Tuesday, October 5, 2010

मेरा कसूर क्या है

मैंने ईमानदारी से जीना चाहा
शायद यही मेरा कसूर है
मैंने देश को देश समझा न क़ि
मुठी भर लोग
मैंने इन्सां को इंसान समझा
न क़ि कोल्हू का बैल
मैंने दुनिया को वास्तव में
हसीं देखने क़ि हसरत की
शायद यही मेरा कसूर है
मैंने जाँ लिया की लोगों को
भूख से मरने का कोई अधिकार नहीं
ऐसा करने से दूसरे देशों में
बदनामी होती है भारत की
मैंने jaan लिया की मुठी भर
लोगों ने लाखों लाख करोड़ों करोड़
लोगों से मुकाबला करने के लिए
bhagwan रुपी ढाल को घड़ा है
मैंने समझ लिया की इस देश में
हाथी के dant khane ke aur
dikhane ke aur vali baat ka kaya
matlab hai




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