Tuesday, February 7, 2023

बादलों को भेदकर धरती का सबसे सटीक नक्शा

 2019


बादलों को भेदकर धरती का सबसे सटीक नक्शा

120 मीटर की दूरी बरकरार रखते हुए 27,000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ना, दो उपग्रहों से लगातार ऐसा करवाना वैज्ञानिकों के लिए भी बड़ी चुनौती है। आखिर क्यों इतनी खास है ये उड़ान।


अनंत आकाश में कुछ आंखें हैं जो हमें लगातार देख रही हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं देख पाते। टेरा सार एक्स जर्मन रडार उपग्रह है। ये ऐसी चीजें कर सकता है जो ऑप्टिकल सैटेलाइट नहीं कर पातीं। अंतरिक्ष में इस वक्त 1,000 से ज्यादा उपग्रह हैं। लेकिन एक दूसरे से 120 मीटर की दूरी पर साथ उड़ रहे टेरासार एक्स और टांडेम एक्स खास हैं। ये अक्टूबर 2010 से ही डेटा रिकॉर्ड कर धरती पर भेज रहे हैं। इन उपग्रहों को भेजने वाले जर्मन वैज्ञानिक उससे मिले डेटा की मदद से हमारी पृथ्वी के भूतल का अब तक का सबसे सटीक नक्शा बना रहे हैं।


इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर प्रो. अलबैर्तो मोरेरा कहते हैं, "वे मौसम और रोशनी की परवाह किए बगैर धरती की हाई डिफिनिशन तस्वीर ले सकते हैं।"


क्यों खास हैं रडार सैटेलाइट

रडार सैटेलाइट धरती की ओर विद्युत चुम्बकीय तरंगें भेजती हैं और परावर्तित तंरगों को मापती है। इस डाटा को एक साथ मिलाकर धरती का प्रोफाइल तैयार किया जाता है। टेरासार एक्स धरती के चक्कर लगा रही है और डाटा जमा कर जर्मन एयरोस्पेस एजेंसी डीएलआर को भेज रही है। टेरासार एक्स और उसका भाई टांडेम एक्स प्रयोगशाला से नियंत्रित किया जाता है। दो सैटेलाइटों का मतलब है ज्यादा सूचना।


टांडेम एक्स की मदद से धरती की नई तस्वीर बनाई जा रही हैं जो अब तक की तस्वीरों से 30 गुना सटीक है। ये धरती की नई तस्वीरें हैं। रडार के एंटीना 3।8 मीटर चौड़े और 300 किलो के हैं।

उन्हें 0।03 डिग्री की बारीकी तक लक्षित किया जा सकता है। तैनाती से पहले एंटीना को टेस्ट वेव का इस्तेमाल कर कैलीब्रेट किया गया। चौकस और सूक्ष्म काम सिर्फ शुरुआती दौर में ही जरूरी नहीं होता। जुड़वां सैटेलाइटों को हैंडल करने में वैज्ञानिकों के सामने दूसरी चुनौतियां भी हैं।


आकाश में अद्भुत कारीगरी


प्रो. अलबैर्तो मोरेरा कहते हैं, "टांडेम एक्स के साथ हमारी कई चुनौतियां हैं। सबसे पहले तो फॉर्मेशन फ्लाइट की। दो सैटेलाइटों का एक दूसरे से 120 मीटर की दूरी पर साढ़े सात हजार मीटर सेंकड की गति से उड़ना भी एक चुनौती है। दोनों की घड़ियों को सिंक्रोनाइज करना भी पहली बार हो रहा है।"


दो सैटेलाइटों का फायदा यह है कि वे पहाड़ों और इमारतों के रेडियो साए से बच पाती हैं। लेकिन दो परिक्रमा पथ होने के कारण समांतर फ्लाइट मुश्किल होती है। यही वजह है कि दोनों उपग्रहों का प्रक्षेप पथ विषम होता है। टांडेम प्रोजेक्ट के प्रमुख डॉ. मानफ्रेड सिक के मुताबिक, "पहली सैटेलाइट दूसरी सैटेलाइट की इस तरह परिक्रमा करती है जैसा डीएनए फेलिक्स का पैटर्न होता है।"


पृथ्वी की मदद

जुड़वां सैटेलाइट की फ्लाइट पृथ्वी की 3-डी पिक्चर को संभव बना रही है। अलग अलग रिजॉल्यूशन के लिए अलग अलग ग्रिड है। लेकिन इसका मकसद क्या है? दुनिया भर के वैज्ञानिक इस डाटा का इस्तेमाल करते हैं। मसलन बर्लिन के निकट जर्मन जियोसाइंस रिसर्च सेंटर में। इस नक्शे में तेहरान के निकट भूजल निकालने से धंसती जमीन दिख रही है।


रडार डाटा की मदद से टोपोग्राफी और इंसानी या प्राकृतिक गतिविधियों से होने वाले नुकसान का पता लगाया जा रहा है। रडार के सिग्नलों की मदद से सिर्फ शहरों और गांवों की ही मैपिंग नहीं होती। फ्रायबुर्ग यूनिवर्सिटी के छात्र डाटा का इस्तेमाल जंगल की मैपिंग करने के लिए कर रहे हैं। वे इस बात का पता कर रहे हैं कि जंगल के खास हिस्से में पेड़ों और पत्तियों में यानि बायोमास में कितना इजाफा हुआ है।


अब तक इसके लिए वैज्ञानिकों को लेजर सर्वेइंग मशीन लेकर जंगल में जाना पड़ता था। लेकिन जल्द ही इसकी जरूरत नहीं रहेगी। अंतरिक्ष से मिलने वाला डाटा भी सही सूचना देता है। ये सूचनाएं इसलिए भी जरूरी हैं कि दुनिया भर के जंगलों में कार्बन डाय ऑक्साइड की स्टोरेज क्षमता का पता लगाया जा सके। यह पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बेहद अहम जानकारी है। और जंगल के मालिकों के लिए यह जानना जरूरी है कि उनके पेड़ किस तेजी से बढ़ रहे हैं।


सही जगह पर राहत

रडार वाली सैटेलाइट प्राकृतिक विपदा के समय में भी बहुत काम की साबित होती हैं। जर्मन एयरोस्पेस एजेंसी डीएलआर का अपना क्राइसिस कंट्रोल सेंटर है, जो फटाफट भूकंप या बाढ़ पीड़ित इलाके की तस्वीरें दे सकता है।

सैटेलाइट सूचना प्रभाग के प्रमुख डॉ। टोबियास श्नाइडरहान कहते हैं, "खासकर गंभीर बाढ़ की स्थिति में, जब आसमान पर बादल छाए होते हैं। उस समय हमें डाटा पाने के लिए रडार की जरूरत होती है क्योंकि रडार तरंगें बादलों को भेद हमेशा धरती की सतह की तस्वीर मुहैया कराती हैं। इस तरह की परिस्थितियों में हम मुख्य रूप से रडार से मिलने वाले डाटा का प्रयोग करते हैं।"


ये तस्वीरें बाढ़ग्रस्त इलाके में तैनात सैटेलाइटों के रडार डाटा की मदद से मिली हैं। उनके सिग्नलों और मौजूदा नक्शे को मिलाकर नया नक्शा बनाया जा सकता है। यहां साफ तौर पर देखा जा सकता है कि कौन से शहर बाढ़ में डूबे हैं। यहां यह भी देखा जा सकता है कि मकान तो नहीं डूबे हैं और किन सड़कों पर अभी भी गाड़ी चलाई जा सकती है और कौन डूबी हुई हैं।


इन सूचनाओं की मदद से इमरजेंसी सर्विस देने वाले कर्मियों को पता होता है कि किन इलाकों में मदद की फौरन जरूरत है, कहां लोग खतरे में हैं और कहां बाढ़ उतनी गंभीर नहीं है। ये सूचना राहतकर्मियों की सही तैनाती के लिए जरूरी है। डीएलआर ने संयुक्त राष्ट्र के मिशनों के लिए भी इस तरह नक्शे बनाए हैं। इस समय दो और उपग्रहों को कक्षा में भेजने की योजना है। उनका इस्तेमाल भूकंप, वन कटाव और रेगिस्तान के फैलने से हुए बदलावों का पता करने के लिए होगा। भविष्य को सुरक्षित बनाने में ये सूचनाएं बहुत कारगर होंगी।


स्रोत : डॉयचे वेले

गरीबी पैदा की लाकडाउन ने 

 गरीबी पैदा की लाकडाउन ने 

तालाबंदी के कारण लगभग चालीस करोड़ लोगों को गरीबी की ओर धकेल दिया गया

      उनमें से लगभग 12 करोड़

 शहरी क्षेत्रों में और अन्य 28 करोड़ ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं।

अत्यधिक गरीबी में रहने वाले 62करोड़ (47.5%) से अधिक लोग हैं।

           उनमें से अधिकांश अनौपचारिक कार्यों में काम कर रहे हैं या स्वरोजगार कर रहे हैं।

        कोविद -19 महामारी के मद्देनजर वैश्विक संकट ने एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की अपरिहार्यता को रेखांकित किया है।

प्रणालीगत चुनौतियों के कारण, सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली की प्रतिक्रिया स्थूल रूप से अपर्याप्त रही है।

     निजी क्षेत्र संकट का जवाब देने में पूरी तरह से विफल रहा है,

     निजी प्रदाताओं मे  अधिकांश या तो मदद करने में अक्षम थे या तैयार नही थे राष्ट्रीय संकट को  काबू करने  में मदद करने को  तैयार नही थे,PMJAY द्वारा बनाए गए बहुत प्रचार के बावजूद।

कोविद के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया नियमित स्वास्थ्य देखभाल की लागत पर आई है।

     कोविद प्रबंधन के लिए उपकरण, किट और सेटिंग की खरीद की व्यवस्था करने की कोशिश में केंद्र और राज्य सरकारों की प्रतिक्रिया नियमित स्वास्थ्य सेवाओं से  समझौता करने की अलग से लागत पर आई है।

  इस ने  नियमित मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, परिवार नियोजन सेवाओं, टीबी, डायलिसिस कैंसर की देखभाल आदि के लिए लोगों की पहुँच को प्रभावित किया है ।

गंभीर दीर्घकालिक परिणाम:-

ये सभी स्पष्ट रूप से व्यापक प्राथमिक देखभाल की कमी को इंगित करते हैं, खासकर शहरी क्षेत्रों में।

     व्यक्तिगत सुरक्षा, परिवार के हितों के लिए खतरे को एक तरफ रखते हुए, ओवरटाइम काम करने वाले देश भर के स्वास्थ्य कर्मचारियों के महत्वपूर्ण प्रयास हुए हैं।

तथा

• सीमित संसाधनों के बावजूद सर्वोत्तम संभव देखभाल प्रदान न करने का कलंक।

    सुरक्षात्मक उपकरण, परीक्षण किट और अन्य आवश्यक संसाधनों की कमी।

       कई फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता जैसे नर्स, डॉक्टर, आशा कार्यकर्ता इस बीमारी के शिकार बने , इसके खिलाफ लड़ते हुए ।

आशा कार्यकर्ताओं को महामारी के दौरान उनके कर्तव्यों का पालन करते हुए पीटा जाता है या परेशान किया जाता है।

PMJAY उजागर: PMJAY को त्यागें, जनता प्रणाली को मजबूत करने के लिए सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग करें।

पीएमजेएवाई के अधिकारी, जो स्वास्थ्य देखभाल वितरण को निजी क्षेत्र को सौंपने के बारे में बहुत मुखर थे, योजना के रूप में पीएमजेएवाई और निजी क्षेत्र  महामारी के दौरान आबादी के महत्वपूर्ण वर्गों को वांछनीय गुणवत्ता वाली देखभाल प्रदान करने में बुरी तरह विफल रहे हैं|


विश्व मुद्रा के साथ सार्वजनिक प्रणाली मजबूत?


