Tuesday, February 7, 2023

बादलों को भेदकर धरती का सबसे सटीक नक्शा

 2019


बादलों को भेदकर धरती का सबसे सटीक नक्शा

120 मीटर की दूरी बरकरार रखते हुए 27,000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ना, दो उपग्रहों से लगातार ऐसा करवाना वैज्ञानिकों के लिए भी बड़ी चुनौती है। आखिर क्यों इतनी खास है ये उड़ान।


अनंत आकाश में कुछ आंखें हैं जो हमें लगातार देख रही हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं देख पाते। टेरा सार एक्स जर्मन रडार उपग्रह है। ये ऐसी चीजें कर सकता है जो ऑप्टिकल सैटेलाइट नहीं कर पातीं। अंतरिक्ष में इस वक्त 1,000 से ज्यादा उपग्रह हैं। लेकिन एक दूसरे से 120 मीटर की दूरी पर साथ उड़ रहे टेरासार एक्स और टांडेम एक्स खास हैं। ये अक्टूबर 2010 से ही डेटा रिकॉर्ड कर धरती पर भेज रहे हैं। इन उपग्रहों को भेजने वाले जर्मन वैज्ञानिक उससे मिले डेटा की मदद से हमारी पृथ्वी के भूतल का अब तक का सबसे सटीक नक्शा बना रहे हैं।


इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर प्रो. अलबैर्तो मोरेरा कहते हैं, "वे मौसम और रोशनी की परवाह किए बगैर धरती की हाई डिफिनिशन तस्वीर ले सकते हैं।"


क्यों खास हैं रडार सैटेलाइट

रडार सैटेलाइट धरती की ओर विद्युत चुम्बकीय तरंगें भेजती हैं और परावर्तित तंरगों को मापती है। इस डाटा को एक साथ मिलाकर धरती का प्रोफाइल तैयार किया जाता है। टेरासार एक्स धरती के चक्कर लगा रही है और डाटा जमा कर जर्मन एयरोस्पेस एजेंसी डीएलआर को भेज रही है। टेरासार एक्स और उसका भाई टांडेम एक्स प्रयोगशाला से नियंत्रित किया जाता है। दो सैटेलाइटों का मतलब है ज्यादा सूचना।


टांडेम एक्स की मदद से धरती की नई तस्वीर बनाई जा रही हैं जो अब तक की तस्वीरों से 30 गुना सटीक है। ये धरती की नई तस्वीरें हैं। रडार के एंटीना 3।8 मीटर चौड़े और 300 किलो के हैं।

उन्हें 0।03 डिग्री की बारीकी तक लक्षित किया जा सकता है। तैनाती से पहले एंटीना को टेस्ट वेव का इस्तेमाल कर कैलीब्रेट किया गया। चौकस और सूक्ष्म काम सिर्फ शुरुआती दौर में ही जरूरी नहीं होता। जुड़वां सैटेलाइटों को हैंडल करने में वैज्ञानिकों के सामने दूसरी चुनौतियां भी हैं।


आकाश में अद्भुत कारीगरी


प्रो. अलबैर्तो मोरेरा कहते हैं, "टांडेम एक्स के साथ हमारी कई चुनौतियां हैं। सबसे पहले तो फॉर्मेशन फ्लाइट की। दो सैटेलाइटों का एक दूसरे से 120 मीटर की दूरी पर साढ़े सात हजार मीटर सेंकड की गति से उड़ना भी एक चुनौती है। दोनों की घड़ियों को सिंक्रोनाइज करना भी पहली बार हो रहा है।"


दो सैटेलाइटों का फायदा यह है कि वे पहाड़ों और इमारतों के रेडियो साए से बच पाती हैं। लेकिन दो परिक्रमा पथ होने के कारण समांतर फ्लाइट मुश्किल होती है। यही वजह है कि दोनों उपग्रहों का प्रक्षेप पथ विषम होता है। टांडेम प्रोजेक्ट के प्रमुख डॉ. मानफ्रेड सिक के मुताबिक, "पहली सैटेलाइट दूसरी सैटेलाइट की इस तरह परिक्रमा करती है जैसा डीएनए फेलिक्स का पैटर्न होता है।"


