवाद , जिसकी लाठी उसकी भैंस , मूछों के खामखा के सवाल , परिवारवाद ,परजीविता ,तदर्थता आदि सामंती विचारों का गहरा प्रभाव नजर आता है | ये प्रभाव अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोगों में भी कम नहीं हैं | हरयाणा के मध्यमवर्ग का vikas एक अधखबडे मनुष्य के रूप में हुआ |

जारी -----

संघर्ष कथा

संघर्ष कथा
दिसंबर 30 ,2010
सही राम
आँखिन देखी मैं कहता हूँ, सुनी सुनायी झूठ कहाय |
गाम राम की कथा सुनाऊँ , पंचो सुनियो ध्यान लगाय |
हल और बल कुदाली कस्सी , धान बाजरा फसल गिनाय|
भैंस डोलती पूंछ मारती, गैय्या खड़ी खड़ी रम्भाय |
सुबह सवेरे हाली निकलै, गर्मी सर्दी को बिसराय|
सारा दिन वो खटे खेत में , मिटटी संग मिटटी होई जाय |
चाहे धूप जेठ के चलके,चाहे कोहरा दे ठिठुराय |
उसकी धर्म मशक्कत करना, उसको इनकी क्या परवाय|
लेकिन उलटी रीति ये देखो , देऊँ आपका ध्यान दिलाय |
ये दुनिया जो गौरख धंधा , मिहनत कौड़ी हाट लगाय |
हल बैलों वाला भी भूखा , जो खेतों में अन्न उगाय|
मोटे सेठ हड़प कर जाएँ , सारा माल हाथ फैलाय |
रुखा टुकड़ा वे ना पावें, डाकू चिकनी चुपड़ी खाय |
डंगर भूखे मरते मर जाय , भुस्सा उनको मिलता नाय |
जमा फसल देकर बनिए को , कर्जदार फिर भी कहलाय |
ज्यों ज्यों ढलै उमरिया उसकी , त्यों त्यों कर्जा बढ़ता जाय |
यह चक्कर देखो होनी का, वाह फिर भी मरजाद कहाय
घर में बेटी बीस बरस की, कुर्दी की ज्यों बढती जाय |
सेठ साहब का कर्ज न उतरै , लड़की क्योंकर ब्याही जाय |
जो भी देखे लानत भेजै ,वो क्या पडै कुंए में जाय |
बेटी भारी बोझ बाप पर, माँ को औरत रही गरियाय |
पाँच हजार मांगता समधी , उसकी चिठ्ठी पहुंची आय |
लाला उसका अपना बनकर, उंच नीच सब रहा बताय |
दुनिया में मरजाद पालनी, यह मर्दों का धर्म कहाय |
खानदान को दाग लगै ना, बिटिया घर से देओं धकाय |
सारी दुनिया काल चबैना , क्यों फिर पगले तूं पछताय |
जाय कचैड़ी लाला जी संग , उसने दिया अंगूठा लाय |
अब वो नहीं भोमियां कोई , कर मजदूरी पेट चलाय |
छ छ बच्चे कुच्चे सारे , भूखे बिलख बिलख सो जाय |
अगन पेट में धधक रही है, घर का चूल्हा जलता नाय |
खेलन -खावन के दिन आये , सो बच्चे कमगर कहलाय |
हड्डी तोड़ें खून सुखावै , सँझा तक बेगार कराय |
आधी पारदी उजरत देकर , धक्का दें और छुट्टी पाय |
यह अन्याय राम का देखो ,किस किसका दूं नाम गिनाय |
बोटो बोटी नोचें उसकी , लोहू बूँद बूँद पी जाय |
पंचो यह तो एक कहानी , गाम राम की कही सुनाय |
और न जाने कितने दुखड़े , कितने लोग रहे दुःख पाय |
ढांचा यो सारा गड़बड़ है , बुन्गत इसकी समझ न आय |
सब इन्सान बराबर जन्मे , एक पेट दो हाथ कमाय |
एक तो करता ऐश महल में , दर दर दूजा ठोकर खाय |
एक उड़ावै हलवा पूरी, दूजा भूखा मर मर जाय |