अप्रैल में अपनी पहली प्रतिक्रिया में, केंद्र ने 15,000 करोड़ रुपये की  कोविद -19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली की तैयारी पैकेज  की घोषणा की। 

और स्वास्थ्य प्रणाली की तैयारी पैकेज। केंद्र को 7,774 रु करोड़ तत्काल उपयोग और

2024 तक 7226 करोड़ रुपये का मध्यम अवधि का समर्थन जारी करना है।

2024 तक 7226 करोड़ रुपये का मध्यम अवधि का समर्थन।


यह देश के सकल घरेलू उत्पाद का 0.1% से भी कम है और  वर्तमान में कुछ राज्यों द्वारा स्वास्थ्य पर धनराशि खर्च करने की मात्रा से भी कम है|



कोविद के लिए विश्व बैंक से यूएसडी 1 बिलियन फंड - 19 इमरजेंसी रिस्पांस और हेल्थ सिस्टम की तैयारी के लिए लिया फंड स्पष्ट निजीकरण है|


• रु। 15,000 करोड़ का पैकेज संभवत: इस ऋण अनुदान से बाहर है और खुद के संसाधनों में से प्रावधान नहीं है जैसा  केंद्र द्वारा अनुमानित किया जा रहा है।


155 देशों के बीच सार्वजनिक खर्च और OOP के बीच विपरीत संबंध

: 2010


वैश्विक रुझान स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च के रूप में हिस्सा बढ़ता है 

तब कुल स्वास्थ्य खर्च में जेब खर्च में से खर्च घटता है। शीर्ष बाएँ पर भारत की स्थिति बताती है कि

लोग भारत में स्वास्थ्य देखभाल के खर्च का एक बड़ा हिस्सा वहन करते हैं|



स्वास्थ्य पर व्यय संघ और राज्य सरकारों का (GDP का%) खर्च

2005-06 से राज्य सरकारों ने स्वास्थ्य पर अपना निवेश बढ़ाया है:

2005-06 में जीडीपी का 0.62% से बढ़कर 2014-15 में यह बढ़कर 0.91% हो गया था


2015-16 में जीडीपी का 0.23% केंद्र सरकार का खर्च पिछले तीन दशकों में सबसे कम है

1990 के दशक की शुरुआत में जो खर्च किया जा रहा था, उससे भी कम।


मजबूत सार्वजनिक प्रणाली से महामारी को रोका जा सकता है: 

केरल का अनुभव

• प्राथमिक देखभाल, निवारक और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने में काफी निवेश किया गया लम्बी समयावधि तक|


अधिकांश अन्य राज्यों ने मातृऔर बाल स्वास्थ्य से संबंधित कुछ सेवाओं से परे निवारक सेवाओं की उपेक्षा की है|

• महाराष्ट्र और गुजरात जैसे संसाधन संपन्न राज्यों की विफलता है शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के स्तर  पर|

केरल में समुदाय आधारित मॉडल|

दवाओं और उपकरणों के सार्वजनिक क्षेत्र के निर्माण को मजबूत बनाना:

यह उम्मीद की गई थी कि सरकार फार्मा एपीएसयू को राहत पैकेज के माध्यम से काफी सहायता प्रदान करेगी।

हालांकि, पिछले साल सरकार ने आईडीपीएल और उसकी सहायक राजस्थान ड्रग्स को बंद कर दिया

और फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड और HAL और BPCL को रणनीतिक बिक्री पर रखा।


यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि उपकरण निर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल की जाए

फार्मा और मेडिकल उपकरण निर्माण उद्योगों में मजबूत निवेश करके|


केंद्रीकृत और पारदर्शी खरीद, और विकेंद्रीकृत वितरण नियमित सुनिश्चित करते हैं सार्वजनिक सुविधाओं में अच्छी गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता राष्ट्रीय कार्यक्रमों और राज्य प्रणाली दोनों के लिए|जैसा कि हमारे पास तमिलनाडु, राजस्थान और केरल में है|


एआरवी दवाओं के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग


स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के अधिकार

ग्रामीण क्षेत्रों में कुशल मानव संसाधनों की उल्लेखनीय कमी और महानगरीय शहरों में चिकित्सा पेशेवरों की उच्च घनत्व, भारी विकृतियाँ पैदा करती है बड़े शहरों में प्रदान की जाने वाली गुणवत्ता और तर्कसंगत 

देखभाल में और ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवाओं में|


 सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली कर्मचारियों के सभी स्तरों को पर्याप्त और निरंतर कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये|


उचित मान देय, सामाजिक सुरक्षा और काम करने की अच्छी स्थिति हो|

सभी संविदा स्वास्थ्य कार्यकर्ता, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं को नियमित किया जाना  चाहिए|

और श्रम कानूनों की  के तहत संरक्षण प्राप्त हो|


***स्वास्थ्य अनुसंधान में निवेश करें |


--स्वास्थ्य अनुसंधान बजट MoHFW के कुल बजट का 3% है।

--कुछ उप प्रमुखों के उद्देश्य से ज़ूनोटिक रोगों के लिए निगरानी और अन्य उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों को मजबूत करने के लीय़े  पहले से ही कम बजट मे से उपयोग 15% ही हो सका (2018-19) मे ।

--स्वास्थ्य अनुसंधान पर सार्वजनिक निवेश आगामी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ को पूरा करने में सक्षम होने के लिए कई गुना बढ़ाने की जरूरत है|

***रोग निगरानी प्रणाली को मजबूत करें

--मामलों (केसो) की रिपोर्टिंग, मृत्यु दर और परीक्षण डेटा कई राज्यों में विवाद का स्रोत रहा है।

विश्वसनीय डेटा एक अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली  को बनाता है, और अंततः एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने में मदद करता है।

--लेकिन केंद्र सरकार ने अज्ञात कारणों से, सदियों पुरानी एकीकृत रोग निगरानी परियोजना (IDSP), की रिपोर्टिंग को रोक दिया|

--संपर्क-अनुरेखण संचालन, संगरोध केंद्र और हवाई अड्डों से जानकारी एकत्र की गई। परिणाम

पूरी जानकारी का ब्लैकआउट है।

--डेटा एक महामारी प्रतिक्रिया का एक महत्वपूर्ण घटक है, और इस तरह के रूप में तेजी से विकसित स्थिति में COVID-19 के तहत, यह दिन-प्रतिदिन के निर्णय लेने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है|

--आईडीएसपी डेटा के बिना, राज्य और जिला स्तर के अधिकारियों से प्रतिक्रियाएँ अपर्याप्त हैं।

--केंद्र सरकार इन सभी प्रणालियों को एक ऐप के साथ बदलने पर आमदा है, जिस के अपने है

गोपनीयता के मुद्दे हैं और रिपोर्टिंग  सटीकता में बेहद सीमा रही हैं।

*** पोषण और बाल विकास सेवाओं के लिए यूनिवर्सल एक्सेस:-

--कई राज्यों में, लॉकडाउन के दौरान, बच्चों को मध्यान्ह भोजन मनमाने ढंग से रोका गया और

अंततः अदालतों को हस्तक्षेप करना पड़ा, हालांकि केरल जैसे राज्यों ने यह सुनिश्चित किया कि भोजन और राशन अपने दरवाजे पर बच्चों तक पहुँचता है।

--यूनिसेफ का अनुमान है: अगले 6  महीने में भारत में लगभग 3 लाख बच्चे कुपोषण के कारण मर सकते हैं|

--शहरी मलिन बस्तियों में आंगनवाड़ियों और क्रेच की पूर्ण अनुपस्थिति खुल कर लॉकडाउन के दौरान सामने आई है।


