जिनके घर में अँधियारा हो उनकी दिवाली क्या होगी
जिंका ना कोई सहारा हो उनकी दिवाली क्या होगी
फ़ुट पाथ पे नंगा जिस्म लिए जो आकाश ओढ़ सोते हों
तकदीर के मारे गलियों में जो बिन आन्शूं के रोते हों
मेहनत मजदूरी करते जो सुख की रोटी ना खाते हों
जीवन की अँधेरी रातों में जो घुट घुट कर मर जाते हों
जिनके घर ना उजियारा हो उनकी दिवाली क्या होगी -----
जिनपे ना घर गलियारा हो उनकी दिवाली क्या होगी -----
दौलत वालों की अर्थी भी उठती है रथ शहनाई से
शादी बारात गरीबों की दम तोड़ चुकी महंगाई से
राम राज्य की आज़ादी चाट चुके ये दौलत वाले
उनकी भी क्या दिवाली जिनको टुकड़ों के हों लाले
जिस घर फैला दुखियारा हो उनकी दिवाली क्या होगी
जिस जीवन का ना किनारा हो उनकी दिवाली क्या होगी
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