Thursday, May 19, 2011

जिसकी लाठी उसकी भैंस ! जबरदस्त का ठेंगा सिर पर !  दुनिया दबंग की | इन कहावतों का अंधकारमय समय गया और जो थोडा बाकि है उसके हटाने के लिए संसार के चतुर नर और नारी लगातार परिश्रम कर रहे हैं | इस समय हम भारत वासियों के लिए जरूरी है कि मनुष्य का अत्याचार  हो रहा है , इसको हटाने के लिए प्राण पण से तैयार हो जाएँ , स्त्रियों और गरीबों पर अत्याचार करना छोड़ कर उन्हें अपने सहयोगी बना लें | जब हम कई कारौड़ पुरुष और इसी तरह कई करौड़ स्त्रियाँ एक साथ मिलकर किसी कम में जुट जायेंगे , तो इस अनर्थ को बहुत जल्दी मिटा सकेंगे जिसके ब्याज से प्रत्येक भारतवासी का दिल व्यथित हो रहा है ,अधमरे पशु पक्षी कि तरह तड़प रहा है | साधारण नियम यहो है कि बलवान निर्बल पर हकुमत करता है , लेकिन जब निर्बल में ताकत आ जाती है तो वह तर्कों बतर्कों जवाब देने को तैयार हो जाता है तब पहले का बलाभिमानी शशक दम दबाकर भाग जाता है | समय आ सकता है जब कि स्त्रियाँ बलवती होकर पुरुषों कि वैसी ही खबर लें जैसी वे इन दिनों स्त्रियों कि ले रहे हैं | ऐसे भी देशों और जातियों का नितांत अभाव नहीं है  , जिसमें स्त्रियों का प्राधान्य पाया जाता हो |हम निसंकोच होकर कह सकते हैं कि आजकल पुरुषों का जो सम्बन्ध स्त्रियों के साथ है वह पशु बल पर ही अवलंबित है| खासकर भारत में |

INSAAN AUR PASHU

जो लोग स्त्रियों के अधिकार के पक्षपातियों के साथ कठ बैठी दलीलें करते हैं , जो तर्क नहीं करते , न उन्हें तर्क मिलता है , न किसी तर्कानुमोदित अधर पर वे स्त्रियों की पराधीनता का समर्थन करना चाहते हैं | लेकिन वे अपनी आदत और पुराणी पड़ी हुई परिपाटी के गुलाम हैं | रूढी प्रियता ने , बहुत दिनों के रिवाज ने , उनकी मानसिक विचार दृष्टि को ख़राब कर दिया है | कोई कैसा भी रिवाज क्यों न हो, जब हम देखें की वह मनुष्यों की कमजोरी , स्वार्थपरता और नीचता आदि  विकारों से प्रचलित है , तो हमारा धर्म है की हम उसे तुरंत मिटाने  के लिए दत  चित होकर खड़े हो जाएँ स्त्रियों के साथ पुरुषों  की निष्ठुरता या दुर्व्यवहार है , वह सब मानसिक नीचता पर आश्रित है | केवल पाशविक बल की अधिकता के कारन जो हम स्त्रियों को अपने अंगूठे के नीचे दबाकर रखना चाहते हैं , यह सर्वथा बुरा है | आदिकाल में स्त्रियों और पुरुषों के अधिकारों में भेद न था |स्त्रियाँ पुरुषों की दासी या उनके सम्भोग की चीज नहीं समझी जाती थी | यह बात हमें प्राचीन सामाजिक रीती -नीतियों के देखने से प्रतयक्ष मालूम होती है | बाद में हम लोगों ने स्त्रियों की निर्बलता से अनुचित लाभ उठाने का इरादा किया | क्योंकि लूट खसोट प्रत्येक पशु के स्वभाव में होती है , मनुष्य भी पशु है | लेकिन आज जब हमारी पशुता घट रही है और सग्यानता आये दिन वृद्धि पाती  जा रही है ,तब हमें दूसरों के अधिकारों पर अत्याचार करना शोभा नहीं देता |

RUKAVAT PAIDA KEE GAYEE

प्राचीन काल में अरब में और भारत में भी बहुधा लोग लड़कियों को अपने सर नीचा करने वाली समझकर मर डालते थे , मानों उन्हें माताओं की जरूरत ही न हो या यह समझते हों क़ि केवल पुरुषों से सृष्टि कायम रह सकती है | स्त्रियों को पर्दों में डालकर रखना कहीं कहन धर्म का एक अंग बन गया
है | इनको बलवान बनाने के बदले पर्दे के बल पर और कमजोर किया गया | इन्हें व्यायाम करने का मौका न देकर और बुद्धि को विकसित न होने देने के लिए अनेक स्थानों में विद्या पढने , प्रकृति का निरिक्षण करने अदि कामों से रोका गया | इन्हें राज काज के सब तरह के कामों में भाग लेने का अधिकार भी नहीं दिया गया | इस तरह भूमंडल के आधे से ज्यादा सज्ञान प्राणियों को निकम्मा बनानेके गुरुतर कार्य पुरानों ने किये | नर और नारियों के संपत्ति का,राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों कहीं कहीं तो धर्मिक अधिकारों में भी - सीमातीत कमी की गयी | फिर भी स्त्रियों को बुद्धिहीन कहा जाता है यह कैसा अन्याय है ? 

DABANG PAHLE AUR AAJ BHI

भूमंडल  के सभी देशों में स्वभाव से ही सबल निर्बल को अपने स्वार्थों  का साधन बनाता  रहा है और अब भी बनाता  है | पुराने इतिहासों और  धर्म शाश्त्रों को देखते हैं तो यह बात निर्विवाद सिद्ध होती है | विद्वान् अपढ़ों को  ,बलवान कमजोरों को ,धनवान गरीबों को अपने हाथों की कटपुतली बना कर रखना चाहते हैं | प्रकृति ने स्त्रियों को एक खास अभिप्राय   से उसी तरह जनम दिया है जैसे पुरुषों को | अभीष्ट सिद्धि  के लिए पुरुषों को अधिक बल दिया और स्त्रियों को पुरुषों से कुछ कोमल बनाया पर स्त्रियों की इस सुकुमारता का पुरुषों ने अनुचित लाभ उठाया | आज कल भी , कहीं कम कहीं जयादा , यही बात देखने को मिलती है |