Indranil english version translated

*ये नियम पाकिस्तान में नहीं भारत में आप पर लागु होंगे...इसलिए रूकिये... पढिये... समझिये... चर्चा किजिए... सोचिए... कहीं आप हां,मैं आपको/पाठक को ही कह रहा हूं कि कही आप गुलामी की ओर तो नहीं बढ़ रहे?* *भारत सरकार द्वारा 29 श्रम कानून को निरस्त कर मात्र 04 संहिता बनाया गया है । सभी का गजट हुआ जारी ।* बनाये गए नये संहिता निम्न है- A) The Code and wages, 2019. B) The Code on Social Security, 2020. C) The Industrial Relation Code, 2020 and D) The Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2020 शूली पे चढ़ने वाले श्रम कानून निम्न है- 1. The Payment of Wages Act, 1936. 2. The Minimum Wages Act, 1948. 3. The Payment of Bonus Act, 1965. 4. The Equal Remuner ation Act, 1976. 5. The Employee's Compensation Act, 1923. 6. The Employees' State Insurance Act, 1948. 7. The Employees' Provident Funds and Miscellaneous Provisions Act, 1952. 8. The Employment Exchanges (Compulsory Notification of Vacancies) Act, 1959. 9. The Maternity Benefit Act, 1961. 10. The Payment of Gratuity Act, 1972. 11. The Cine-Workers Welfare Fund Act, 1981. 12. The Building and Other Construction Workers' Welfare Cess Act, 1996. 13. The Unorganised Workers' Social Security Act, 2008. 14. The Trade Unions Act, 1926. 15. The Industrial Employment (Standing Orders) Act, 1946. 16. The Industrial Disputes Act, 1947. 17. The Factories Act, 1948. 18. The Plantations Labour Act, 1951. 19. The Mines Act, 1952. 20. The Working. Journalists and other Newspaper Employees (Conditions of Service) and Miscellaneous Provisions Act, 1955. 21. The Working Journalists (Fixation of Rates of Wages) Act, 1958. 22. The Motor Transport Workers Act, 1961. 23. The Beedi and Cigar Workers (Conditions of Employment) Act, 1966; 24. The Contract Labour (Regulation and Abolition) Act, 1970. 25. The Sales Promotion Employees (Conditions of Service) Act, 1976. 26. The Inter-State Migrant Workmen (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act, 1979. 27. The Cine-Workers and Cinema Theatre Workers (Regulation of Employment) Act, 1981; 28. The Dock Workers (Safety, Health and Welfare) Act, 1986; 29. The Building and Other Construction Workers (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act, 1996. Etc इत्यादि...!!! A. क्रमांक संख्या 1 से 4 को निरस्त कर THE CODE ON WAGES 2019 बनाया गया। B. क्रमांक संख्या 5 से 13 को निरस्त कर THE CODE ON SOCIAL SECURITY, 2020 बनाया गया। C. क्रमांक संख्या 14 से 16 को निरस्त कर THE INDUSTRIAL RELATIONS CODE, 2020 बनाया गया। D. क्रमांक संख्या 17 से 29 को निरस्त कर THE OCCUPATIONAL SAFETY, HEALTH AND WORKING CONDITIONS CODE, 2020 बनाया गया। 29 श्रम कानूनों को ख़त्म कर जो नए चार लेबर कोड या श्रम संहिताएं बनाई गई हैं, उसके तहत भारत में 1- *बाल श्रम कानूनी हो गया है।* 2- *ठेकेदारी प्रथा अब ग़ैरकानूनी नहीं रहा।* 3- *बोनस एक्ट खत्म होने के साथ ही मालिकों की मज़बूरी भी ख़त्म हो गई है।* 4- *सबसे अहम कि आठ घंटे के काम के अधिकार को ख़त्म कर मालिकों को ओवर टाइम लगाने की अनिवार्यता की इजाज़त दे दी गई है।* 5- *अब महिलाएं रात्री पाली में असुरक्षित स्थिति में काम करेंगे।* 6- *05 प्रवासी मजदूर कहीं एक राज्य से दूसरे राज्य रोजगार के लिए जाएंगे तो, उनका पंजीकरण आवश्यक नहीं।* 7- *फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट को बढ़ावा के चलते, नौकरी हुआ असुरक्षित* 8- एक टर्म पूरी होने पर मालिक चाहेगा तो रखेगा, अन्यथा नहीं। 9- * निजी कंपनी मालिक अपना लोगों को लगाकर यूनियन चलाएगा एबं कामगारों को शोषण करने के लिए रास्ता हुआ उन्मुक्त। 10- जहाँ 100 था अब हुआ 300। जहाँ 300 से कम लोग काम करेंगे वहाँ प्रबंधन कभी भी सरकार को बिना बताए लोगों का छटनी कर सकती है, रास्ता हुआ साफ। 11- श्रम संघों को मजदूरों के हित के लिए हड़ताल करना नहीं रहा आसान। भले लोग अधिकार से बंचित रहे, मर भी जाए। 12- *किसीभी समये किसीका भी नौकरी जा सकता है, परफॉर्मेंस के आड़ में, नियम हुआ आसान, ।* 13- जहाँ 20 से कम लोग काम करेंगे, वहाँ बोनस डिमांड नहीं किया जा सकता है। 14- जहाँ 300 से कम कामगार काम कर रहे हैं, वहाँ स्टैंडिंग ऑर्डर की आवश्यकता खत्म, अत्यंत खतरनाक है। 15- *सार्वजनिक क्षेत्र उद्योग को छोड़कर एबं कुछ गिने चुने निजी उद्योग को छोड़ देने के बाद बाकी 98% उद्योग/ कारखाने स्टैंडिंग ऑर्डर प्रतिबंध से मुक्त हो गए*। 15- बर्तमान में ESI, EPF जैसे 06 कल्याणकारी योजनाएं अच्छी तरह काम कर रहे, सरकार उस ब्यवस्था को कमजोर करने के लिए एबं EPF अर्थ को समाप्त करने के लिए कई आम (स्कीम) योजना को सम्मिलित करना, मजदूरों के लिए घातक सिद्ध होगा। 17- इजी ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम पर, ( easy of doing business) इजी ऑफ एम्प्लाइज किलिंग (easy of employees Killing) के लिए रास्ता हुआ प्रसस्त। 18- *3M* मोटर व्हीकल, माईन एबं माइग्रेशन समन्धित विषय में यदि ठेकेदार/ मालिक/ दलाल 05 लोगों को नियोजित करता है तो पंजीकरण/ लाइसेंस की जरूरत नहीं। 19- जहाँ ठीकेदार 50 से कम लोगों को काम में लगाएगा वहां प्रिंसिपल एम्प्लॉयर का भूमिका खतम। एक प्रकार क्रीतदास (बंधुआ) प्रथा की पुनः प्रारंभ कहना अनुचित नहीं होगा। 20- सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि, राज्य सरकार अपने हिसाव से इस 04 कानून में अपने आवश्यकता के आधार पर फेरबदल करने की प्रावधान रखा गया है। एक देश एक कानून केवल भाषणों में सीमित रह जाएंगे। इत्यादि.....!@@ पूंजीपतियों के अत्याचार के सामने हड़ताल करना मजदूरों का सबसे बड़ा हथियार होता है। इंडंस्ट्रियल रिलेशंस कोड के तहत उनके इस अधिकार पर सबसे बड़ी चोट की गई है। एक तरीके से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। *इस कोड में प्रावधान है कि कोई भी मजदूर 60 दिन का नोटिस दिए बिना हड़ताल पर नहीं जा सकता है। साथ ही किसी विवाद पर अगर ट्राइब्यूनल में सुनवाई चल रही है तो उस सुनवाई के दौरान और सुनवाई पूरी होने के 60 दिनों के बाद तक भी मजदूर हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं। इस तरह से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को एक तरीके से समाप्त कर दिया गया है।* *श्रम सुधारों के बहाने इस कानून का लागू होने के बाद मजदूर/एम्प्लाइज एक वस्तु/ कमोडिटी/ (प्रोडक्ट) बनकर रह जाएगा।* सरकार मजदूरों को पूंजीपतियों की दया पर छोड़ने की साजिश रची है। जब देश में बेरोजगारी समस्या चरम पर है, तब कंपनियों और उद्योगपतियों को अपने मत मुताबिक छंटनी करने का अधिकार बर्बादी लेकर आएगा। इन बदलावों से बड़े स्तर पर आर्थिक-सामाजिक तनाव पैदा होगा क्योंकि इससे मजदूरों की रोजगार और सामाजिक सुरक्षा दोनों ही खत्म हो जाएंगे। इस कोड़ में रही विसंगतियों के कारण, स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही मजदूर अधिकारों की संघर्ष एक झटके में खत्म हो जाएगा। भारत सरकार, लोगों को मौलिक अधिकार से बंचित करके पूंजीपतियों के हाथ को मजबूत करने के लिए, जल्दबाजी में श्रम संघो से बिना बिधिबद्ध परामर्श करते हुए कानून लाई है। दूसरे तरफ, सरकार, बिभिन्न भविष्यनिधि में जमा राशि को घरोई संस्थाओं को संचालन दे कर, शेयर बाजार में निवेश करने की योजना कर रही है। सरकार द्वारा लेबर कोड में यूनियनों के अधिकार एबं हस्तक्षेप को रोकने के प्रयास अत्यंत निंदनीय है। हम इस मजदूर विरोधी कानून, इन 04 लेबर कोड में रही खामियों का कड़े शब्दों से विरोध करते हैं, इस संदर्भ में हम सबकी जिममेदारी बनती है कि इस देश में श्रम क़ानूनों में श्रमिक विरोधी प्रावधानों को लोगों के बीच में लेकर जन जागरण, जागरूकता अभियान चलाये ।

 *ये नियम पाकिस्तान में नहीं भारत में आप पर लागु होंगे...इसलिए रूकिये... पढिये... समझिये... चर्चा किजिए... सोचिए... कहीं आप हां,मैं आपको/पाठक को ही कह रहा हूं कि कही आप गुलामी की ओर तो नहीं बढ़ रहे?*

*भारत सरकार द्वारा 29 श्रम कानून को निरस्त कर मात्र 04 संहिता बनाया गया है । सभी का गजट हुआ जारी ।*

*ये नियम पाकिस्तान में नहीं भारत में आप पर लागु होंगे...इसलिए रूकिये... पढिये... समझिये... चर्चा किजिए... सोचिए... कहीं आप हां,मैं आपको/पाठक को ही कह रहा हूं कि कही आप गुलामी की ओर तो नहीं बढ़ रहे?*

*भारत सरकार द्वारा 29 श्रम कानून को निरस्त कर मात्र 04 संहिता बनाया गया है । सभी का गजट हुआ जारी ।*

बनाये गए नये संहिता निम्न है-

A) The Code and wages, 2019.

B) The Code on Social Security, 2020.

C) The Industrial Relation Code, 2020 and

D) The Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2020

शूली पे चढ़ने वाले श्रम कानून निम्न है-

1. The Payment of Wages Act, 1936.

2. The Minimum Wages Act, 1948.

3. The Payment of Bonus Act, 1965.

4. The Equal Remuner ation Act, 1976.

5. The Employee's Compensation Act, 1923.

6. The Employees' State Insurance Act, 1948.

7. The Employees' Provident Funds and Miscellaneous Provisions Act, 1952.

8. The Employment Exchanges (Compulsory Notification of Vacancies) Act, 1959.

9. The Maternity Benefit Act, 1961.

10. The Payment of Gratuity Act, 1972.

11. The Cine-Workers Welfare Fund Act, 1981.

12. The Building and Other Construction Workers' Welfare Cess Act, 1996.

13. The Unorganised Workers' Social Security Act, 2008.

14. The Trade Unions Act, 1926.

15. The Industrial Employment (Standing Orders) Act, 1946.

16. The Industrial Disputes Act, 1947.

17. The Factories Act, 1948.

18. The Plantations Labour Act, 1951.

19. The Mines Act, 1952.

20. The Working. Journalists and other Newspaper Employees (Conditions of Service) and Miscellaneous Provisions Act, 1955.

21. The Working Journalists (Fixation of Rates of Wages) Act, 1958.

22. The Motor Transport Workers Act, 1961.

23. The Beedi and Cigar Workers (Conditions of Employment) Act, 1966;

24. The Contract Labour (Regulation and Abolition) Act, 1970.

25. The Sales Promotion Employees (Conditions of Service) Act, 1976.

26. The Inter-State Migrant Workmen (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act, 1979.

27. The Cine-Workers and Cinema Theatre Workers (Regulation of Employment) Act, 1981;

28. The Dock Workers (Safety, Health and Welfare) Act, 1986;

29. The Building and Other Construction Workers (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act, 1996. Etc इत्यादि...!!!

A. क्रमांक संख्या 1 से 4 को निरस्त कर THE CODE ON WAGES 2019 बनाया गया। 

B. क्रमांक संख्या 5 से 13 को निरस्त कर THE CODE ON SOCIAL SECURITY, 2020 बनाया गया।

C. क्रमांक संख्या 14 से 16 को निरस्त  कर THE INDUSTRIAL RELATIONS CODE, 2020 बनाया गया।

D. क्रमांक संख्या 17 से 29 को निरस्त कर THE OCCUPATIONAL SAFETY, HEALTH AND WORKING CONDITIONS CODE, 2020 बनाया गया। 

29 श्रम कानूनों को ख़त्म कर जो नए चार लेबर कोड या श्रम संहिताएं बनाई गई हैं, उसके तहत भारत में 

1- *बाल श्रम कानूनी हो गया है।*

 2- *ठेकेदारी प्रथा अब ग़ैरकानूनी नहीं रहा।*

3- *बोनस एक्ट खत्म होने के साथ ही मालिकों की मज़बूरी भी ख़त्म हो गई है।*

4-  *सबसे अहम कि आठ घंटे के काम के अधिकार को ख़त्म कर मालिकों को ओवर टाइम लगाने की अनिवार्यता की इजाज़त दे दी गई है।*

5- *अब महिलाएं रात्री पाली में असुरक्षित स्थिति में काम करेंगे।* 

6- *05 प्रवासी मजदूर कहीं एक राज्य से दूसरे राज्य रोजगार के लिए जाएंगे तो, उनका पंजीकरण आवश्यक नहीं।*

7- *फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट को बढ़ावा के चलते, नौकरी हुआ असुरक्षित* 

8- एक टर्म पूरी होने पर मालिक चाहेगा तो रखेगा, अन्यथा नहीं।

9- * निजी कंपनी मालिक अपना लोगों को लगाकर यूनियन चलाएगा एबं कामगारों को शोषण करने के लिए रास्ता हुआ उन्मुक्त।

10- जहाँ 100 था अब हुआ 300। जहाँ 300 से कम लोग काम करेंगे वहाँ प्रबंधन कभी भी सरकार को बिना बताए लोगों का छटनी कर सकती है, रास्ता हुआ साफ। 

11- श्रम संघों को मजदूरों के हित के लिए हड़ताल करना नहीं रहा आसान। भले लोग अधिकार से बंचित रहे, मर भी जाए। 

12- *किसीभी समये किसीका भी नौकरी जा सकता है, परफॉर्मेंस के आड़ में, नियम हुआ आसान, ।* 

13- जहाँ 20 से कम लोग काम करेंगे, वहाँ बोनस डिमांड नहीं किया जा सकता है। 

14- जहाँ 300 से कम कामगार काम कर रहे हैं, वहाँ स्टैंडिंग ऑर्डर की आवश्यकता खत्म, अत्यंत खतरनाक है। 

15- *सार्वजनिक क्षेत्र उद्योग को छोड़कर एबं कुछ गिने चुने निजी उद्योग को छोड़ देने के बाद बाकी 98% उद्योग/ कारखाने  स्टैंडिंग ऑर्डर प्रतिबंध से मुक्त हो गए*। 

15- बर्तमान में ESI, EPF जैसे 06 कल्याणकारी योजनाएं अच्छी तरह काम कर रहे,  सरकार उस ब्यवस्था को कमजोर करने के लिए एबं EPF अर्थ को समाप्त करने के लिए कई आम (स्कीम) योजना को सम्मिलित करना, मजदूरों के लिए घातक सिद्ध होगा।  

17- इजी ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम पर, ( easy of doing business) इजी ऑफ एम्प्लाइज किलिंग (easy of employees Killing) के लिए रास्ता हुआ प्रसस्त। 

18-  *3M* मोटर व्हीकल, माईन एबं माइग्रेशन समन्धित विषय में यदि ठेकेदार/ मालिक/ दलाल 05 लोगों को नियोजित करता है तो पंजीकरण/ लाइसेंस की जरूरत नहीं। 

