Saturday, April 16, 2011

shaheede ajam bhagat singh

शहीदे आजम भगत सिंह
सव्यसाची
बचपन में मेरी माँ ने बताया था, जब भगत सिंह की फंसी लगी थी तो धरती हिली थी -वे उस वक्त मुझे गोद में लेकर मुंडेर पर बैठी थी | मुझे उनके हिसाब में कुछ घपला लगता है क्योंकि भगत सिंह को फांसी  १९३१ में लगी थी जबकि हाई स्कूल के सर्टिफिकेट में मेरी जनम तिथि १९३२ लिखी है | यह भी हो सकता है कि  उनकी यादास्त  ठीक हो क्योंकि अशिक्षित परिवारों में दाखिले के वकत जनम  तिथि  अंदाज से   लिखाई   जाती  है  | और  उन  दिनों आज जैसे स्कूल  नहीं पंडित जी की पाठ शालाएं हुआ करती थी , वैसे भी मैं सात साल की उम्र में दाखिल हुआ था ,यहाँ मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि  आम जनता भगत सिंह को इतना प्यार करती थी कि उसने भूचाल का कारण उनकी फांसी को मान    लिया था और लोगों की  आम धारणा थी कि भगत सिंह के मरने पर धरती भी रोई थी|  हाँ यह तो एक ऐतिहासिक तथ्य है कि जनता के गुस्से से दरकार अंग्रेजों ने उनेह निश्चित समय से एक दिन पहले ही फांसी देकर चुपचाप रावी के किनारे जाला दिया था लेकिन जनता को इस घटना का की खबर मिल गयी थी और लाखों इंसानों का समंदर रवि की और उमड़ पड़ा था जो शहीद की की चिता की रख के एक एक जर्रे को देखते ही देखते बड़े प्यार और ममता से अपने आगोश में समेटकर वहां से ले  गया  था | न जने कितनी रोमांचकारी  घटनाएँ भगत सिंह की जिन्दगी से जुडी हैं जिनके कारण उनका व्यक्तित्व मुझे लगातार अपनी तरफ खींचता रहा है | किस तरह वे बचपन में मिटटी में कोई चीज गद रहे थे और किसी के पूछने पर उन्होंने बताया था कि खेत में बन्दूक बो रहा हूँ | कितने आश्चर्य कि बात है कि बड़े होने पर बचपन में बोई गयी वह बन्दूक ही रिवाल्वर के रूप में उनकी जेब में रही |यों बन्दूक तो मेहनतकश जनता को दमन का शिकार बनाने के लिए सैनिकों और शरीफ इंसानों कि हत्या करने के लिए गुंडों के हाथ में भी होती है लेकिन भगत सिंह कि रिवाल्वर ने हमेशा शोषित पीड़ित लोगों की हिफाजत ही कि और कैसी क़यामत धाती थी उसकी  गोलियां जिनसे भयभीत होकर अधि से जयादा दुनिया पर शाशन करने वाले साम्रज्यवादी  दरिन्दे भी कांपते थे | कैसा बहादुर था वह शेरे बब्बर जो मेहनतकश जनता के खिलाफ बनने वाले  कानूनओं का मुकाबला करने के लिए असेम्बली में बम्ब फेंकने बेख़ौफ़ दुश्मनों की मांड में घुस गया था और अंग्रेजी हकूमत के भाड़े के सिपाही उसे देखकर  थर थर   कांपने लगे थे | फिर उसने अपनी रिवाल्वर फैंक दी थी और गिरफ्तारी के लिए दोनों  हाथ आगे की और फैला दीये थे लेकिन सिपाहीयों की आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी | बाद को खुद ही उसने अपने को गिरफ्तार करवाया, मानव मुक्ति के प्रचार के लिए अदालत का इस्तेमाल किया और देश कि आजादी के लिए "इन्कलाब जिंदाबाद " :" साम्राजय्वाद  मुर्दाबाद" का ऐतिहासिक नारा बुलंद करके हँसता हुआ फांसी  के फंदे में झूल गया , अंग्रेजी हकूमत इंतजार ही करती रही कि भगत सिंह झुके माफ़ी मांगे और हम दया कि भीख देकर कब सुर्खरू बनें लेकिन वह पठ्ठा जेल के शिकंजों में भी हँसता रहा , फांसी कि सजा सुनाये जाने के बाद भी मौत को अनदेखा करके अट्टहास करता रहा ,पढता रहा , खट लिखता रहा , व्यक्तव्य त्यार करता रहा , कविताओं कि समीक्षा करता रहा , मजाक करके अपने साथियों को हँसता रहा  और उसने अंग्रेजों से प्रार्थना भी कि तो फकत यह कि हम सैनिक हैं अत: हमें रस्सी से फांसी न लगाकर हमारे सीने में गोली मारी जाये  और इस तरह अपनी जिन्दादिली  से वह मौत को धता बताता रहा | कौन कह सकता है कि भगत सिंह मर गया -वह तो आज भी जिन्दा है और हर क्षण उसकी जिन्दगी बढती ही जा रही है |-----जारी  है