Saturday, January 1, 2011

हरयाणा का सामाजिक सांस्कृतिक परिद्रश्य

हरयाणा का सामाजिक सांस्कृतिक परिद्रश्य

रणबीर सिंह दहिया

हरयाणा एक कृषि प्रधान प्रदेश के रूप में जाना जाता है |राज्य के समृद्ध और सुरक्षा के माहौल में यहाँ के किसान और मजदूर , महिला और पुरुष ने अपने खून पसीने की कमाई से नई तकनीकों , नए उपकरणों , नए खाद बीजों व पानी का भरपूर इस्तेमाल करके खेती की पैदावार को एक हद तक बढाया , जिसके चलते हरयाणा के एक तबके में सम्पन्नता आई मगर हरयाणवी समाज का बड़ा हिस्सा इसके वांछित फल नहीं प्राप्त कर सका |

यह एक सच्चाई है कि हरयाणा के आर्थिक विकास के मुकाबले में सामाजिक विकास बहुत पिछड़ा रहा है | ऐसा क्यों हुआ ? यह एक गंभीर सवाल है और अलग से एक गंभीर बहस कि मांग करता है |हरयाणा के सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र पर शुरू से ही इन्ही संपन्न तबकों का गलबा रहा है |यहाँ के काफी लोग फ़ौज में गए और आज भी हैं मगर उनका हरयाणा में क्या योगदान रहा इसपर ज्यादा ध्यान नहीं गया है | इसी प्रकार देश के विभाजन के वक्त जो तबके हरयाणा में आकर बसे उन्होंने हरयाणा कि दरिद्र संस्कृति को कैसे प्रभावित किया ; इस पर भी गंभीरता से सोचा जाना शायद बाकी है | क्या हरयाणा की संस्कृति महज रोहतक, जींद व सोनेपत जिलों कि संस्कृति है? क्या हरयाणवी डायलैक्ट एक भाषा का रूप ले ले सकता है ? महिला विरोधी, दलित विरोधी तथा प्रगति विरोधी तत्वों को यदि हरयाणवी संस्कृति से बाहर कर दिया जाये तो हरयाणवी संस्कृति में स्वस्थ पक्ष क्या बचता है ? इस पर समीक्षात्मक रुख अपना कर इसे विश्लेषित करने कि आवश्यकता है | क्या पिछले दस पन्दरा सालों में और ज्यादा चिंताजनक पहलू हरयाणा के सामाजिक सांस्कृतिक माहौल में शामिल नहीं हुए हैं ? व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं और पुरुषों ने बहुत सारी सफलताएँ हांसिल की हैं | समाज के तौर पर १८५७ की आजादी की पहली जंग में सभी वर्गों ,सभी मजहबों व सभी जातियों के महिला पुरुषों का सराहनीय योगदान रहा है | इसका असली इतिहास भी कम लोगों तक पहुँच सका है |

हमारे हरयाणा के गाँव में पहले भी और कमोबेश आज भी गाँव की संस्कृति , गाँव की परंपरा , गाँव की


इज्जत व शान के नाम पर बहुत छल प्रपंच रचे गए हैं और वंचितों, दलितों व महिलाओं के साथ न्याय कि बजाय बहुत ही अन्याय पूर्ण व्यवहार किये जाते रहे हैं |

उदाहरण के लिए हरयाणा के गाँव में एक पुराना तथाकथित भाईचारे व सामूहिकता का हिमायती रिवाज रहा है कि जब भी तालाब (जोहड़) कि खुदाई का काम होता तो पूरा गाँव मिलकर इसको करता था | रिवाज यह रहा है कि गाँव की हर देहल से एक आदमी तालाब कि खुदाई के लिए जायेगा | पहले हरयाणा के गावों क़ी जीविका पशुओं पर आधारित ज्यादा रही है |गाँव के कुछ घरों के पास १०० से अधिक पशु होते थे | इन पशुओं का जीवन गाँव के तालाब के साथ अभिन्न रूप से जुदा होता था | गाँव क़ी बड़ी आबादी के पास न ज़मीन होती थी न पशु होते थे | अब ऐसे हालत में एक देहल पर तो सौ से ज्यादा पशु है वह भी अपनी देहल से एक आदमी खुदाई के लिए भेजता था और बिना ज़मीन व पशु वाला भी अपनी देहल से एक आदमी भेजता था | वाह कितनी गौरवशाली और न्यायपूर्ण परंपरा थी हमारी? यह तो महज एक उदाहरण है परंपरा में गुंथे अन्याय को न्याय के रूप में पेश करने का |