19- जहाँ ठीकेदार 50 से कम लोगों को काम में लगाएगा वहां प्रिंसिपल एम्प्लॉयर का भूमिका खतम। एक प्रकार क्रीतदास (बंधुआ) प्रथा की पुनः प्रारंभ कहना अनुचित नहीं होगा। 

20- सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि, राज्य सरकार अपने हिसाव से इस 04 कानून में अपने आवश्यकता के आधार पर फेरबदल करने की प्रावधान रखा गया है। एक देश एक कानून केवल भाषणों में सीमित रह जाएंगे। इत्यादि.....!@@

पूंजीपतियों के अत्याचार के सामने हड़ताल करना मजदूरों का सबसे बड़ा हथियार होता है। इंडंस्ट्रियल रिलेशंस कोड के तहत उनके इस अधिकार पर सबसे बड़ी चोट की गई है। एक तरीके से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। 

*इस कोड में प्रावधान है कि कोई भी मजदूर 60 दिन का नोटिस दिए बिना हड़ताल पर नहीं जा सकता है। साथ ही किसी विवाद पर अगर ट्राइब्यूनल में सुनवाई चल रही है तो उस सुनवाई के दौरान और सुनवाई पूरी होने के 60 दिनों के बाद तक भी मजदूर हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं। इस तरह से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को एक तरीके से समाप्त कर दिया गया है।*

              *श्रम सुधारों के बहाने इस कानून का लागू होने के बाद  मजदूर/एम्प्लाइज एक वस्तु/ कमोडिटी/ (प्रोडक्ट) बनकर रह जाएगा।* 

सरकार मजदूरों को पूंजीपतियों की दया पर छोड़ने की साजिश रची है। जब देश में बेरोजगारी समस्या चरम पर है, तब कंपनियों और उद्योगपतियों को अपने मत मुताबिक छंटनी करने का अधिकार बर्बादी लेकर आएगा।  इन बदलावों से बड़े स्तर पर आर्थिक-सामाजिक तनाव पैदा होगा क्योंकि इससे मजदूरों की रोजगार और सामाजिक सुरक्षा दोनों ही खत्म हो जाएंगे। 

इस कोड़ में रही विसंगतियों के कारण, स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही मजदूर अधिकारों की संघर्ष एक झटके में खत्म हो जाएगा।

     भारत सरकार, लोगों को मौलिक अधिकार से बंचित करके पूंजीपतियों के हाथ को मजबूत करने के लिए, जल्दबाजी में श्रम संघो से बिना बिधिबद्ध परामर्श करते हुए कानून लाई है। 

दूसरे तरफ, सरकार, बिभिन्न भविष्यनिधि में जमा राशि को घरोई संस्थाओं को संचालन दे कर, शेयर बाजार में निवेश करने की योजना कर रही है। 

सरकार द्वारा लेबर कोड में यूनियनों के अधिकार एबं हस्तक्षेप को रोकने के प्रयास अत्यंत निंदनीय है। 

हम इस मजदूर विरोधी कानून, इन 04 लेबर कोड में रही खामियों का कड़े शब्दों से विरोध करते हैं, इस संदर्भ में हम सबकी जिममेदारी बनती है कि इस देश में श्रम क़ानूनों में श्रमिक विरोधी प्रावधानों  को लोगों के बीच में लेकर जन जागरण, जागरूकता अभियान चलाये ।

A) The Code and wages, 2019.

B) The Code on Social Security, 2020.

C) The Industrial Relation Code, 2020 and

D) The Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2020

शूली पे चढ़ने वाले श्रम कानून निम्न है-

1. The Payment of Wages Act, 1936.

2. The Minimum Wages Act, 1948.

3. The Payment of Bonus Act, 1965.

4. The Equal Remuner ation Act, 1976.

5. The Employee's Compensation Act, 1923.

6. The Employees' State Insurance Act, 1948.

7. The Employees' Provident Funds and Miscellaneous Provisions Act, 1952.

8. The Employment Exchanges (Compulsory Notification of Vacancies) Act, 1959.

9. The Maternity Benefit Act, 1961.

10. The Payment of Gratuity Act, 1972.

11. The Cine-Workers Welfare Fund Act, 1981.

12. The Building and Other Construction Workers' Welfare Cess Act, 1996.

13. The Unorganised Workers' Social Security Act, 2008.

14. The Trade Unions Act, 1926.

15. The Industrial Employment (Standing Orders) Act, 1946.

16. The Industrial Disputes Act, 1947.

17. The Factories Act, 1948.

18. The Plantations Labour Act, 1951.

19. The Mines Act, 1952.

20. The Working. Journalists and other Newspaper Employees (Conditions of Service) and Miscellaneous Provisions Act, 1955.

21. The Working Journalists (Fixation of Rates of Wages) Act, 1958.

22. The Motor Transport Workers Act, 1961.

23. The Beedi and Cigar Workers (Conditions of Employment) Act, 1966;

24. The Contract Labour (Regulation and Abolition) Act, 1970.

25. The Sales Promotion Employees (Conditions of Service) Act, 1976.

26. The Inter-State Migrant Workmen (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act, 1979.

27. The Cine-Workers and Cinema Theatre Workers (Regulation of Employment) Act, 1981;

28. The Dock Workers (Safety, Health and Welfare) Act, 1986;

29. The Building and Other Construction Workers (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act, 1996. Etc इत्यादि...!!!

A. क्रमांक संख्या 1 से 4 को निरस्त कर THE CODE ON WAGES 2019 बनाया गया। 

B. क्रमांक संख्या 5 से 13 को निरस्त कर THE CODE ON SOCIAL SECURITY, 2020 बनाया गया।

C. क्रमांक संख्या 14 से 16 को निरस्त  कर THE INDUSTRIAL RELATIONS CODE, 2020 बनाया गया।

D. क्रमांक संख्या 17 से 29 को निरस्त कर THE OCCUPATIONAL SAFETY, HEALTH AND WORKING CONDITIONS CODE, 2020 बनाया गया। 

29 श्रम कानूनों को ख़त्म कर जो नए चार लेबर कोड या श्रम संहिताएं बनाई गई हैं, उसके तहत भारत में 

1- *बाल श्रम कानूनी हो गया है।*

 2- *ठेकेदारी प्रथा अब ग़ैरकानूनी नहीं रहा।*

3- *बोनस एक्ट खत्म होने के साथ ही मालिकों की मज़बूरी भी ख़त्म हो गई है।*

4-  *सबसे अहम कि आठ घंटे के काम के अधिकार को ख़त्म कर मालिकों को ओवर टाइम लगाने की अनिवार्यता की इजाज़त दे दी गई है।*

5- *अब महिलाएं रात्री पाली में असुरक्षित स्थिति में काम करेंगे।* 

6- *05 प्रवासी मजदूर कहीं एक राज्य से दूसरे राज्य रोजगार के लिए जाएंगे तो, उनका पंजीकरण आवश्यक नहीं।*

7- *फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट को बढ़ावा के चलते, नौकरी हुआ असुरक्षित* 

8- एक टर्म पूरी होने पर मालिक चाहेगा तो रखेगा, अन्यथा नहीं।

9- * निजी कंपनी मालिक अपना लोगों को लगाकर यूनियन चलाएगा एबं कामगारों को शोषण करने के लिए रास्ता हुआ उन्मुक्त।

10- जहाँ 100 था अब हुआ 300। जहाँ 300 से कम लोग काम करेंगे वहाँ प्रबंधन कभी भी सरकार को बिना बताए लोगों का छटनी कर सकती है, रास्ता हुआ साफ। 

11- श्रम संघों को मजदूरों के हित के लिए हड़ताल करना नहीं रहा आसान। भले लोग अधिकार से बंचित रहे, मर भी जाए। 

12- *किसीभी समये किसीका भी नौकरी जा सकता है, परफॉर्मेंस के आड़ में, नियम हुआ आसान, ।* 

13- जहाँ 20 से कम लोग काम करेंगे, वहाँ बोनस डिमांड नहीं किया जा सकता है। 

14- जहाँ 300 से कम कामगार काम कर रहे हैं, वहाँ स्टैंडिंग ऑर्डर की आवश्यकता खत्म, अत्यंत खतरनाक है। 

15- *सार्वजनिक क्षेत्र उद्योग को छोड़कर एबं कुछ गिने चुने निजी उद्योग को छोड़ देने के बाद बाकी 98% उद्योग/ कारखाने  स्टैंडिंग ऑर्डर प्रतिबंध से मुक्त हो गए*। 

15- बर्तमान में ESI, EPF जैसे 06 कल्याणकारी योजनाएं अच्छी तरह काम कर रहे,  सरकार उस ब्यवस्था को कमजोर करने के लिए एबं EPF अर्थ को समाप्त करने के लिए कई आम (स्कीम) योजना को सम्मिलित करना, मजदूरों के लिए घातक सिद्ध होगा।  

17- इजी ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम पर, ( easy of doing business) इजी ऑफ एम्प्लाइज किलिंग (easy of employees Killing) के लिए रास्ता हुआ प्रसस्त। 

18-  *3M* मोटर व्हीकल, माईन एबं माइग्रेशन समन्धित विषय में यदि ठेकेदार/ मालिक/ दलाल 05 लोगों को नियोजित करता है तो पंजीकरण/ लाइसेंस की जरूरत नहीं। 

19- जहाँ ठीकेदार 50 से कम लोगों को काम में लगाएगा वहां प्रिंसिपल एम्प्लॉयर का भूमिका खतम। एक प्रकार क्रीतदास (बंधुआ) प्रथा की पुनः प्रारंभ कहना अनुचित नहीं होगा। 

20- सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि, राज्य सरकार अपने हिसाव से इस 04 कानून में अपने आवश्यकता के आधार पर फेरबदल करने की प्रावधान रखा गया है। एक देश एक कानून केवल भाषणों में सीमित रह जाएंगे। इत्यादि.....!@@

पूंजीपतियों के अत्याचार के सामने हड़ताल करना मजदूरों का सबसे बड़ा हथियार होता है। इंडंस्ट्रियल रिलेशंस कोड के तहत उनके इस अधिकार पर सबसे बड़ी चोट की गई है। एक तरीके से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। 

*इस कोड में प्रावधान है कि कोई भी मजदूर 60 दिन का नोटिस दिए बिना हड़ताल पर नहीं जा सकता है। साथ ही किसी विवाद पर अगर ट्राइब्यूनल में सुनवाई चल रही है तो उस सुनवाई के दौरान और सुनवाई पूरी होने के 60 दिनों के बाद तक भी मजदूर हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं। इस तरह से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को एक तरीके से समाप्त कर दिया गया है।*

              *श्रम सुधारों के बहाने इस कानून का लागू होने के बाद  मजदूर/एम्प्लाइज एक वस्तु/ कमोडिटी/ (प्रोडक्ट) बनकर रह जाएगा।* 

सरकार मजदूरों को पूंजीपतियों की दया पर छोड़ने की साजिश रची है। जब देश में बेरोजगारी समस्या चरम पर है, तब कंपनियों और उद्योगपतियों को अपने मत मुताबिक छंटनी करने का अधिकार बर्बादी लेकर आएगा।  इन बदलावों से बड़े स्तर पर आर्थिक-सामाजिक तनाव पैदा होगा क्योंकि इससे मजदूरों की रोजगार और सामाजिक सुरक्षा दोनों ही खत्म हो जाएंगे। 

इस कोड़ में रही विसंगतियों के कारण, स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही मजदूर अधिकारों की संघर्ष एक झटके में खत्म हो जाएगा।

     भारत सरकार, लोगों को मौलिक अधिकार से बंचित करके पूंजीपतियों के हाथ को मजबूत करने के लिए, जल्दबाजी में श्रम संघो से बिना बिधिबद्ध परामर्श करते हुए कानून लाई है। 

दूसरे तरफ, सरकार, बिभिन्न भविष्यनिधि में जमा राशि को घरोई संस्थाओं को संचालन दे कर, शेयर बाजार में निवेश करने की योजना कर रही है। 

सरकार द्वारा लेबर कोड में यूनियनों के अधिकार एबं हस्तक्षेप को रोकने के प्रयास अत्यंत निंदनीय है। 