यह इंसाफ कहाँ दुनिया में , सोचो पंचो ध्यान लगाय |
एक बना फिरता पंडत है, दूजा रहा चमार कहाय |
एक ही कुदरत एक ही माया ,एक तरह से जन्मे माय |
फिर कोई क्यों ठाकुर बनता , दूजा हरिजन रहा कहाय |
सबरनता का गरब नशीला , त्यौरी उप्पर को चढ़ जाय |
बुलध समझ कै चमड़ी तारै, और फिर उप्पर से गिरयाय |
जिन्दा उसको आग में झोंके , तब तक नशा नहीं थम जाय |
फिर भी उसको गाड्डी मिलती, वो मिटटी में मिलता जाय |
यह कैसा कानून राम का , यह तो नहीं इंसाफ कहाय |
बेटी , बहू,माय हरिजन की, सरेआम इज्जत लुट जाय |
छुट्टा सांड गाँव में डोलै, कोई नहीं सामने आय |
रात दिनों जो खेत जोतता , वो उसका मजदूर कहाय |
मलिक कोई और भूमि का , आनी ये जागीर बताय|
उसको नहीं पता क्या मिटटी , क्या मिटटी की गंध कहलाय |
वो बैठा है महलों अन्दर , उस तक गंध पहुँचती नॉय |
सौ रूपए के कर्ज बदले , बंधुआ सात पुश्त हों जाय |
ऐसा यह कानून राम का , ज्ञानी गुनियों ज्ञान लगाय |
सर्दी गर्मी पीठ पै झेले ,मलिक उसको रहा जुतियाय |
न्याय धर्म के नाम पै पंचो, माणस दिन दिन पिसता जाय|
मिल मजदूरों के बूते ही, चिमनी धुआं उगलती जाय |
पर एक बात सोचियो पंचो ,वो क्यों अधभूखे रह जाय |
सेठ तिजौरी भर भर गाडै , काले धान को रहा छिपाय |
मजदूरों का खून चूसता , लोहू बूँद बूँद पी जाय |
वो महलों में बैठा लेकिन उसकी पूँजी बढती जाय |
शोषण वो कर रहा मजदूर का , उसकी चर्बी बढती जाय |
वो इन्सान नहीं कोई सीधा , दीखत का वो नरम सुभाय |
आदमखोर जानना उसको, उसका दीं धर्म कोई नॉय |
झूठा उसका पोथी पत्रा, झूठे मंदिर रहा बनाय |
मिल सारी मजदूरों की है ,वो झूठा मलिक कहलाय |
मजदूरों को गली देता, हड़तालों को झूठ बताय |
छंटनी कर कर के वो इनकी , और गुंडों से रहा पिटाय|
उसके हाथ बनैले पंजे , उसको खुनी समझो भाय |
उसकी सारी पुलिस फ़ौज है ,गौरमिंट भी वही बनाय |
वो नहीं देगा बोनुस तुमको , वो नहीं रहा स्कूल खुलाय |
छंटनी कर कर लोगों की , घाटा ही घाटा दिखलाय |
उसकी खातिर मारो भूख से , उसको बात लागती नॉय |
वो चमड़ी का मौत भैंसा ,उसके सींग रहे चिकनाय |
उससे लड़ना चाहो गर तो , एक्का पक्का कर लो भाय |
उसके साथ है सारी ताकत , उसकी एक जानियो नॉय
अपनी ताकत एक जूता लो , एक साथ लेओ हाथ मिलाय |
वो खूंखार बनैला भैसा , उसे खून की गंध सुहाय |
वो रोंदेगा बस्ती को भी ,बच्चों को वो चींथत जाय |
यह संघर्ष कथा उनकी है , सुनियो पंचो ध्यान लगाय
जिनके हाथ हथोडा केवल ,दोनाली से अड़ गया जाय
सदियाँ से जो लुटते आये , और लूटना जिनका धर्म कहाय |
जिनके पसीने को गंगा का ,वे गोली में मोल लगाय |
जिनके बूते दुनिया चलती, दुनिया पै हक़ उनका नाय |
सारे दिन जो खटते पिटते, रोती उन्हें रही तरसाय |
कपडा उनको नहीं मयस्सर , दवा दारू की कौन बताय |