महिलाओं के प्रति असमानता व अन्याय पर आधारित हमारे रीति रिवाज , हमारे गीत, चुटकले व हमारी परम्पराएँ आज भी मौजूद हैं | इनमें मौजूद दुभांत को देख पाने क़ी दृष्टि अभी विकसित होना बाकी है | लड़का पैदा होने पर लडडू बाँटना मगर लड़की के पैदा होने पर मातम मनाना , लड़की होने पर जच्चा को एक धडी घी और लड़का होने पर दो धडी घी देना, लड़के क़ी छठ मनाना, लड़के का नाम करण संस्कार करना, शमशान घाट में औरत को जाने क़ी मनाही , घूँघट करना , यहाँ तक कि गाँव कि चौपाल से घूँघट करना आदि बहुत से रिवाज हैं जो असमानता व अन्याय पर टिके हुए हैं |सामंती पिछड़ेपन व सरमायेदारी बाजार के कुप्रभावों के चलते महिला पुरुष अनुपात चिंताजनक स्तर तक चला गया है | मगर पढ़े लिखे हरयाणवी भी इनका निर्वाह करके बहुत फखर महसूस करते हैं | यह केवल महिलाओं की संख्या कम होने का मामला नहीं है बल्कि सभ्य समाज में इंसानी मूल्यों की गिरावट और पाशविकता को दर्शाता है | हरयाणा में पिछले कुछ सालों से यौन अपराध , दूसरे राज्यों से महिलाओं को खरीद के लाना और उनका यौन शोषण तथा बाल विवाह आदि का चलन बढ़ रहा है | सती, बाल विवाह अनमेल विवाह के विरोध में यहाँ बड़ा सार्थक आन्दोलन नहीं चला | स्त्री शिक्षा पर बाल रहा मगर को एजुकेसन का विरोध किया गया , स्त्रियों कि सीमित सामाजिक भूमिका की भी हरयाणा में अनदेखी की गयी | उसको अपने पीहर की संपत्ति में से कुछ नहीं दिया जा रहा जबकि इसमें उसका कानूनी हक़ है | चुन्नी उढ़ा कर शादी करके ले जाने की बात चली है | दलाली, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से पैसा कमाने की बढती प्रवृति चारों तरफ देखी जा सकती है | यहाँ समाज के बड़े हिस्से में अन्धविश्वास , भाग्यवाद , छुआछूत , पुनर्जन्मवाद , मूर्तिपूजा , परलोकवाद , पारिवारिक दुश्मनियां , झूठी आन-बाण के मसले, असमानता , पलायनवाद , जिसकी लाठी उसकी भैंस , मूछों के खामखा के सवाल , परिवारवाद ,परजीविता ,तदर्थता आदि सामंती विचारों का गहरा प्रभाव नजर आता है | ये प्रभाव अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोगों में भी कम नहीं हैं | हरयाणा के मध्यमवर्ग का विकास एक अधखबडे मनुष्य के रूप में हुआ |

