सब कल्लर की जमीन है बीज उगा नहीं सकते ||
काली रात बड़ी भारी आजकल कुछ हिला नहीं सकते ||
हमारी इस उजड़ी बस्ती में अभी भी तुम ऐ यारो
चिंगारी यहाँ ढूंढते क्यों जब आग लगा नहीं सकते||
निराश मत हो ऐ दोस्तों वोह सुबह कभी तो आयेगी
जब जनता जागेगी आस बिलकुल मिटा नहीं सकते ||
No comments:
Post a Comment