स्वास्थ्य : एक और छुपा हुआ खतरा
डीप वेन थ्रोम्बोसिस यानि दिल को खून वापिस
ले जाने वाली गहरी नाड़ियों में रूकावट
साफ खून
की नाड़ियों में रूकावट के बारे में तो बहुत से लोग जानते हैं परंतु इसी तरह दिल को
वापिस खून ले जाने वाली नाड़ियों, खास तौर से टांग की नाड़ियों, में भी रूकावट भी
उतनी ही खतरनाक साबित हो सकती है. आंकड़े बताते हैं कि इस से होने वाली सालाना मौतों
की संख्या छाती के कैंसर, सड़क दुर्घटनाओं और एड्स से होने वाली मौतों से ज्यादा
है. बिमारी होने के बाद पूरा इलाज हालांकि मुश्किल हैं परंतु कुछ सावाधानियां रखने
से इस बिमारी से आसानी से बचा जा सकता है.
अंग्रेज़ी
में इसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस कहा जाता है. दिल को वापिस खून ले जाने वाली दो तरह की
नाड़ियां होती हैं. एक जो चमड़ी की उपरी स्तह पर होती हैं और कभी कभी दिखाई भी देती
हैं. दूसरी नाड़ियां गहरी होती हैं और उपर से दिखाई नहीं देती. दिल को खून वापिस ले
जाने वाली इन गहरी नाड़ियों में (खास तौर पर पांवों की नाड़ियों में) होने वाली
रूकावट को ही डीप वैन थ्रोंबोसिस कहते हैं.
ये क्या है और क्यों होता है?
टांग
के अन्दर की इन नाड़ियों को हम दूसरा दिल भी कह सकते हैं. जैसे दिल साफ खून को सारे
शरीर में मोटर की तरह पंप करता है उसी तरह टांग के अन्दर की ये नाड़ियां भी वापिस गंदे खून को दिल में भेजने का काम करती हैं. इस के लिये इन में जगह जगह वाल्व होते हैं
ताकि खून आगे ही आगे जाये और वापिस धरती की ओर न जाये. इस के लिये टांग की
पिंडलियों में लगातार हरकत होना और उनका स्वस्थ्य होना जरूरी है. अगर किसी कारण से
इन में हरकत होनी कम हो जाये तो खून की दिल को वापसी बाधित होती है और इस के चलते
खून टांगो में ही इकट्ठा होने लग जाता है. और जब एक बार थोड़ा खून नाड़ी की दीवार पर जम जाता है तो
उसके इर्दगिर्द और खून जमने की सम्भावना बढ़
जाती है. कई बार खून के इस थक्के (क्लोट )का एक हिस्सा टूट कर खून में बहने लग जाता
है. जमे हुये खून के ये थक्के फेफड़े , दिल या गुर्दे में जा कर खतरनाक रूकावट पैदा कर सकते हैं.
लक्षण : नाड़ियों
में होने वाली इस रूकावट के कोई बाहरी प्रारम्भिक लक्ष्ण नहीं होते. अगर कुछ
घण्टों के लिये (कितने घंटो के लिये?) ही टांग/पिण्डलियों में हरकत न हो और खून का
दौरा कम हो जाये तो ये बीमारी शुरू हो सकती है.तुरंत इस का कोई लक्ष्ण न भी दिखाई
दे परंतु गम्भीर होने पर इस के निम्नलिखित लक्ष्ण हो सकते हैं.
1.
टांग मे दर्द रहना (regular or continuous ? acute or mild?
2.
टांग में सोजिश रहना.
3.
टांग का गर्म रहना.
4.
टांग के रंग में बदलाव
कारण
क.
मां बनने के बाद जच्चा का चलना फिरना कम हो जाता है.
दूसरी और इस दौरान शरीर में खून जमने की प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से तेज होती है.
इस लिये माँ बनने के बाद इस बिमारी का खतरा बढ़ जाता है.
ख.
बुढ़ापा
ग.
मोटापा
घ.
धूम्रपान
ङ. वैरिकॉज वेन्स (विवरण आवश्यक है)
च.
लम्बे समय तक बैठे या लेटे रहने के कारण (पलास्टर
लगने के कारण, आप्रेशन होने के कारण, लम्बे सफर में, इत्यादि)
छ.
हारमोन के कारण (विवरण आवश्यक है)
बचाव के
तरीके
अ.
लम्बे समय तक बैठे न
रहें (कितने समय तक?). बीच बीच में उठ कर चहलकदमी करें (कितनी?)
आ.
टांग के ऊपर टांग
चढ़ा कर न बैठें.
इ.
टांगों की मालिश??
ई.
किसी भी कारण से अगर
चलना फिरना सम्भव नहीं है तो टांगो या कम से कम टखनों को हिलाते रहें.
उ.
माँ बनने के बाद
शीघ्र ही (कितनी शीध्र?) चहल कदमी शुरू कर देनी चाहिये.
ऊ.
स्वस्थ जीवन शैली
अपनायें. वजन नियंत्रित रखें, नियमित व्यायाम करें और पौष्टिक (डिब्बा बन्द/फक्टरी
उत्पादित के विपरीत) ताजा खाना लें जिसमें चिकनाई और मीठे की मात्रा कम हो.
ऋ.
प्रयाप्त पानी
पियें. महिलायें 2 से 2.5 लीटर और पुरूषों के लियी 3 से 3.5 लीटर प्रतिदिन तरल
पदार्थ. प्यास न लगने पर भी पानी या तरल पदार्थ लें.
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