Tuesday, February 7, 2023

Gandhi

 



चेहरा सफेद पड़ गया और वंदन के लिए जुड़े हाथ अलग हो गए। क्षण भर वे अपनी सहयोगी आभा के कंधे पर अटके रहे। उनके मुंह से शब्द निकला हे राम। तीसरी गोली- सीने में दाईं तरफ मध्य रेखा से चार इंच दाईं ओर लगी और फेफड़े में जा घुसी। आभा और मनु ने गांधीजी का सिर अपने हाथ पर टिकाया। इस गोली के चलते ही बापू का शरीर ढेर होकर धरती पर गिर गया, चश्मा निकल गया और पैर से चप्पल भी। 
कई लोग उस वक्तत यह जान ही नहीं पाए कि हुआ क्या, लेकिन जब देखा, खून से लतपत बापू जमीन पर पड़े हैं, तो आंसुओं की मानो बाढ़ आ गई।

आंधी आंखें खुली हुई थीं उन्हें बिरला भवन स्थित उनके खंड में ले जाया गया। आंखें आधी खुली हुई थीं। लग रहा था शरीर में अभी जान बची है। कुछ देर पहले ही बापू के पास से उठ कर गए सरदार पटेल तुरंत वापस आए। उन्होंने बापू की नाड़ी देखी। उन्हें लगा कि नाड़ी मंद गति से चल रही है। इसी बीच वहां हाजिर डॉ. द्वारकाप्रसाद भार्गव पहुंचे। गोली लगने के दस मिनट बाद पहुंचे डॉ. भार्गव ने कहा, ‘‘बापू को छोड़ कर गए दस मिनट हो चुके हैं।''कुछ देर बाद डॉ. जीवराज मेहता आए और उन्होंने बापू की मृत्यु की पुष्टि की। इसके बाद गोडसे को गिरफ्तार कर लिया गया।

 

प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नायर ने उस दिन को याद करते बताते हैं,  मैं उस वक्त उर्दू अखबार 'अंजाम' के लिए काम कर रहा था। मैंने न्यूज एजेंसी के टिकर पर चेतावनी सुनी। मैं भागते हुए टेलीप्रिंटर के पास पहुंचा और मैंने अविश्वसीनय शब्द 'गांधी को गोली लगी' पढ़े।

 

उन्होंने कहा, मैं कुर्सी पर गिर पड़ा, लेकिन होश सम्भालते हुए बिरला हाउस की तरफ भागा। वहां कोलाहल मचा हुआ था। गांधी सफेद कपड़े पर लेटे थे और हर कोई रो रहा था। जवाहर लाल नेहरू बिल्कुल स्तब्ध और दुखी नजर आ रहे थे।


दिल्ली के '5, तीस जनवरी मार्ग' पर 30 जनवरी 1948 को उनकी हत्या उस वक्त की गई, जब वे शाम की प्रार्थना के लिए जा रहे थे। यह वही जगह थी जहां महात्मा गांधी ने अपनी जिंदगी के अंतिम 144 दिन बिताए थे और जीवन के अंतिम पल भी। 

 

वर्तमान में यातायात के हल्के शोर के बावजूद भी इस स्थान पर आज भी शांति भंग नहीं हुई है। इस मार्ग पर, जहां से गांधी जी गुजरे, संगमंगमर से उनके पदचिन्ह बना दिए गए, जिस पर लिखा है हे राम। 

लेकिन महात्मा गांधी का जीवन उस इंसान जैसा साबित हुआ, जो पेड़ तो लगाता है, लेकिन उसकी छांव और फल की अपेक्षा नहीं करता। गांधीजी ने अपने जीवन के 12 हजार 75 दिन स्वतंत्रता संग्राम में लगाए, परंतु उन्हें आजादी का सुकून मात्र 168 दिनों का ही मिला।

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