हम इस मजदूर विरोधी कानून, इन 04 लेबर कोड में रही खामियों का कड़े शब्दों से विरोध करते हैं, इस संदर्भ में हम सबकी जिममेदारी बनती है कि इस देश में श्रम क़ानूनों में श्रमिक विरोधी प्रावधानों  को लोगों के बीच में लेकर जन जागरण, जागरूकता अभियान चलाये ।

पुस्तकालय का महत्व, चुनौतियां व समाधान 

 पुस्तकालय का महत्व, चुनौतियां व समाधान 


पुस्तकालय वह स्थान है जहां अलग-अलग विषयों पर ढेर सारी पुस्तकों को एक जगह  कम्रवार

 रखा जाता है और सभी पाठकों को आसानी से उपलब्ध रहती हैं। सभी के लिए पुस्तकें खरीद कर पढ़ना आसान नहीं होता और ढेर सारी किताबें खरीद कर पढ़ना तो और भी मुश्किल होता है हालांकि कुछ लोग पुस्तकें खरीद कर पढ़ते हैं और कुछ थोड़े से लोग  अपना खुद का पुस्तकालय घर पर भी बना कर रखते हैं । सार्वजनिक पुस्तकालय में पाठक ढेर सारी किताबें पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकता है एक पुस्तक को एक बार पढ़कर व्यक्ति लौटा देता है और तब उसे कोई दूसरा पढ़ सकता है ।घर पर पढ़ने का उतना माहौल नहीं बनता पुस्तकालय में शांति से एकाग्र होकर पुस्तकें पढ़ी जाती हैं । कहते हैं किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। किताबों को पढ़ने से आदमी की सोच का विस्तार होता है। पुस्तकालय में ज्ञान हासिल करने के साथ-साथ शांति से पढ़ने का माहौल भी बनता है। एक अच्छे पुस्तकालय में हर उम्र के लोगों की रूचि के अनुसार पुस्तकें होती हैं । पुस्तकालय में ढेरों किताबें, बैठने के स्थान की व्यवस्था के साथ-साथ उसके रखरखाव के लिए और पाठकों को पुस्तकें जारी करने में पुस्तकों का रिकॉर्ड रखने के लिए एक लाइब्रेरियन की भी जरूरत होती ह।  ज्ञान विज्ञान आंदोलन द्वारा चलाए जा रहे पुस्तकालयों में से यह भी अनुभव निकल कर आया है कि जहां भी पुस्तकालय चलाया जाता है वहां पर पुस्तकालय चलाने के लिए एक टीम का होना भी जरूरी है, जो पुस्तकालय की जरूरतों और संचालन में आ रही दिक्कतों को बैठक में चर्चा करके समाधान निकाल सके । सार्वजनिक पुस्तकालय के संचालन के लिए संसाधनों की व्यवस्था तो अक्सर स्थानीय लोगों के सहयोग से हो जाती है लेकिन पाठकों का नियमित रूप से पुस्तकालय में आना और वहां पर बैठकर अध्ययन करना भी एक चुनौती से कम नहीं है ,  क्योंकि लोगों में अभी साहित्य व पुस्तक पढ़ने में अक्सर कम रुचि देखी जाती है।  विद्यार्थी भी पुस्तकालय में आकर अपनी पढ़ाई कर सकते हैं और करते भी ह। इसके साथ साथ प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी भी पुस्तकालय में बैठकर की जा सकती है क्योंकि पुस्तकालय में पढ़ने का माहौल बनता है । आज पुस्तकालय की आवश्यकता हर गांव में है क्योंकि शहरों में सार्वजनिक पुस्तकालय के साथ-साथ निजी पुस्तकालय भी उपलब्ध है ।निजी पुस्तकालय के संचालक पाठकों से कुछ शुल्क मासिक आधार पर नियमित रूप से  लेते हैं । गांव के कुछ युवाओं को अपने अध्ययन ,विशेष तौर पर प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए अध्ययन करने शहर के निजी पुस्तकालय में शुल्क देकर भी पढ़ने के लिए जाते देखा गया है।  गांव में पुस्तकालय की सुविधा उपलब्ध होने पर उनका पुस्तकालय का शुल्क, आने-जाने का खर्च के साथ-साथ समय की भी बचत होती है । 


 समस्याएं 


1-समाज में पुस्तक संस्कृति की कमी है ।लोग टीवी,गूगल व अन्य माध्यमों से भी सूचना प्राप्त करने  व ज्ञान बढ़ाने का जरिया ढूंढने लगते हैं ।

2-पुस्तकालय संचालन के लिए प्रशिक्षित व अनुभवी लोगों की भी कमी है ।

3- सांझे कार्यों में लोगों की रुचि हालांकि पहले से ज्यादा बढ़ी है फिर भी अभी काफी कुछ करना बाकी रहता है । 

4-पुस्तकालय के महत्व को समझने वाली स्थानीय टीम का अभाव भी एक समस्या के रूप में रेखांकित हुआ है जिसे संगठन का निर्माण करके हल किया जा सकता है ।


समस्याओं का समाधान


 जब हम समस्याओं पर मिलजुल कर बैठकर विचार करते हैं तो समाधान भी निकल ही आते हैं। सबसे पहले तो पुस्तकालय क्यों जरूरी है इसे संचालन करने वाली टीम समझे व गांव के लोगों से इस बारे में बार-बार संवाद करें और पाठकों को पुस्तकालय में आने के लिए कैसे प्रेरित किया जाए उसके लिए शिक्षण संस्थाओं, सरकारी व निजी स्कूलों व कॉलेजों के अध्यापकों व विद्यार्थियों से संपर्क करना चाहिए, ग्राम पंचायत तथा अन्य समाजसेवी संस्थाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी सहयोग लेना चाहिए। जिससे पाठकों के साथ साथ पुस्तकालय के लिए जरूरी संसाधन भी उपलब्ध हो सकेंगे। पुस्तकालय में समय-समय पर अलग-अलग विषयों पर विचार गोष्ठी व  सेमिनार आदि भी किए जाने चाहिए। इसके साथ ही ऑडियो व वीडियो जैसी आधुनिक चीजों का प्रयोग भी अच्छी तरह करना चाहिए। अच्छी फिल्में ,गीत कविताएं ,नाटक ,डॉक्यूमेंट्री आदि दिखाने की व्यवस्था भी करनी चाहिए ।और उन विषयों पर चर्चा कर सवाल-जवाब भी होने चाहिए जिससे स्थानीय लोगों की रूचि बढ़ेगी। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं को कई पुस्तकें और पत्र पत्रिकाएं पढ़नी पड़ती हैं। जिसे गरीब व साधारण परिवारों से आने वाले युवा वहन करने में कठिनाई महसूस करते है।  उनसे संवाद करके उनकी इस जरूरत को पुस्तकालय संचालन कमेटी अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूरी करने की भी कोशिश करे। ज्ञान विज्ञान समिति द्वारा लंबे समय से चलाए जा रहे पुस्तकालयों के अनुभव से यह भी निकल कर आया है कि पुस्तकालयों में बैठकर जो युवा प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से रोजगार पाते हैं या यूं कहें अपनी जिंदगी के संघर्ष में कुछ सफल हो जाते हैं तो वह पुस्तकालय के संचालन में काफी सहयोग करते हैं ।


निष्कर्ष :

पुस्तकालय संचालन अपने आप में एक बेहद चुनौतीपूर्ण काम है और समाज को बेहतर बनाने के काम में लगे लोगों के लिए एक जरूरी साधन भी है । पुस्तकालय खोलने से पहले स्थानीय लोगों से काफी विचार-विमर्श जरूरी है और एक संचालन कमेटी का गठन पहले से किया जाना चाहिए । सुचारू रूप से चलाने के लिए सक्रिय योजना और प्रचार के साथ-साथ आवश्यक पैसे का भी प्रबंध करना चाहिए ।पुस्तकालय समाज को शिक्षित व आधुनिक विचारों वाला समाज बनाने में बेहद मददगार है ।पुस्तकों से हम अपनी समस्याओं को समझने व अपने सवालों का जवाब पाने में सक्षम होते हैं। जैसा कि  किसी ने कहा है-

 कोई मेरे हाथ में ऐसी किताब दे ,  उलझे हुए सवाल का जो सीधा जवाब दे।

सविता रानी

 *आधुनिक सोच का नाटक बनाम तथाकथित आधुनिक व्यवस्था*


हरियाणा ज्ञान-विज्ञान समिति के साथ मैंने नाटक करने की शुरुआत की थी। पिछले दिनों जो बहुत ज़्यादा चल रहा था दिमाग में, वह था गैरबराबरी और उसके साथ जो दूसरी चीज़ आ रही थी वह थी - आधुनिक नाटक बनाम आधुनिक व्यवस्था।


देखने में यह लग सकता है कि आधुनिक नाटक और आधुनिक व्यवस्था में क्या विरोधाभास हो सकता है, दोनों आधुनिक हैं, एक साथ ही हैं तो विरोधाभास कैसे हो सकता है। मुझे भी ये पहली बार ही दिमाग में आया कि आधुनिक शब्द केवल आधुनिक हो यह ज़रूरी नहीं है। आधुनकि सोच अगर है तो वह आधुनिक होती है, लाज़िमी है। इसलिए अगर कहें *"आधुनिक व्यवस्था"* और हम मान लें कि यह आधुनिक है, यह काफ़ी भ्रमित करने वाली चीज़ है। 


इसी को सोचते हुए मैं इस विचार पर पहुंची कि आधुनिक व्यवस्था आधुनिक कतई नहीं है। इसमें आधुनिक शब्द केवल छौंक में जीरे का इस्तेमाल होने जैसा है कि थोड़ा-सा दिखाई दे, उसका स्वाद आए, खुशबू आए ताकि आपको लगे कि हां बहुत ही अच्छा खाना है। तो आधुनिक शब्द केवल वही काम करता है आधुनिक व्यवस्था में। जबकि आधुनिक व्यवस्था का जो आधार है वह कतई आधुनिक नहीं है, मतलब आधुनिक सोच पर आधारित नहीं है। ऐसा इसलिए क्यूंकि  आधुनिक सोच वैज्ञानिक सोच है जिसने गैरबराबरी को  चिह्नित करने का बड़ा काम किया है जो कि एक radical thought है। आधुनिक सोच व्यक्ति चेतना से सामूहिक चेतना और सामूहिक चेतना से सामाजिक चेतना की ओर ले जाती है और उसकी प्रक्रिया बहुत ज़्यादा समय की मांग करती है। आज़ादी की लड़ाई के दौरान हम ब्रिटिश सम्राज्यवाद के खिलाफ़ जिस प्रक्रिया का हिस्सा बने वह इस आधुनिक सोच का हिस्सा थी, सामाजिक चेतना का हिस्सा थी जिसमें गैरबराबरी को चिह्नित करते हुए उसको सामाजिक अन्याय की तरह देख पाने की क्षमता थी। पर जब हमने वह लड़ाई जीत ली तब हमने जो व्यवस्था बनाई उसने उस सामाजिक चेतना को बहुत ज़्यादा समय नहीं दिया, मतलब जिस चीज़ को सिर्फ़ चिह्नित करने में सदियां लग गईं उसको बदलने के लिए हमें कम से कम एक सदी का समय तो चाहिए ही था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और 1947 के बाद जो व्यवस्था बनी उसका आधार गैरबराबरी और hierarchy (ऊंचे और नीचे की व्यवस्था) बने रहे। उदाहरण के तौर पर (इसको व्यक्तिगत तौर पर बिल्कुल न लें) नौकरियों का विभाजन फ़र्स्ट क्लास, सैकंड क्लास, थर्ड क्लास और फो फोर फ़ोर्थ क्लास में हो गया। एक तरीके से वर्ण व्यवस्था को एक अलग तरीके से नए खोल में ही पेश किया गया जो सबको तार्किक लगा, न्यायोचित लगा और स्वीकार हुआ (प्रतियोगिता के नाम पर कि आप मुकाबला कीजिए और पद/स्थान हासिल कीजिए)। 


