सच छिपाए न छिपे
एक बार भोपाल से ग्वालियर
ट्रेन से अपने घर जा रहा था मैं
उसी ट्रेन में उसी डिब्बे में एक
लड़की पास की सीट पर बैठी थी
थोड़ी बातचीत शुरू हुयी तो पूछा
मेरे घर परिवार के बारे में उसने
बताया पिता हाई कोर्ट में जज मेरे
मम्मी सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं
लड़की मन ही मन में हंसने लगी
समझ नहीं सका मैं उसका हँसना
अपनी सीट पर लेट सो गया मैं
घर पहुंचा तो देखा वही लड़की
मेरे घर पर मेरे से पहले पहुंची थी
देख मुझे बहुत जोर से हँसी लड़की
असल में मेरी मौसी की बिटिया
मैंने सफ़र में पहली बार देखा उसे
उसकी हँसी ने शर्मशार किया मुझे
क्योंकि ट्रेन में जो बताया था मैंने
सभी कुछ झूठा था था कथन मेरा
उस दिन के बाद मैंने कसम खाई
अब के बाद झूठ नहीं बोलूँगा मैं
बहुत हद तक कसम मैंने है निभायी
कभी कभी झूठ बोलता हूँ मैं तो
ट्रेन का नजारा जरूर याद आता
एक बार फिर मुझे याद दिला जाता
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