उस मेहनत का मौल है ,छाती में बन्दूक अड़ा य |
राय तुम्हारी क्या है ,पंचो,क्या यह नहीं अन्याय कहलाय |
धर्म की बात तुम्हीं कह देना ,लेकिन कहना ध्यान लगाय |
अन्यायी का पक्ष न लेना , पंचो से यकीन उठ जाय |
खूनखोर नरभक्षी देखा,भेद मुखौटा रहा लगाय |
पूरी कौम के ये दुश्मन हैं , इंका तो बस नफा खुदाय |
मेहनतकश का परोपकार है ,नाफखोर की क्या परवाय |
ऊपर से ये चिकने चुपड़े ,अन्दर कोढ़ रहा गन्धाय |
पूरी कौम को कोढ़ी कर दें ,इनसे पिंड छुडाओ भाय |
ये कलंक पूरी दुनिया पर , इंका नामोंनिशा मिटाय |
अब ये दुनिया है नहीं इनकी ,अब ये और बसालें जाय |
पर इन्सान जहाँ होगा ,इनकी पेश पडेगी नॉय |
पंचो मैंने गलत कहा क्या ,झूठ साँच देना बताय |
जिसने इनको जन्म दिया है, वो पग की जूती कहलाय |
बहन खिलौने की वस्तु है , उनको कोठे दिया बिठाय |
हक़ जीने का नारी मांगे ,उसके सिर को रहे जुतियाय |
इनकी यह मर्दूमी देखो , यह इंका दमखम कहलाय |
मांग करेँ जो हक़ अपने की , उसकी खिल्ली दे उडाय |
उसको झांसे दे दे कर ही अब तक उसको भोगे जाय |
नीलामी की यह वस्तु है , इनके मनकी समझें नॉय |
लेकिन पंचो सुनना तुम भी , एक बात देऊँ बतलाय |
नारी जागी है तो देखो ,अब ये हक़ छोड़ेंगी नॉय |
अब ये इनके पग की जूती , और शो पीस बनेंगी नॉय|
मर्जादों की धमकी देकर , उसको रोक सकोगे नॉय |
यह प्रतिबंध हटाना होगा , इनकी शक्ति लेओ परचाय |
शोर शराब नहीं है केवल , पक्की बात लीजियो लाय |
अब ये नहीं कोई पूजा वस्तु ,धर्म कर्म की नहीं परवाय |
एक बराबर मानव शक्ति ,एक को छोटा दिया बताय |
अब यह चालाकी नहीं होगी , सुनियो सजनो ध्यान लगाय |
शोषित पीड़ित जनता की, जो मैं कथा रहा बतलाय |
इतनी लाम्बी कथा है पंचो ,एक एक चीज सुनोगे नॉय |
ना ये किस्सा तोता मैना , ना राजा -रानी की बात |
शोषित पीड़ित जनता की ही ,मैंने आज बताई बात |
नाले के कीड़े सी दुर्गत ,मानुष छोले की हों जाय |
श्रम शक्ति के दुरूपयोग से ,बेडा कैसे पार लगाय |
मानव श्रम को बिन पहचाने , देश रसातल को हों जाय |
गाँधी उनको कम न आया ,अर्थ शाश्त्र को घुन खाय |
मैं पूछूं नेता लोगों से , पहन जो खद्दर रहे इतराय |
कुर्सी जिंका धर्म हों गयी , जनता पडों कुंए में जाय |
कब तक वो देंगे भाषण ही, कब तक वादों की भरमार |
बहुत दिनों की बात नहीं अब , मेहनतकश हों रहे त्यार |
उनके हाथ दरांती अपनी ,और हथोडा रहे उठाय |
लस्सी और कुदाली उनकी ,हाथ बसूला पहुंचा आय |
तैयारी पूरी है उनकी ,अब वो एक लेंय बनाय |
तब मैं आऊंगा और पूछूं ,अब क्यों छुपे किले में जाय |
कहाँ गयी बन्दूक दुनाली ,क्या तलवार गयी बल खाय |
फ़ौज ,पुलिस सब अपने भाई , वो भी शामिल हों जा आय |
वो दिन होगा सज्जनों अपना , वे जल्दी ही पहुंचे आय |
तब तुम सुनना लोकगीत भी , ढोल मजीरा तभी सुहाय |
सही राम