सामाजिक चेतना के दायरे को बड़ा करने में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण टूल हो सकती थी ताकि वह हर व्यक्ति की चेतना का हिस्सा बने और सब "एक बराबर" की व्यवस्था को समझने, पढ़ने के साथ-साथ उसको अमल करने में भी समर्थ हों। लेकिन जो व्यवस्था असल में बनी वह कहने भर को आधुनिक थी। वह गैरबराबरी को बढ़ावा देने वाली ही रही और उसमें शिक्षा, विज्ञान, तकनीक और कला (संगीत, नाटक कोई भी) का इस्तेमाल केवल अपने लाभ के लिए किया गया। एक अर्थशास्त्री हैं अमित भादुरी जो सुविधाभोगी वर्ग को rich minority कहते हैं, तो हुआ यह कि सब तरह के लाभ rich minority (अल्पसंख्यक अमीरों) को मिलते रहे थे, हैं और रहेंगे। और जो poor majority (बहुसंख्यक गरीब) यानी, आधे से ज़्यादा आबादी वह इन लाभों का न कभी हिस्सा थी, न है और न बन पाएगी, अगर हम इसी आधुनिक व्यवस्था को जारी रखते हैं।


आधुनिक व्यवस्था आधुनिक नाटक का इस्तेमाल भी करती है और आधुनिक नाटक ऐसे में व्यवस्था के साथ खड़ा हो जाता है, उसका प्रतिरोध करने की बजाय। आधुनिक व्यवस्था ने तीन काम किए हैं जो मुख्य धारा के मानक मान लिए गए हैं - विकास, जीवन स्तर और एस्थेटिक्स। इन मानकों के आधार पर ही तय होता है कि अगर आपके पास ये हैं तो आप आधुनिक हैं। और इन तीनों में जो समानता है वह है चीज़ों को बड़े स्केल पर दिखाना जैसे बड़ी-बड़ी इमारतें (जैसे 300 मंज़िला इमारत) और फ्लाईओवर । इसका अर्थ है कि जो आपको काल्पनिक जैसा लगे, असंभव लगे, उसको विकास का मानक बना दिया गया है। इसमें चमक-धमक है। मतलब उसमें ऑर्गनिसिटी नहीं है, स्वत: स्फूर्तता बिल्कुल नहीं है और यह कृत्रिम या अवास्तविक चीज़ आपको एक ज़रूरी हिस्सा लगने लगता है अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का। इसके लिए आधुनिक व्यवस्था ने काफ़ी चालाकी से एक क्रेडिट सिस्टम बना दिया जो कि immediate loan system है, EMI, जिसमें आप बड़ी से बड़ी चीज़ का दाम छोटी-छोटी किस्तों में चुकाते रहिए। मतलब आपके आने वाले बीस-पच्चीस साल उन चीज़ों की किस्त चुकाने के लिए हैं। बीस-पच्चीस साल के लिए इस आधुनिक व्यवस्था ने आपको ठिकाने लगा दिया और आपको एक तरीके से अपना गुलाम बना लिया, ऐसा कहा जा सकता है। मध्य वर्ग इस समय क्रेडिट सिस्टम और ईएमआई का गुलाम है। और एक बड़ा तबका जिनके पास अपना कुछ नहीं है, जो हर रोज़ काम के आधार पर अपना गुज़र-बसर करता है, वह इसी चिंता में लगा रहे, कुछ सोच-समझ न पाए। कुल मिलाकर सोचने-समझने की शक्ति को सीमित कर दे, उसको छोटा कर दे। यह कतई आधुनिकता नहीं है।


दूसरी गलती जो होती है कि आधुनिक को हम केवल आज से देखते हैं लेकिन जो भी चीज़ भूत, वर्तमान और भविष्य को अलग-अलग करके देखे वह आधुनिक नहीं हो सकती। क्यूंकि आधुनिक सोच वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है जिसका मतलब है भूत, वर्तमान और भविष्य को अलग-अलग न करके देखने की बजाय उनको एक समीकरण में देखना। आधुनिकता भूतकाल की समीक्षा करते हुए, वर्तमान में उस पर काम करते हुए और भविष्य की कल्पना में भी उसका विश्लेषण आज ही करते हुए भविष्य को स्थापित करने की कोशिश करती है। मुझे लगता है कि आधुनिक सोच आधुनिक व्यवस्था के बिल्कुल विपरीत है। बड़े स्केल पर चीज़ें देखने की बजाय छोटे या यूं कहे साधारण अथवा सूक्ष्म स्केल पर देखने की कोशिश होती है, अर्थात् बहुत मिनिमल होगा, ऑर्गेनिक होगा, इवोल्व होगा, थोपा हुआ नहीं होगा। इस आधुनिक व्यवस्था ने एक काम और किया है, वह है विज्ञान, तकनीक और शिक्षा आदि सबका इस्तेमाल काफ़ी अच्छे ढंग से और चालाकी से कर लिया। अब अगर में यह बोल रही हूं तो किसी को लग सकता है कि मैं विज्ञान के खिलाफ़ हूं। लेकिन मुझे लगता है कि वैज्ञानिक सोच और तकनीकी सोच में यकीन रखना अलग बात है तथा विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल व्यवस्था के लिए करना एवं उसमें यकीन रखना अलग बात है। मैं व्यवस्था के लिए उसके इस्तेमाल में यकीन नहीं रखती। मैं एक किताब पढ़ रही थी जो कि इम्यून सिस्टम पर आधारित थी और उसमें vaccine पर जो बहस या कंट्रोवर्सीज़ हैं, वे भी है। चिकनपॉक्स का वैक्सीन कैसे तैयार हुआ, उस पर एक छोटा सा brief था उसमें। सबसे पहले यह इस्तेमाल की गई थी एक्सपेरिमेंट के तौर पर - जानवरों और गुलामों पर। यहां एक सवाल उठता है कि कौन तय करता है कि इंसान की ज़िंदगी ज़्यादा मूल्यवान है किसी भी दूसरी प्रजाति से (मतलब जानवरों से)। और इंसानों में भी categories बना दी गईं कि जो गुलाम है, गरीब है, जिसके पास कुछ नहीं है, उस पर एक्सपेरिमेंट होगा क्यूंकि उसकी ज़िंदगी महत्त्वपूर्ण नहीं है, ऊंची जाति के लोगों, राजा और अमीर लोगों के मुकाबले।


तो एक्सपेरिमेंट होगा गरीब पर और उसका फ़ायदा मिलेगा अमीर को। इस समय जब हम कोरोना की वेक्सीन को लेकर चिंतित हैं, पूरी दुनिया की आधे से ज़्यादा आबादी इलाज का खर्च न उठा पाने की वजह से, भूख से, प्यास से मर जाती है उस पर पूरी दुनिया ने कभी इतनी चिंता प्रदर्शित नहीं की जो इस समय की। मुझे यह सवाल बहुत महत्त्वपूर्ण लगता है क्यूंकि यह सवाल व्यवस्था और उसकी गैर-बराबरी पर है।


*अगर इस सवाल पर पूरी दुनिया एक साथ आए तो हम आधुनिक की श्रेणी में आते हैं वरना हम बर्बर ही हैं और इसीलिए आज भी पितृसत्ता, लिंग-भेद, जाति-भेद, नस्ल-भेद हमारे अंदर भरे बैठे हैं।*


जिसको हम आधुनिक व्यवस्था मानते हैं उसमें कुछ चुनिंदा लोगों को ही फ़ायदा मिलता रहा है। इतने सारे आंकड़े हैं जो दिखाते हैं कि गैर-बराबरी आपकी कल्पना से भी बहुत अधिक बढ़ी है। मैं यहां पर वे आंकड़े नहीं रखना चाहती क्यूंकि जो आदमी देख और समझ सकता है उसे आंकड़ों की मदद की ज़रूरत नहीं और जो नहीं देखना-समझना चाहता उसे आप जितने मर्ज़ी आंकड़े दिखा लें, वह नहीं मानेगा और आधुनिक व्यवस्था का अंध भक्त बना रहेगा। और इसी तरह आधुनिक नाटक को भी रीडिफ़ाइन या पुनर्परिभाषित करने की ज़रूरत है। आधुनिक सोच का नाटक तथाकथित आधुनिक व्यवस्था के प्रतिरोध में खड़ा होता है क्यूंकि यह सामाजिक चेतना से सरोकार रखता है। एक अभिनेत्री के तौर पर मेरा पहला नाटक था - एक नई शुरुआत। यह नाटक आधुनिक सोच का नाटक है और इसलिए आधुनिक है। यह नाटक एक कार्यशाला में   विचार-विमर्श करते हुए  मिलकर लिखा गया, इंप्रोवाइज़ और evolve हुआ जिसमें गैर-बराबरी का प्रतिरोध दर्ज किया गया और यह नाटक हरियाणा के लगभग हर ज़िले, गांव, नुक्कड़ पर खेला गया। इस नाटक के अनुभव अभी भी ज़िंदा हैं और ऐसा इसलिए है कि उस नाटक ने चेतना पैदा की और नाटक की अवधारणा और नाटक के लिए एक नज़रिया दिया। इसलिए 'एक नई शुरुआत' बहुत स्पेशल है। 


मुझे लगता है कि इस समय एक रंगकर्मी सिर्फ़ रंगकर्मी नहीं है बल्कि एक आर्टिस्ट का artist-cum-historian, artist-cum-scientist, artist-cum-activist, यानी सब कुछ कर पाने के लिए तत्पर व्यक्ति, होना ज़रूरी है।  अगर आपके लिए आधुनिक नाटक आधुनिक सोच का नाटक है तो यह हमेशा गैर-बराबरी पर आधारित व्यवस्था के प्रतिरोध की आवाज़ होगा, चाहे व्यवस्था किसी भी रूप में अपना नाम बदल कर आए।  


‌ - सविता रानी

जिला कार्यकारिणी की बैठक का सर्कुलर*

 *जिला कार्यकारिणी की बैठक का सर्कुलर*


हरियाणा ज्ञान-विज्ञान समिति पानीपत की जिला कार्यकारिणी की बैठक दिनांक 5 फरवरी 2023 को शहीद वीरेंद्र स्मारक भवन समालखा में जिलाध्यक्ष संतीश चौहान की अध्यक्षता व जिला सचिव मदन पाल छौक्कर के संचालन में सम्पन्न हुई। जिसमें  वेदपाल, कुलदीप धीमान,सुनील कुमार, सुमन, संगीता, मोमिन,शीतल ,आशु उपस्थित रहे। रीना ,शीशपाल, रामनिवास ,मनोज , श्रीकांत , भीम सिंह ,राजपाल दहिया, सतीश कुमार विभिन्न मजबूरियों के चलते बैठक में शामिल नहीं हो पाए। 


*एजैण्डे:* 

1. शोक प्रस्ताव। 

 2. पिछले कार्यों की रिपोर्ट ।

  3. जिला व राज्य सम्मेलन।

  4.बजट एवं आगामी योजना; 

  5 अन्य अध्यक्ष की अनुमति से ।

*शोक प्रस्ताव:* प्राध्यापक मुकेश कुमार केआकस्मिक निधन जिला सचिव के भतीजे जगदीश की सड़क दुघर्टना से मौत, पट्टी कल्याणा से आशा वर्कर ऊषा की आत्म हत्या, राजपाल दहिया के छोटे भाई जयकुवार  व मुरसलीन की माता जी के निधन और प्राकृतिक घटनाओं एवं हादसों में मारे गए लोगों की मृत्यु पर गहरा शोक प्रकट करते हुए 2 मिनट का मौन रखा गया। इसके बाद उपरोक्त सभी एजेन्डों पर जिला सचिव द्वारा संक्षिप्त रूपरेखा रखी गई। जिन पर उपस्थित साथियों द्वारा व्यापक विचार-विमर्श उपरांत लिए गए निर्णयों का ब्यौरा निम्नलिखित है:


