Saturday, November 20, 2010

जिन्दगी का सफ़र

स्कूल से आगे बढ़कर फिर
कालेज में जाना होगा इसके
सपने बहोत बार देखे थे मैंने
कोनसे कालेज में दाखिला हो
यह भी कई बार सोचा था मैंने
एक साल पहले सोचना शुरू किया
पहले दिन का पहनावा क्या होगा
हेयर स्टायल पर भी नजर डाली थी

क्या सायकिल पर ही कालेज जाना होगा

या फिर स्कूटर का जुगाड़ करेंगे

घर की हालत जुगाड़ की भी नहीं है

इसी उधेड़ बुन में गुजर जाता है

पूरा का पूरा दिन मेरा जुगाड़ पर

आखिर एक दिन पाँच सात लोग आये

आव भगत हुई मेरे से भी पूछा

कोनसी क्लास पास की है बेटी

दूसरा सवाल था कितने नंबर आये

नंबर बताये मैंने धीमे से ही सही

नजरें मुझे घूरती सी महसूस हुई

जैसे बकरे को घूरती हैं मारने से पहले

हर कसाई की नजरें और फिर हलाल

कर दिया जाता है बेचारा बकरा

मुझे क्या पता था कि मेरा भी

हलाल होने का वक्त आ गया है

हाँ एक महीने बाद ही मेरी शादी

कर दी गयी एक बेरोजगार के साथ

दो बेरोजगारों कि दुनिया के सपने

मैं नहीं देख पाई क्योंकि अँधेरे के

सिवाय कुछ दिखाई नहीं दी रहा था

भूखे घर कि आ गयी हम क्या करेँ ?

ये दिन देखने के लिए क्या छोरे

को जन्म दिया था ?

प्यार मोहबत बेहतर जिन्दगी

ये सब अतीत कि बातें थी

घर भी तंग सा दो ही कमरे

साथ में भैंस व बछिया का भी

सहवास रहता था चौबीस घंटे

समझ सकता है कोई भी कि

दो कमरों में छः सात सदस्यों के

परिवार का कैसे गुजारा होता है !

फुर्सत ही नहीं होती एक दूसरे के लिए

चोरों कि तरह मुलाकातें होती हैं हमारी

बस जीवन घिसट रहा है हमारा

एक दिन सोचा इस नरक से कैसे

छुटकारा मिले ?

मगर उसे ताश खेलने से फुर्सत कहाँ

घर खेत हाड़ तोड़ मेहनत और तान्ने

यही तो है जिन्दगी हमारी


हमारे जैसे करोड़ों युवक युवतियां हैं

कभी कभी जीवन लीला को ख़त्म

कर लेने का मन बनता है फिर

ख्याल आता है इससे क्या होगा

दो चार दिन का रोना धोना फिर खत्म

यह सिलसिला यूंही चलता रहेगा आगे

इस अँधेरे को कैसे ख़त्म किया जाये ?

कैसे रौशनी कि किरण हम तक भी

पहुँच सके यही तो यक्ष प्रश्न है

बहुत बार सोचा कई बार सोचा है

मगर रास्ता नजर नहीं आता है हमें

बस इसी कशमोकश में जीवन

किसी तरह गुजर रहा है हमारा

जीवन सरक रहा है हमारा !

पूजा पाठ बालाजी कि सेवा सब

कर के देख लिया मगर सब मन की

शांति की बात करते हैं कोई भी

रोटी और रोजगार की बात नहीं करता

आप ही बताओ क्या करेँ हम ?



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