प्राचीन काल में अरब में और भारत में भी बहुधा लोग लड़कियों को अपने सर नीचा करने वाली समझकर मर डालते थे , मानों उन्हें माताओं की जरूरत ही न हो या यह समझते हों क़ि केवल पुरुषों से सृष्टि कायम रह सकती है | स्त्रियों को पर्दों में डालकर रखना कहीं कहन धर्म का एक अंग बन गया
है | इनको बलवान बनाने के बदले पर्दे के बल पर और कमजोर किया गया | इन्हें व्यायाम करने का मौका न देकर और बुद्धि को विकसित न होने देने के लिए अनेक स्थानों में विद्या पढने , प्रकृति का निरिक्षण करने अदि कामों से रोका गया | इन्हें राज काज के सब तरह के कामों में भाग लेने का अधिकार भी नहीं दिया गया | इस तरह भूमंडल के आधे से ज्यादा सज्ञान प्राणियों को निकम्मा बनानेके गुरुतर कार्य पुरानों ने किये | नर और नारियों के संपत्ति का,राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों कहीं कहीं तो धर्मिक अधिकारों में भी - सीमातीत कमी की गयी | फिर भी स्त्रियों को बुद्धिहीन कहा जाता है यह कैसा अन्याय है ?
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