*1. जिला सम्मेलन (12मार्च 2023) की तैयारियां, बजट एवं आगामी योजना:*

इस बिन्दु पर रिपोर्ट किया गया कि अब तक पानीपत में 182 की सदस्यता की गई है ।जिसमें इसराना में 10 पानीपत में 18 समालखा में 154 की सदस्यता हुई है । अधिकतर संख्या महिलाओं की  है । हथवाला, पट्टी कल्याणा, समालखा, इसराना में डा शंकर लाल सामाजिक न्याय मंच , राक्सेड़ा तथा पानीपत में इकाई सम्मेलन हो चुके हैं ।किवाना, बसाड़ा,  सिम्भलगढ नारायणा में इकाई सम्मेलन की योजना है ।10 वां जिला प्रतिनिधि सम्मेलन 12 मार्च 2023 को समालखा में आयोजित करने पर सहमति बनी है ।  जिला सम्मेलन की तैयारियों के सन्दर्भ में रिपोर्ट लेखन पर जिम्मेदारी तय की गई है । रिपोर्ट की पृष्ठभूमि सतीश चौहान, सांगठनिक, गतिविधियों व महिला सशक्तिकरण पर मदन पाल, नाटक पर मोमिन व आशु , विज्ञान लोकप्रियकरण पर प्राध्यापक कुलदीप सिंह, शिक्षा पर वेदपाल , शीतल व शीशपाल लिखेंगे। भविष्य योजना पर सचिव मण्डल में चर्चा करते हुए शामिल करके लिखा जायेगा । 

सम्मेलन के लिए पर्चा लिखा गया है । 1000 पर्चे छपवाने की राय बनी है ।रिपोर्ट लिखने की समय सीमा 15-20 फरवरी तक रहेगी। 

सम्मेलन में उद्घाटन सत्र के अवसर पर मुख्य वक्ता के लिए सामाजिक बदलाव में आम जन की भूमिका विषय पर मंजीत राठी से बात करने की राय बनी है। राज्य केन्द्र से राज्य सचिव, राज्य अध्यक्ष के समेत करनाल व सोनीपत जिलों से आब्जर्वर शामिल होंगे। जिला सम्मेलन एक दिवसीय आयोजित होगा ।

 राज्य सम्मेलन (8-9 अप्रैल 2023, रोहतक):*

इस बिंदु पर रिपोर्ट किया गया कि 10वां त्रिवार्षिक राज्य प्रतिनिधि सम्मेलन आगामी 8-9 अप्रैल 2023 (शनिवार-रविवार) को रोहतक में किया जाएगा। जिसकी तैयारियां चल रही हैं। इसके खुले सत्र में 150 प्रतिनिधियों सहित 400 लोगो को शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है। सम्मेलन के मौके पर स्मारिका प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया है ताकि उसमें बेहतर एवं पठनीय सामग्री के साथ-साथ बजट हेतू चन्दा भी जुटाया जा सके। इसके प्रकाशन की जिम्मेदारी जिला जीन्द को दी गई  है। जिला कार्यकारणी डेलिगेट रहेगी । कार्यकारिणी की संख्या के हिसाब से दुगनी संख्या में लोगों को खुले सत्र के लिए जिलों को कोटा दिया गया है । 10000 रूपये जिला पानीपत को  राज्य सम्मेलन के लिए चन्दा देना होगा। राज्य कार्यकारिणी के निर्णय अनुसार लर्निंग सैन्टर पर पुस्तक छापी जाएगी । पानीपत से भी महिला पुस्तकालय, लर्निंग सैन्टर हथवाला, सिम्बलगढ तथा किवाना लाइब्रेरी पर लिखा गया है । हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति का संविधान भी सम्मेलन में पास करवाने का प्रमुख ऐजेण्डा रहेगा। कोविड के दौरान समिति द्वारा आन लाइन मोड  में किये गये  30 विषयों की प्रस्तुति को भी पुस्तक की सेफ में लाया जाएगा।


बजट  - जिला सम्मेलन की तैयारियों के लिए 23 फरवरी से चन्दा अभियान शूरू होगा । 2दिन बाजार समालखा, चयनित सूचि बनाकर 50000 रुपए इकट्ठा करने का लक्ष्य तय किया है । राज्य स्तर से निकलने वाली स्मारिका के लिए चन्दा करने पर आधा चन्दा जिला स्तर पर ही रहेगा   

जारीकर्ता :*

मदन पाल छौक्कर

जिला सचिव पानीपत।

ऑक्स   फॉम 

 अंतरराष्ट्रीय वित्त शोध संस्था ऑक्स   फॉम ने  दावोस  में जारी रिपोर्ट ने हमारे  देश की आय के आधार पर गैर बराबरी को प्रस्तुत किया है की हमारे देश में सबसे निचले वर्ग के 50% लोगों के पास संपत्ति देश की कुल संपत्ति का केवल 3% ही  है जबकि देश के 1% अमीर लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40% भाग है रिपोर्ट में लैंगिक  गैर बराबरी भी चरम सीमा पर है हमारे देश में महिला श्रमिकों को पुरुष श्रमिक के वेतन अथवा दिहाड़ी दे में  बराबर कार्य करने के बावजूद भी  केवल 63% ही वेतन अथवा दिहाड़ी मिलती है यह जेंडर के साथ सबसे बड़ा अन्याय है  अनुसूचित वर्ग के मजदूरों को सामाजिक दृष्टि से संपन्न वर्गों के मुकाबले केवल 50% ही परीश्रमिक मिलता है तथा ग्रामीण श्रमिकों  को शहरों में काम करने वाले मजदूरों के मुकाबले  केवल 50% ही परिश्रमिक मिलता है ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं व  खेतिहर मजदूरों के गरीब रहने का मुख्य कारण  उनको शहरी मजदूरों के समान काम के मुकाबले 50% कम परिश्रमिक मिलना है इतनी गैर बराबरी बढ़ने के लिए देश में लागू आर्थिक नीतियां सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं यदि हमारे देश में सहकारिता को प्राथमिकता से जमीनी स्तर पर लागू किया जाए तो उपरोक्त असमानता को कम  किया जा  सकता  है हरियाणा विज्ञान मंच ने हरियाणा उद्यान विभाग को कई बार सुझाव दिया है कि उत्कृष्टता सब्जी केंद्र घरौंडा में पौध तैयार करने में 90% महिला मजदूर कार्य करती हैं वे सब्जी की नर्सरी तैयार करने में बहुत निपुण है हरियाणा उद्यान विभाग की ओर से   ग्रामीण महिलाओं को पोली हाउस लगाने का प्रशिक्षण देकर सहकारिता से पोली हाउस चलाने के लिए स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रेरित किया जाए तो इससे उन्हें स्थाई रोजगार मिलेगा  इसी तरह हरियाणा सरकार  स्वयं सहायता समूहो  के लिए खाद्य प्रसंस्करण से उत्पाद तैयार करने को केवल सहकारिता के लिए आरक्षित कर दिया जाए इससे हरियाणा में 100000 महिलाओं को स्थाई रोजगार मिलेगा  धन्यवाद डॉ राजेंद्र सिंह राज्य कमेटी सदस्य हरियाणा विज्ञान मंच 98 130 87 186


http://www.oxfamindia.org

Statement on GM Mustard Trials

 All-India Peoples Science Network

Statement on GM Mustard Trials
The Genetic Engineering Appraisal Committee (GEAC) on 18th October 2022 permitted production
and field testing of hybrid seeds of genetically modified (GM) Mustard named DMH II. Commercial release
of the seeds has still not been allowed pending open field trials. The approval would be for 4 years
extendable depending on compliance with various conditions. The current approval is the most significant
step in India regarding GM food since a moratorium was announced on the release of Bt Brinjal in 2010.
AIPSN notes that many scientists and farmers organizations have expressed serious concerns on
different grounds regarding the GEAC decision.Noting that the GEAC release also specifies that the field
trials would study the impact on pollinators and other insects,AIPSN strongly suggests that such studies be
conducted over a longer period and on a range of other ecological parameters as well.
Concerns have also been expressed about the herbicide-tolerance built-in to the GM hybrid. Whereas
the GEAC release clarifies that the particular “bar” gene is a marker for herbicide tolerance only
during“hybrid seed production… not for cultivation in the farmer’s field under any situation” it would have
been better if seed production trials take place in a controlled rather than in an open environment so as to
assess various risks before conducting open field trials.
AIPSN urges that open field testsif any be conducted with utmost precautions and in carefully
selected locations to ensure strict isolation from neighboring fields of mustard. The trials should be
conducted by public bodies such as ICAR or agricultural universities etc under supervision of an
independent committee of experts from different relevant disciplines including ecologists, eco-toxicologists,
pollination biologists, farmers’ organizations and concerned civil society organizations. The trials should be
conducted with full transparency, and the data generated should periodically be placed in the public domain.
AIPSN welcomes exploration of different kinds of science-based solutions to the problems of
agriculture including the present need to find solutions for low productivity of edible oilseeds and increasing
dependence on imports in India. AIPSN urges the government to also explore a wide variety of diverse
technological optionsincluding bio-technological solutions that are ecologically, socially and economically
viable within the framework of innovation through the public sector research system. Further, in order to
make an immediate dent on production and imports the government should encourage farmers to increase
mustard production by announcing a higher MSP and include mustard oil in the items to be sold through
public distribution system.
AIPSN notes that, in contrast to earlier releases by agri-business corporations, DMH-II has been
developed by a public sector laboratory in Delhi University in collaboration with the National Dairy
Development Board (NDDB). Nevertheless, DMH-II is a hybrid seed which has to be purchased by the
farmer every season, not a variety which can be bred by farmers themselves. So there is concern whether the
technology of seed production, or the production and distribution itself, would remain with PSUs or handed
over to private entities, with possibly adverse effects on prices, availability and access by farmers. AIPSN
urges the government to strengthen the contribution of the public sector in production of mustard seeds also.
Finally, AIPSN urges that any eventual decision on commercial release must be taken after thorough
rigorous assessments of results of these trials and based on a detailed plan for regulatory systems and
institutional framework governing modalities of seed production and distribution, including provisions for
public scrutiny of the same.
For Contact:
Asha Mishra Parthib Basu
General Secretary, AIPSN Convenor, Agriculture Desk, AIPSN
Mobile: 9425302012 Mobile: 9831967500
Email: gsaipsn@gmail.com

Out of the 22 districts

 Out of the 22 districts, 15 districts have a population

between 10-20 lakhs, and 6 districts have a population less
than 10 lakhs (Annexure 1.1 Haryana profile). The Haryana’s
Sex ratio at birth (843 females for every 1000 males) is
less than the national average of 899 (Annexure 1.2). It is
estimated that 17.1% of the total population are in the age
group of 10-19 years, 46.4% within 20 to 59 years; while
9.9% are 60 years and above (Figure 2). The crude birth
rate and the crude death rate have declined from 24.3 &
6.7 in 2005 to 20.1 & 5.9 in 2019, respectively (Annexure
2; figure 2). The literacy rate increased from 67.9% in 2001
to 75.6% in 2011, with male & female literacy rates being
84.1% and 65.9%, respectively (Annexure 1.1). As per the
ESAG 2018 report, the Gross Enrollment Rate (GER)i
is
26.1% for higher education, 59.59% for senior secondary
education, 84.22% for secondary education, 91.77% for
elementary education, and 91.41% for primary education.

Haryana data

 Out of the 22 districts, 15 districts have a population

between 10-20 lakhs, and 6 districts have a population less
than 10 lakhs (Annexure 1.1 Haryana profile). The Haryana’s
Sex ratio at birth (843 females for every 1000 males) is
less than the national average of 899 (Annexure 1.2). It is
estimated that 17.1% of the total population are in the age
group of 10-19 years, 46.4% within 20 to 59 years; while
9.9% are 60 years and above (Figure 2). The crude birth
rate and the crude death rate have declined from 24.3 &
6.7 in 2005 to 20.1 & 5.9 in 2019, respectively (Annexure
2; figure 2). The literacy rate increased from 67.9% in 2001
to 75.6% in 2011, with male & female literacy rates being
84.1% and 65.9%, respectively (Annexure 1.1). As per the
ESAG 2018 report, the Gross Enrollment Rate (GER)i
is
26.1% for higher education, 59.59% for senior secondary
education, 84.22% for secondary education, 91.77% for
elementary education, and 91.41% for primary education.

