Monday, October 4, 2010

विवाह की संस्था बदलनी चाहिए

विवाह की संस्थाओं में भी बाकी चीजों में आ रहे बदलाव की तरह ही बदलाव आ रहे हैं मगर आज की परिस्थितियों के अनुसार उसमें जिस तरह का बदलाव होना चाहिए था उस तरह का बदलाव नहीं हो पा रहा आपकी राय क्या है ?मानववादी और जनतांत्रिक नजर से तो विवाह स्त्री -पुरुष के बीच समानता ,प्रेम,और सहयोग का संबंध होना चाहिए लेकिन परंपरागत विवाह एक संबंध नहीं बल्कि एक बंधन होता था स्त्री-पुरुष को विशेष रूप से स्त्री को बाँधने वाला बंधन कहने के लिए तो पति पत्नी की गृहस्थी या परिवार की गाड़ी के दो पहिये कहा जाता था जिससे लगे की गाड़ी के दो पहियों की तरह दोनों बराबर हैं , दोनों संमान रूप से महतवपूर्ण हैं लेकिन वास्तव में पत्नी को पति की दासी या संपति माना जाता था यह तो मानवीय संबंध नहीं अमानवीय बंधन ही हुआ कह सकते हैं की आधुनिक बदलाव के समय से पहले के दौर में भी विवाह की संस्था में बदलाव की जरूरत रही है साथ ही यह भी एक सवाल है क़ि विवाह एक संबंध है या संस्था ?

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