तथाकथित स्वयम्भू पंचायतें नागरिक के अधिकारों का हनन करती रही हैं और महिला विरोधी व दलित विरोधी तुगलकी फैसले करती रहती हैं और इन्हें नागरिक को मानने पार मजबूर करती रहती हैं |राजनीति व प्रशासन मूक दर्शक बने रहते हैं या चोर दरवाजे से इन पंचातियों की मदद करते रहते हैं | यह अध्खाब्दा मध्यम वर्ग भी कमोबेश इन पंचायतों के सामने घुटने टिका देता है | हरयाणा में सर्व खाप पंचायतों द्वारा जाति, गोत ,संस्कृति ,मर्यादा आदि के नाम पार महिलाओं के नागरिक अधिकारों के हनन में बहुत तेजी आई है और अपना सामाजिक वर्चस्व बरक़रार रखने के लिए जहाँ एक ओर ये जातिवादी पंचायतें घूँघट ,मार पिटाई ,शराब,नशा ,लिंग पार्थक्य ,जाति के आधार पर अपराधियों को संरक्षण देना आदि सबसे पिछड़े विचारों को प्रोत्साहित करती हैं वहीँ दूसरी ओर साम्प्रदायिक ताकतों के साथ मिलकर युवा लड़कियों की सामाजिक पहलकदमी और रचनात्मक अभिव्यक्ति को रोकने के लिए तरह तरह के फतवे जारी करती हैं | जौन्धी ,नयाबांस की घटनाएँ तथा इनमें इन पंचायतों द्वारा किये गए तालिबानी फैंसले जीते जागते उदाहरण हैं |युवा लड़कियां केवल बाहर ही नहीं बल्कि परिवार में भी अपने लोगों द्वारा यौन-हिंसा और दहेज़ हत्या की शिकार हों रही हैं | ये पंचायतें बड़ी बेशर्मी से बदमाशी करने वालों को बचाने की कोशिश करती है | अब गाँव की गाँव गोत्र की गोत्र और सीम के लगते गाँव के भाईचारे की गुहार लगाते हुए हिन्दू विवाह कानून १९५५ ए में संसोधन की बातें की जा रही हैं ,धमकियाँ दी जा रही हैं और जुर्माने किये जा रहे हैं| हरयाणा के रीति रिवाजों की जहाँ एक तरफ दुहाई देकर संशोधन की मांग उठाई जा रही है वहीँ हरयाणा की ज्यादतर आबादी के रीति रिवाजों की अनदेखी भी की जा रही है |

गाँव की इज्जत के नाम पर होने वाली जघन्य हत्याओं की हरयाणा में बढ़ोतरी हों रही है | समुदाय , जाति या परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर महिलों को पीट पीट कर मार डाला जाता है , उनकी हत्या कर दी जाति है या उनके साथ बलात्कार किया जाता है | एक तरफ तो महिला के साथ वैसे ही इस तरह का व्यवहार किया जाता है जैसे उसकी अपनी कोई इज्जत ही न हों , वहीँ उसे समुदाय की 'इज्जत' मान लिया जाता है और जब समुदाय बेइज्जत होता है तो हमले का सबसे पहला निशाना वाह महिला और उसकी इज्जत ही बनती है | अपनी पसंद से शादी करने वाले युवा लड़के लड़कियों को इस इज्जत ए नाम पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया जाता है |

यहाँ के प्रसिद्ध संगियों हरदेव , लख्मीचंद ,बाजे भगत ,मेहर सिंह ,मांगेराम ,चंदरबादी, धनपत ,खेमचंद व दयाचंद की रचनाओं का गुणगान तो बहुत किया गया या हुआ है मगर उनकी आलोचनात्मक समीक्षा की जानी अभी बाकी है | रागनी कम्पीटिसनों का दौर एक तरह से काफी कम हुआ है |ऑडियो कैसेटों की जगह सी डी लेती जा रही है जिनकी सार वस्तु में पुनरुत्थान वादी व अंध उपभोग्तवादी मूल्यों का घालमेल साफ नजर आता है | हरयाणा क लोकगीतों पर भी समीक्षातमक काम कम हुआ है | महिलाओं के दुःख दर्द का चित्रण काफी है | हमारे त्योहारों के अवसर के बेहतर गीतों की बानगी भी मिल जाति है |


