भूमंडल के सभी देशों में स्वभाव से ही सबल निर्बल को अपने स्वार्थों का साधन बनाता रहा है और अब भी बनाता है | पुराने इतिहासों और धर्म शाश्त्रों को देखते हैं तो यह बात निर्विवाद सिद्ध होती है | विद्वान् अपढ़ों को ,बलवान कमजोरों को ,धनवान गरीबों को अपने हाथों की कटपुतली बना कर रखना चाहते हैं | प्रकृति ने स्त्रियों को एक खास अभिप्राय से उसी तरह जनम दिया है जैसे पुरुषों को | अभीष्ट सिद्धि के लिए पुरुषों को अधिक बल दिया और स्त्रियों को पुरुषों से कुछ कोमल बनाया पर स्त्रियों की इस सुकुमारता का पुरुषों ने अनुचित लाभ उठाया | आज कल भी , कहीं कम कहीं जयादा , यही बात देखने को मिलती है |
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