vigyan charcha

विज्ञानं के अभिप्राय और मूल्य की अंतिम निर्णायक जनता होती है लेकिन जहाँ विज्ञानं को मुठीभर  लोगों के हाथों में रहस्य बनाकर रखा जाता है ,वहां वह अनिवार्यत: शाषक  वर्ग के हितों से जुड़ जाता है |और उस प्रेरणा से कट जाता है ,जो जनता की आवश्कताओं  और क्षमताओं से पैदा होती है | पूंजीवाद ने अपने विकास की उत्तरकालीन अवस्था में विज्ञानं का इस्तेमाल हमेशा आदमी से ज्यादा काम लेकर उसका ज्यादा शोषण करने ,बेरोजगारी बढ़ाने और युद्धों के द्वारा नरसंहार करने के लिए किया है | यही कारण है की मेहनतकश जनता में विज्ञानं के प्रति संदेह और शत्रुता का भाव पाया जाता है|  विज्ञानं को समझ बूझ कर ,उसका मूल्य आंककर ,यदि उसका विकास जन -आन्दोलन के अनिवार्य अंग के रूप में किया जाये तो उसकी संभावनाओं  की तुलना में पूंजीवाद के अंतर्गत विकसित होने वाला विज्ञानं अर्द्ध विज्ञानं भी साबित नहीं होगा| जे. डी. बर्नाल ने अपनी विलक्षण पुस्तक "साइंस इन हिस्टरी" में "विज्ञानं क्या है ?" का उत्तर इस प्रकार दिया है :-
क ) विज्ञानं तथ्यों और सूचनाओं का एक संग्रह हो सकता है |
ख ) विज्ञानं सिधान्तों का सार संग्रह हो सकता है|
ग) विज्ञानं उत्पादन का एक औजार हो सकता है |
घ ) विज्ञानं ब्रह्मांड को देखने का एक तरीका या एक विश्व दृष्टिकोण हो सकता है |
अगर हम पूर्व -पाषाणयुग  से अब तक के मनुष्यों के इतिहास को देखें तो शायद बेहतर समझ सकते हैं की विज्ञानं क्या चीज है और यह भी की क्या विज्ञानं के आगे पश्चिमी ,पूरबी ,साम्राज्यवादी , देशी ,प्राचीन ,आधुनिक आदि विश्लेषण लगाना ठीक है ?