गहरे संकट के दौर हमारी धार्मिक आस्थाओं को साम्प्रदायिकता के उन्माद में बदलकर हमें जात गोत्र व धर्म के ऊपर लडवा कर हमारी इंसानियत के जज्बे को , हमारे मानवीय मूल्यों को विकृत किया जा रहा है | गऊ हत्या या गौ-रक्षा के नाम पर हमारी भावनाओं से खिलवाड़ किया जाता है | दुलिना हत्या कांड और अलेवा कांड गौ के नाम पर फैलाये जा रहे जहर का ही परिणाम हैं |इसी धार्मिक उन्माद और आर्थिक संकट के चलते हर तीसरे मील पर मंदिर दिखाई देने लगे हैं |राधास्वामी और दूसरे सैक्टों का उभार भी देखने को मिलता है |

सांस्कृतिक स्तर पर हरयाणा के चार पाँच क्षेत्र है और इनकी अपनी विशिष्टताएं हैं |हरेक गाँव में भी अलग अलग वर्गों व जातियों के लोग रहते हैं | जातीय भेदभाव एक ढंग से कम हुए हैं मगर अभी भी गहरी जड़ें जमाये हैं | आर्थिक असमानताएं बढ़ रही हैं | सभी सामाजिक व नैतिक बंधन तनावग्रस्त होकर टूटने के कगार पर हैं | बेरोजगारी बेहताशा बढ़ी है | मजदूरी के मौके भी कम से कमतर होते जा रहे हैं| मजदूरों का जातीय उत्पीडन भी बढ़ा है | दलितों पर अन्याय बढ़ा है वहीँ उनका असर्सन भी बढ़ा है |कुँए अभी भी अलग अलग हैं |परिवार के पितृसतात्मक ढांचे में परतंत्रता बहुत ही तीखी हों रही है | पारिवारिक रिश्ते नाते ढहते जा रहे हैं | मगर इनकी जगह जनतांत्रिक ढांचों का विकास नहीं हों रहा |तल्लाको के केसिज की संख्या कचहरियों में बढती जा रही है | इन सबके चलते महिलाओं और बच्चों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है | मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा आर्थिक संकट की गिरफ्त में है |खेत मजदूरों ,भठ्ठा मजदूरों ,दिहाड़ी मजदूरों व माईग्रेटिड मजदूरों का जीवन संकट गहराया है |लोगों का गाँव से शहर को पलायन बढ़ा है |

कृषि में मशीनीकरण बढ़ा है | तकनीकवाद का जनविरोधी स्वरूप ज्यादा उभार कर आया है | ज़मीन की ढाई एकड़ जोत पर ८० प्रतिशत के लगभग किसान पहुँच गया है | ट्रैक्टर ने बैल की खेती को पूरी तरह बेदखल कर दिया है| थ्रेशर और हार्वेस्टर कम्बाईन ने मजदूरी के संकट को बढाया है |समलत जमीनें खत्म सी हों रही हैं | कब्जे कर लिए गए या आपस में जमीन वालों ने बाँट ली | अन्न की फसलों का संकट है | पानी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है | नए बीज ,नए उपकरण , रासायनिक खाद व कीट नाशक दवाओं के क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की दखलंदाजी ने इस सीमान्त किसान के संकट को बहुत बढ़ा दिया है |प्रति एकड़ फसलों की पैदावार घटी है जबकि इनपुट्स की कीमतें बहुत बढ़ी हैं | किसान का दर्ज भी बढ़ा है |स्थाई हालातों से अस्थायी हालातों पर जिन्दा रहने का दौर तेजी से बढ़ रहा है |अन्याय व अत्याचार बेइन्तहा बढ़ रहे हैं |किसान वर्ग के इस हिस्से में उदासीनता गहरे पैंथ गयी है और एक निष्क्रिय पजीवी जीवन , ताश खेल कर बिताने की प्रवर्ति बढ़ी है | हाथ से काम करके खाने की प्रवर्ति का पतन हुआ है | साथ ही साथ दारू व सुल्फे का चलन भी बढ़ा है और स्मैक जैसे नशीले पदार्थों की खपत बढ़ी है | मध्यम वर्ग के एक हिस्से के बच्चों ने अपनी मेहनत के दम पर सॉफ्ट वेयर आदि के क्षेत्र में काफी सफलताएँ भी हांसिल की हैं | मगर एक बड़े हिस्से में एक बेचैनी भी बखूबी देखी जा सकती है | कई जनतांत्रिक संगठन इस बेचैनी को सही दिशा देकर जनता के जनतंत्र की लडाई को आगे बढ़ाने में प्रयास रात दिखाई देते हैं |अब समर्थन का ताना बाना टूट गया है और हरयाणा में कृषि का ढांचा बैठता जा रहा है | इस ढांचे को बचाने के नाम पर जो नई कृषि नीति या निति परोसी जा रही है उसके पूरी तरह लागू होने के बाद आने वाले वक्त में ग्रामीण आमदनी ,रोजगार और खाद्य सुरक्षा की हालत बहुत भयानक रूप धारण करने जा रही है और साथ ही साथ बड़े हिस्से का उत्पीडन भी सीमायें लांघता जा रहा है, साथ ही इनकी दरिद्र्ता बढती जा रही है | नौजवान सल्फास की गोलियां खाकर या फांसी लगाकर आत्म हत्या को मजबूर हैं |