Greece women

 In ancient Greece, women were forbidden to study medicine for several years until someone broke the law. Born in 300 BCE, Agnodice cut her hair and entered Alexandria medical school dressed as a man. While walking the streets of Athens after completing her medical education, she heard the cries of a woman in labour. However, the woman did not want Agnodice to touch her although she was in severe pain, because she thought Agnodice was a man. Agnodice proved that she was a woman by removing her clothes without anyone seeing and helped the woman deliver her baby.

The story would soon spread among the women and all the women who were sick began to go to Agnodice. The male doctors grew envious and accused Agnodice, whom they thought was male, of seducing female patients. At her trial, Agnodice, stood before the court and proved that she was a woman but this time, she was sentenced to death for studying medicine and practicing medicine as a woman.
Women revolted at the sentence, especially the wives of the judges who had given the death penalty. Some said that if Agnodice was killed, they would go to their deaths with her. Unable to withstand the pressures of their wives and other women, the judges lifted Agnodice's sentence, and from then on, women were allowed to practice medicine, provided they only looked after women.
Thus, Agnodice made her mark in history as the first Greek female doctor, physician and gynecologist. This plaque depicting Agnodice at work was excavated at Ostia, Italy.

Inequalities

 Inequalities are growing in India – this has been

corroborated by scholars and government bodies
alike. The impact of inequality is especially stark at the
margins of the Indian society, with some communities
such as the Scheduled Tribes (STs) suffering from
physical remoteness and systematic exclusion from
the means to achieve vertical mobility. Furthermore,
the concentration of wealth continues to be around
primordial characteristics such as caste. On one
hand, inherited wealth and caste privilege continue
to shape power and influence and on the other hand,
we see the persistence of marginalization among
historically disadvantaged who are trapped in intergenerational
poverty.
Wealth Inequality
Oxfam India’s 2023 India Supplement reveals some stark
findings proving that the gap between the rich and the
poor is indeed widening. Following the pandemic in 2019,
the bottom 50 per cent of the population have continued
to see their wealth chipped away. By 2020, their income
share was estimated to have fallen to only 13 per cent of
the national income and have less than 3 per cent of the
total wealth. Its impact has been exceptionally poor diets,
increase in debt and deaths. This is in stark contrast
to the top 30 per cent who own more than 90 per cent
of the total wealth. Among them, the top 10 per cent own
more than 80 per cent of the concentrated wealth. The
wealthiest 10 per cent own more than 72 per cent of the
total wealth, the top 5 per cent own nearly 62 per cent
of the total wealth, and the top 1 per cent own nearly
40.6 per cent of the total wealth in India.
The country still has the world’s highest number of
poor at 228.9 million. On the other hand, the total
number of billionaires in India increased from 102 in
2020 to 166 billionaires in 2022. The combined wealth
of India’s 100 richest has touched INR 54.12 lakh crore.
The wealth of the top 10 richest stands at INR 27.52
lakh crore – a 32.8 per cent rise from 2021.
Increase in revenue during hard
times and inflation
Before the pandemic, in 2019, the Central Government
reduced the corporate tax slabs from 30 per cent to
22 per cent, with newly incorporated companies paying
a lower percentage (15 per cent). This new taxation
policy resulted in a total loss of INR 1.84 lakh crore
and had a significant role in the 10 per cent downward
revision of tax revenue estimates in 2019-20. To
increase revenue, the Union Government adopted a
policy of hiking the Goods and Services Tax (GST) and
excise duties on diesel and petrol while simultaneously
cutting down on exemptions. The indirect nature of
both the GST and fuel taxes make them regressive,
which invariably burdens the most marginalized.
The Ministry of Statistics and Programme Implementation
reported that the all-India inflation rates based on both
CPI (Consumer Price Index) (General) and CFPI (Consumer
Food Price Index) were consistently higher in rural
India (7.56 per cent) than urban India (7.27 per cent) in
September 2022. Though overall inflation declined in
October, the gap between rural and urban inflation only
widened, reaching nearly 2.5 times the gap in September
2022. Moreover, the weightage for “food products” in
the inflation calculation is nearly double in rural India
compared to urban India reflecting how food inflation in
rural India has primarily driven the average increase in
prices of commodities.
In order to reduce inflation, the Reserve Bank increases
the repo rate, which is understood as the rate at which
the Reserve Bank lends money to commercial banks.
An increase in the repo rate would ideally reflect rising
consumer lending rates and thereby suppress demand.
However, the Reserve Bank’s hawkish monetary policy
of hiking the repo rate has little consequence in
ensuring an increase in supply. Consequently, despite
increasing the repo rate five times by a total of 225
basis points from 4 per cent to 6.25 per cent (between
May and December 2022), inflation has consistently
breached the 6 per cent statutory limit set out in the
amended Reserve Bank of India Act, 1934. 

विज्ञान कभी खतरे में नहीं आता.

 # विज्ञान कभी खतरे में नहीं आता.

# किसी भी बड़े वैज्ञानिक की कोई किताब खरीद कर चौराहे पर जाइए और उसके पन्ने फाड़ना शुरू कीजिए,
चाहे उसके चिथड़े कर डालिए, उसको रौंद दीजिए...
इतने में भी मन ना भरे तो उसके पन्ने जला दीजिए। उसे जल में विसर्जित कर दीजिए.
इस पूरी घटना का वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डालिए।
अगले दिन आपको न ही  किसी वैज्ञानिक से उस ग्रंथ के अपमान से  सम्बंधित न  ही कोई धमकी मिलेगी, न ही कोई वैज्ञानिक संगठन आपके खिलाफ रैली निकालेगा,
न ही आपको सोशल मीडिया पर गालियाँ दी जाएंगी और आलोचना  की जाएगी
और न ही आपके खिलाफ किसी वैज्ञानिक संगठन द्वारा  सबक सिखाने, जीभ काटने, गरदन कलम करने का फरमान जारी होगा
# ज्ञान विज्ञान और "सत्य" किसी के पन्ने फाड़ने या जलाने से मिट नहीं जाता।
विज्ञान को,सच को अपने प्रचार के लिए किसी चमत्कार या लीपापोती की जरूरत नहीं पड़ती.

# ज्ञान विज्ञान  एक ऐसा धर्म है जो कभी खतरे में नहीं आता,और न नष्ट किया जा सकता है.स्कूल के विद्यार्थियों से लेकर बड़ी प्रयोगशालाओं तक मे वैज्ञानिक निरन्तर प्रयोग, अवलोकन, परीक्षण, के आधार पर निष्कर्ष पर पहुंचते रहते है ,इसी लिए वैज्ञानिक सत्य निरन्तर  नए तथ्यों को सामने लाता है.

# किसी भी वैज्ञानिक सत्य को सही साबित करने के लिए भीड़, हिंसा का सहारा लेने की कतई जरूरत नहीं होती।

# "वैज्ञानिक सत्य" कभी
  भय ,भ्रम  अंधविश्वास,हिंसा के सहारे किसी पर थोपा नहीं जाता,बल्कि व्यापक जनकल्याण के लिए सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया जाता है.
आधुनिक चिकित्सा, संचार,टेक्नोलॉजी, कृषि, उद्योग, इनसे बेहतरीन प्रमाण हैं
# विज्ञान को केवल परीक्षा पास कर  डिग्री पाने के लिए सिर्फ पढ़ें ही नही ,बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण को जीवन मे अमल में लाएं.
@सभी मित्रों को शुभकामनाओं सहित🙏
डॉ .दिनेश मिश्र

Gandhi

 



चेहरा सफेद पड़ गया और वंदन के लिए जुड़े हाथ अलग हो गए। क्षण भर वे अपनी सहयोगी आभा के कंधे पर अटके रहे। उनके मुंह से शब्द निकला हे राम। तीसरी गोली- सीने में दाईं तरफ मध्य रेखा से चार इंच दाईं ओर लगी और फेफड़े में जा घुसी। आभा और मनु ने गांधीजी का सिर अपने हाथ पर टिकाया। इस गोली के चलते ही बापू का शरीर ढेर होकर धरती पर गिर गया, चश्मा निकल गया और पैर से चप्पल भी। 
कई लोग उस वक्तत यह जान ही नहीं पाए कि हुआ क्या, लेकिन जब देखा, खून से लतपत बापू जमीन पर पड़े हैं, तो आंसुओं की मानो बाढ़ आ गई।

आंधी आंखें खुली हुई थीं उन्हें बिरला भवन स्थित उनके खंड में ले जाया गया। आंखें आधी खुली हुई थीं। लग रहा था शरीर में अभी जान बची है। कुछ देर पहले ही बापू के पास से उठ कर गए सरदार पटेल तुरंत वापस आए। उन्होंने बापू की नाड़ी देखी। उन्हें लगा कि नाड़ी मंद गति से चल रही है। इसी बीच वहां हाजिर डॉ. द्वारकाप्रसाद भार्गव पहुंचे। गोली लगने के दस मिनट बाद पहुंचे डॉ. भार्गव ने कहा, ‘‘बापू को छोड़ कर गए दस मिनट हो चुके हैं।''कुछ देर बाद डॉ. जीवराज मेहता आए और उन्होंने बापू की मृत्यु की पुष्टि की। इसके बाद गोडसे को गिरफ्तार कर लिया गया।

 

प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नायर ने उस दिन को याद करते बताते हैं,  मैं उस वक्त उर्दू अखबार 'अंजाम' के लिए काम कर रहा था। मैंने न्यूज एजेंसी के टिकर पर चेतावनी सुनी। मैं भागते हुए टेलीप्रिंटर के पास पहुंचा और मैंने अविश्वसीनय शब्द 'गांधी को गोली लगी' पढ़े।

 

उन्होंने कहा, मैं कुर्सी पर गिर पड़ा, लेकिन होश सम्भालते हुए बिरला हाउस की तरफ भागा। वहां कोलाहल मचा हुआ था। गांधी सफेद कपड़े पर लेटे थे और हर कोई रो रहा था। जवाहर लाल नेहरू बिल्कुल स्तब्ध और दुखी नजर आ रहे थे।


दिल्ली के '5, तीस जनवरी मार्ग' पर 30 जनवरी 1948 को उनकी हत्या उस वक्त की गई, जब वे शाम की प्रार्थना के लिए जा रहे थे। यह वही जगह थी जहां महात्मा गांधी ने अपनी जिंदगी के अंतिम 144 दिन बिताए थे और जीवन के अंतिम पल भी। 

 

वर्तमान में यातायात के हल्के शोर के बावजूद भी इस स्थान पर आज भी शांति भंग नहीं हुई है। इस मार्ग पर, जहां से गांधी जी गुजरे, संगमंगमर से उनके पदचिन्ह बना दिए गए, जिस पर लिखा है हे राम। 

लेकिन महात्मा गांधी का जीवन उस इंसान जैसा साबित हुआ, जो पेड़ तो लगाता है, लेकिन उसकी छांव और फल की अपेक्षा नहीं करता। गांधीजी ने अपने जीवन के 12 हजार 75 दिन स्वतंत्रता संग्राम में लगाए, परंतु उन्हें आजादी का सुकून मात्र 168 दिनों का ही मिला।

वेबदुनिया पर पढ़ें


Bruno

 In early 1st century Claudius Ptolemy the renowned natural philosopher concluded on his observation that earth is the centre of universe


As there is no instruments and developed science to check the fact

Everyone accepted the theory as fact

Later on Christian when flourished in mid 2–3 century it was interpreted by church authority

That it's already written on Bible because there are verse where it says something like sun arises from east and sets in west

Which somewhere mean sun is revolving andClaim CH901:

The earth is fixed at (or near) the center of the universe. The sun and other planets travel around it.
That is what the Bible plainly says [Ps. 93:1, Ps. 19:1-6, Joshua 10:12-14] and what the earth is stationaryproclaims his handiwork. Psalms 19:1

He set the earth on its foundations, so that it should never be moved. Psalms 104:5for reckoning."

--sura 14, verse 33:
"For you (God) subjected the sun and the moon, both diligently pursuing their courses. And for you He subjected the night and the day."
Quran
The Quran does not explicitly say that the Sun revolves around the earth. It says that the Sun and the Moon move within defined orbits.