पृथ्वी की मदद

जुड़वां सैटेलाइट की फ्लाइट पृथ्वी की 3-डी पिक्चर को संभव बना रही है। अलग अलग रिजॉल्यूशन के लिए अलग अलग ग्रिड है। लेकिन इसका मकसद क्या है? दुनिया भर के वैज्ञानिक इस डाटा का इस्तेमाल करते हैं। मसलन बर्लिन के निकट जर्मन जियोसाइंस रिसर्च सेंटर में। इस नक्शे में तेहरान के निकट भूजल निकालने से धंसती जमीन दिख रही है।


रडार डाटा की मदद से टोपोग्राफी और इंसानी या प्राकृतिक गतिविधियों से होने वाले नुकसान का पता लगाया जा रहा है। रडार के सिग्नलों की मदद से सिर्फ शहरों और गांवों की ही मैपिंग नहीं होती। फ्रायबुर्ग यूनिवर्सिटी के छात्र डाटा का इस्तेमाल जंगल की मैपिंग करने के लिए कर रहे हैं। वे इस बात का पता कर रहे हैं कि जंगल के खास हिस्से में पेड़ों और पत्तियों में यानि बायोमास में कितना इजाफा हुआ है।


अब तक इसके लिए वैज्ञानिकों को लेजर सर्वेइंग मशीन लेकर जंगल में जाना पड़ता था। लेकिन जल्द ही इसकी जरूरत नहीं रहेगी। अंतरिक्ष से मिलने वाला डाटा भी सही सूचना देता है। ये सूचनाएं इसलिए भी जरूरी हैं कि दुनिया भर के जंगलों में कार्बन डाय ऑक्साइड की स्टोरेज क्षमता का पता लगाया जा सके। यह पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बेहद अहम जानकारी है। और जंगल के मालिकों के लिए यह जानना जरूरी है कि उनके पेड़ किस तेजी से बढ़ रहे हैं।


सही जगह पर राहत

रडार वाली सैटेलाइट प्राकृतिक विपदा के समय में भी बहुत काम की साबित होती हैं। जर्मन एयरोस्पेस एजेंसी डीएलआर का अपना क्राइसिस कंट्रोल सेंटर है, जो फटाफट भूकंप या बाढ़ पीड़ित इलाके की तस्वीरें दे सकता है।

सैटेलाइट सूचना प्रभाग के प्रमुख डॉ। टोबियास श्नाइडरहान कहते हैं, "खासकर गंभीर बाढ़ की स्थिति में, जब आसमान पर बादल छाए होते हैं। उस समय हमें डाटा पाने के लिए रडार की जरूरत होती है क्योंकि रडार तरंगें बादलों को भेद हमेशा धरती की सतह की तस्वीर मुहैया कराती हैं। इस तरह की परिस्थितियों में हम मुख्य रूप से रडार से मिलने वाले डाटा का प्रयोग करते हैं।"


ये तस्वीरें बाढ़ग्रस्त इलाके में तैनात सैटेलाइटों के रडार डाटा की मदद से मिली हैं। उनके सिग्नलों और मौजूदा नक्शे को मिलाकर नया नक्शा बनाया जा सकता है। यहां साफ तौर पर देखा जा सकता है कि कौन से शहर बाढ़ में डूबे हैं। यहां यह भी देखा जा सकता है कि मकान तो नहीं डूबे हैं और किन सड़कों पर अभी भी गाड़ी चलाई जा सकती है और कौन डूबी हुई हैं।


इन सूचनाओं की मदद से इमरजेंसी सर्विस देने वाले कर्मियों को पता होता है कि किन इलाकों में मदद की फौरन जरूरत है, कहां लोग खतरे में हैं और कहां बाढ़ उतनी गंभीर नहीं है। ये सूचना राहतकर्मियों की सही तैनाती के लिए जरूरी है। डीएलआर ने संयुक्त राष्ट्र के मिशनों के लिए भी इस तरह नक्शे बनाए हैं। इस समय दो और उपग्रहों को कक्षा में भेजने की योजना है। उनका इस्तेमाल भूकंप, वन कटाव और रेगिस्तान के फैलने से हुए बदलावों का पता करने के लिए होगा। भविष्य को सुरक्षित बनाने में ये सूचनाएं बहुत कारगर होंगी।


स्रोत : डॉयचे वेले

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