गाँव के स्तर पर एक खास बात और पिछले कुछ सालों में उभरी है वाह यह की कुछ लोगों के प्रिविलेज बढ़ रहे हैं | इस नव धनाड्य वर्ग का गाँव के सामाजिक सांस्कृतिक माहौल पर गलबा है |पिछले सालों के बदलाव के साथ आई छद्म सम्पन्नता , सुख भ्रान्ति और नए नायर सम्पन्न तबकों --परजीवियों ,मुफतखोरों और कमीशन खोरों -- में गुलछर्रे उड़ने की अय्यास कुसंस्कृति तेजी से उभरी है | नई नई कारें ,कैसिनो ,पोर्नोग्राफी ,नांगी फ़िल्में ,घटिया केसैटें , हरयाणवी पॉप ,साइबर सैक्स ,नशा व फुकरापंथी हैं,कथा वाचकों के प्रवचन ,झूठी हसियत का दिखावा इन तबकों की सांस्कृतिक दरिद्र्ता को दूर करने के लिए अपनी जगह बनाते जा रहे हैं| जातिवाद व साम्प्रदायिक विद्वेष ,युद्ध का उन्माद और स्त्री द्रोह के लतीफे चुटकलों से भरे हास्य कवी सम्मलेन बड़े उभार पर हैं | इन नव धनिकों की आध्यात्मिक कंगाली नए नए बाबाओं और रंग बिरंगे कथा वाचकों को खींच लाई है | विडम्बना है की तबाह हों रहे तबके भी कुसंस्कृति के इस अंध उपभोगतावाद से छद्म ताकत पा रहे हैं |

दूसर तरफ यदि गौर करेँ तो सेवा क्षेत्र में छंटनी और अशुरक्षा का आम माहौल बनता जा रहा है इसके बावजूद कि विकास दर ठीक बताई जा रही है |कई हजार कर्मचारियों के सिर पर छंटनी कि तलवार चल चुकी है और बाकी कई हजारों के सिर पर लटक रही है | सैंकड़ों फैक्टरियां बंद हों चुकी हैं | बहुत से कारखाने यहाँ से पलायन कर गए हैं | छोटे छोटे कारोबार चौपट हों रहे हैं | संगठित क्षत्र सिकुड़ता और पिछड़ता जा रहा है | असंगठित क्षेत्र का तेजी से विस्तार हों रहा है | फरीदाबाद उजड़ने कि राह पर है , सोनीपत सिसक रहा है , पानीपत का हथकरघा उद्योग गहरे संकट में है | यमुना नगर का बर्तन उद्योग चर्चा में अहिं है ,सिरसा ,हांसी व रोहतक की धागा मिलें बंद हों गयी | धारूहेड़ा में भी स्थिलता साफ दिखाई देती है |

1 comment:

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