Tuesday, February 18, 2025

पुण्यतिथि पर विशेष

पुण्यतिथि पर विशेष 
भगत सिंह की फांसी के विरुद्ध डटे रहे गांधी जी।
भारत के तीन महान क्रांतिकारी - भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी।
 विरोधियों द्वारा दुष्प्रचार किया जाता रहा है कि गांधी जी ने तीन महान क्रांतिकारियों की जान को बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया । तथ्य बताते हैं कि गांधी जी ने उनका जीवन बचाने हेतु भ्रसक प्रयास किये। 
गांधी जी सत्य - अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए शांतिपूर्ण तरीके से स्वतंत्रता चाहते थे।  इसके बिल्कुल विपरीत यह प्रचार किया जाता है कि भगत सिंह व साथी  हिंसक  साधनों से स्वतंत्रता चाहते थे।  भगत सिंह ने दो घटनाओं केंद्रीय असेंबली बम कांड (जिसमें गूंगी - बहरी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को सुनाने के लिए ऐसा किया) और जे पी  सांडर्स की हत्या को छोड़कर कोई हिंसा नहीं की।
 उन्होंने माना विचारों से जागरूक जनता को लामबंद करके ही क्रांति आ सकती है । भगत सिंह व साथियों द्वारा भी अहिंसात्मक तरीकों को  ही अपनाया गया। 
30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन जब लाहौर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों द्वारा साइमन कमीशन गो बैक के नारे लगाए गए।  इसका नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे।  लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट ने पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करने का आदेश दिया । जिसके परिणाम स्वरुप 17 नवंबर 1928 को लाजपत राय की मृत्यु हो गई। इस राष्ट्रीय अपमान का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने जेम्स एस्कॉर्ट को मारने की योजना बनाई, परंतु गलती से उन्होंने जेपी सांडर्स को मार दिया ।
फिर क्रांतिकारी पर लाहौर षडयंत्र  केश 1930 नाम से मुकदमा चला । 10 जुलाई 1929 को मुकदमा शुरू हुआ 7 अक्टूबर 1930 को ट्रिब्यूनल ने तीनों महान क्रांतिकारी- भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 24 मार्च 1931 को फांसी देने की सजा की तिथि निर्धारित की।  लेकिन जन आक्रोश को देखते हुए एक दिन पूर्व 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। 
अक्सर कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा से बचने के लिए प्रभावशाली ढंग से प्रयास नहीं किया।
 दर असल, गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन, हरबर्ट एमरसन, यशपाल, मन्मथनाथ गुप्ता इत्यादि का मानना रहा है कि गांधी इरविन दिल्ली समझौते की शर्तों में क्रांतिकारियों को फांसी से बचने की शर्त नहीं रखी गई ।
दरअसल, महात्मा गांधी ने वायसराय को पत्र लिखा था जिसमें फांसी को स्थगित करने की मांग की गई थी ।इस दृष्टिकोण का समर्थन करने वालों में नेताजी सुभाष बोस ,डॉक्टर दत्ता , पट्टाभि सीतारमैया , मीरा बेन, एडवोकेट आसिफ अली, इतिहासकार सी एन दत्त, पत्रकार रॉबर्ट बैंडेज और भगत सिंह के साथी जितेंद्र नाथ सान्याल  इत्यादि प्रमुख थे।
महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम 4 में 1930 को मुकदमे से संबंधित न्यायाधिकरण के गठन की आलोचना की थी ।  11 फरवरी 1931 को भगत सिंह व उनके साथियों को फांसी की सजा से बचाने के लिए की गई अपील को प्रिवी कौंसिल लंदन द्वारा ठुकरा दिया गया । महात्मा गांधी इरविन समझौते के लिए 17 फरवरी 1931 से 5 मार्च 1931 तक मीटिंग हुई और पत्राचार भी हुआ।  महात्मा गांधी ने 18 फरवरी 1931 को गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन से फांसी को कम करने की बात की महात्मा गांधी ने।  वायसराय से कहा ,अगर आप वर्तमान माहौल को और अधिक अनुकूल बनाना चाहते हैं तो आपको भगत सिंह की फांसी को स्थगित कर देना चाहिए । इरविन ने गांधी जी को उत्तर दिया, सजा कम करना कठिन है । लेकिन निलंबन निश्चित रूप से विचार करने योग्य है। 7 मार्च 1931 को महात्मा गांधी ने दिल्ली में एक सभा में कहा मैं किसी को भी फांसी पर चढ़ने के लिए पूरी तरह सहमत नहीं हो सकता । 
भगत सिंह जैसे बहादुर व्यक्ति के लिए तो बिल्कुल नहीं ।
19 मार्च 1931 को गांधी ने फिर से लॉर्ड इरविन से सजा कम करने की अपील की जिसे इर्विन ने मीटिंग की प्रोसिडिंग में नोट कर लिया। 20 मार्च 1931 को महात्मा गांधी ने लॉर्ड इरविन से गृह सचिव हर्बर्ट इमरसन से मुलाकात की।  गांधी जी ने इरविन से 21 मार्च 1931 को,  22 मार्च 1931 को फिर मुलाकात की और उनसे सजा कम करने का आग्रह किया ।
23 मार्च 1931 को गांधी जी ने वायसराय को पत्र लिखा शांति के हित में अंतिम अपील की आवश्यकता है ,यदि पुनर्विचार के लिए कोई जगह नहीं बची है तो मैं कहूंगा लोकप्रिय राय सजा में कमी की मांग करती है।
 जब कोई सिद्धांत दाव पर नहीं होता तो अक्सर उनका सम्मान करना करते हुए  यदि सजा में कमी होती है तो आंतरिक शांति को बढ़ाया मिलने की सबसे अधिक संभावना है।
 फांसी की स्थिति में शांति  निसंदेह खतरे में है। इन लोगों की जान बचाना सार्थक है मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप इस कार्य को आगे की समीक्षा के लिए स्थगित कर दें तब इर्विन ने लिखा यह महत्वपूर्ण था कि अहिंसा के पुजारी ने अपने स्वयं के मूल रूप में विरोधी पक्ष के समर्थकों के पक्ष में कितनी गंभीरतासे 
न्यूज़ क्रॉनिकल के पत्रकार रॉबर्ट भेज ने अपनी पुस्तक द नेकेड फकीर में उल्लेख किया है कि गांधी के तर्कों के कारण इरविन सजा को निलंबित करने के बारे में सोच रहे थे लेकिन पंजाब की नौकरशाही ने सामूहिक स्थिति परकी धमकी से उन्हें दबा दिया राष्ट्रीय अभिलेखागार द्वारा प्रकाशित एक किताब में गांधी जी ने लिखा की अंग्रेजी सरकार के पास क्रांतिकारियों के हृदय को जीतने का स्वर्णिम अवसर था परंतु सरकार इसमें असफल रही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने में सर्वोत्तम प्रयास किया 
डा प्रोफेसर रामजीलाल ,
लेखक, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल के पूर्व प्राचार्य हैं।