"हमें सुन्दरता की कसौटी बदलनी होगी अभी तक यह कसौटी अमीरी और विलासिता की थी हमारा कलाकार अमीरों का पल्ला पकडे रहना चाहता था साहित्यकार का लक्ष्य केवल महफ़िल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नहीं है --- उसका दर्जा इतना न गिराइये जब तक साहित्य का कम केवल माँ बहलाव का सामान जुटाना , केवल लोरियां गा गा कर सुनना , केवल आंसूं बहाकर जी हल्का करना था , तब तक इसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी मगर हम साहित्य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्तु नहीं समझते हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा , जिसमें उच्च चिंतन हो, स्वाधीनता का भाव हो , सौन्दर्य का सर हो , सृजन की आत्मा हो , जीवन की सच्चाईयों का प्रकाश हो --जो हम में गति, संघर्ष और बेचैनी पैदा kare , सुलाए नहीं , क्योंकि अब aur ज्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है "
मुंशी प्रेमचंद --१९३६
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