Friday, December 31, 2010

संघर्ष कथा

संघर्ष कथा
दिसंबर 30 ,2010
सही राम
आँखिन देखी मैं कहता हूँ, सुनी सुनायी झूठ कहाय |
गाम राम की कथा सुनाऊँ , पंचो सुनियो ध्यान लगाय |
हल और बल कुदाली कस्सी , धान बाजरा फसल गिनाय|
भैंस डोलती पूंछ मारती, गैय्या खड़ी खड़ी रम्भाय |
सुबह सवेरे हाली निकलै, गर्मी सर्दी को बिसराय|
सारा दिन वो खटे खेत में , मिटटी संग मिटटी होई जाय |
चाहे धूप जेठ के चलके,चाहे कोहरा दे ठिठुराय |
उसकी धर्म मशक्कत करना, उसको इनकी क्या परवाय|
लेकिन उलटी रीति ये देखो , देऊँ आपका ध्यान दिलाय |
ये दुनिया जो गौरख धंधा , मिहनत कौड़ी हाट लगाय |
हल बैलों वाला भी भूखा , जो खेतों में अन्न उगाय|
मोटे सेठ हड़प कर जाएँ , सारा माल हाथ फैलाय |
रुखा टुकड़ा वे ना पावें, डाकू चिकनी चुपड़ी खाय |
डंगर भूखे मरते मर जाय , भुस्सा उनको मिलता नाय |
जमा फसल देकर बनिए को , कर्जदार फिर भी कहलाय |
ज्यों ज्यों ढलै उमरिया उसकी , त्यों त्यों कर्जा बढ़ता जाय |
यह चक्कर देखो होनी का, वाह फिर भी मरजाद कहाय
घर में बेटी बीस बरस की, कुर्दी की ज्यों बढती जाय |
सेठ साहब का कर्ज न उतरै , लड़की क्योंकर ब्याही जाय |
जो भी देखे लानत भेजै ,वो क्या पडै कुंए में जाय |
बेटी भारी बोझ बाप पर, माँ को औरत रही गरियाय |
पाँच हजार मांगता समधी , उसकी चिठ्ठी पहुंची आय |
लाला उसका अपना बनकर, उंच नीच सब रहा बताय |
दुनिया में मरजाद पालनी, यह मर्दों का धर्म कहाय |
खानदान को दाग लगै ना, बिटिया घर से देओं धकाय |
सारी दुनिया काल चबैना , क्यों फिर पगले तूं पछताय |
जाय कचैड़ी लाला जी संग , उसने दिया अंगूठा लाय |
अब वो नहीं भोमियां कोई , कर मजदूरी पेट चलाय |
छ छ बच्चे कुच्चे सारे , भूखे बिलख बिलख सो जाय |
अगन पेट में धधक रही है, घर का चूल्हा जलता नाय |
खेलन -खावन के दिन आये , सो बच्चे कमगर कहलाय |
हड्डी तोड़ें खून सुखावै , सँझा तक बेगार कराय |
आधी पारदी उजरत देकर , धक्का दें और छुट्टी पाय |
यह अन्याय राम का देखो ,किस किसका दूं नाम गिनाय |
बोटो बोटी नोचें उसकी , लोहू बूँद बूँद पी जाय |
पंचो यह तो एक कहानी , गाम राम की कही सुनाय |
और न जाने कितने दुखड़े , कितने लोग रहे दुःख पाय |
ढांचा यो सारा गड़बड़ है , बुन्गत इसकी समझ न आय |
सब इन्सान बराबर जन्मे , एक पेट दो हाथ कमाय |
एक तो करता ऐश महल में , दर दर दूजा ठोकर खाय |
एक उड़ावै हलवा पूरी, दूजा भूखा मर मर जाय |
यह इंसाफ कहाँ दुनिया में , सोचो पंचो ध्यान लगाय |
एक बना फिरता पंडत है, दूजा रहा चमार कहाय |
एक ही कुदरत एक ही माया ,एक तरह से जन्मे माय |
फिर कोई क्यों ठाकुर बनता , दूजा हरिजन रहा कहाय |
सबरनता का गरब नशीला , त्यौरी उप्पर को चढ़ जाय |
बुलध समझ कै चमड़ी तारै, और फिर उप्पर से गिरयाय |
जिन्दा उसको आग में झोंके , तब तक नशा नहीं थम जाय |
फिर भी उसको गाड्डी मिलती, वो मिटटी में मिलता जाय |
यह कैसा कानून राम का , यह तो नहीं इंसाफ कहाय |
बेटी , बहू,माय हरिजन की, सरेआम इज्जत लुट जाय |
छुट्टा सांड गाँव में डोलै, कोई नहीं सामने आय |
रात दिनों जो खेत जोतता , वो उसका मजदूर कहाय |
मलिक कोई और भूमि का , आनी ये जागीर बताय|
उसको नहीं पता क्या मिटटी , क्या मिटटी की गंध कहलाय |
वो बैठा है महलों अन्दर , उस तक गंध पहुँचती नॉय |
सौ रूपए के कर्ज बदले , बंधुआ सात पुश्त हों जाय |
ऐसा यह कानून राम का , ज्ञानी गुनियों ज्ञान लगाय |
सर्दी गर्मी पीठ पै झेले ,मलिक उसको रहा जुतियाय |
न्याय धर्म के नाम पै पंचो, माणस दिन दिन पिसता जाय|
मिल मजदूरों के बूते ही, चिमनी धुआं उगलती जाय |
पर एक बात सोचियो पंचो ,वो क्यों अधभूखे रह जाय |
सेठ तिजौरी भर भर गाडै , काले धान को रहा छिपाय |
मजदूरों का खून चूसता , लोहू बूँद बूँद पी जाय |
वो महलों में बैठा लेकिन उसकी पूँजी बढती जाय |
शोषण वो कर रहा मजदूर का , उसकी चर्बी बढती जाय |
वो इन्सान नहीं कोई सीधा , दीखत का वो नरम सुभाय |
आदमखोर जानना उसको, उसका दीं धर्म कोई नॉय |
झूठा उसका पोथी पत्रा, झूठे मंदिर रहा बनाय |
मिल सारी मजदूरों की है ,वो झूठा मलिक कहलाय |
मजदूरों को गली देता, हड़तालों को झूठ बताय |
छंटनी कर कर के वो इनकी , और गुंडों से रहा पिटाय|
उसके हाथ बनैले पंजे , उसको खुनी समझो भाय |
उसकी सारी पुलिस फ़ौज है ,गौरमिंट भी वही बनाय |
वो नहीं देगा बोनुस तुमको , वो नहीं रहा स्कूल खुलाय |
छंटनी कर कर लोगों की , घाटा ही घाटा दिखलाय |
उसकी खातिर मारो भूख से , उसको बात लागती नॉय |
वो चमड़ी का मौत भैंसा ,उसके सींग रहे चिकनाय |
उससे लड़ना चाहो गर तो , एक्का पक्का कर लो भाय |
उसके साथ है सारी ताकत , उसकी एक जानियो नॉय
अपनी ताकत एक जूता लो , एक साथ लेओ हाथ मिलाय |
वो खूंखार बनैला भैसा , उसे खून की गंध सुहाय |
वो रोंदेगा बस्ती को भी ,बच्चों को वो चींथत जाय |
यह संघर्ष कथा उनकी है , सुनियो पंचो ध्यान लगाय
जिनके हाथ हथोडा केवल ,दोनाली से अड़ गया जाय
सदियाँ से जो लुटते आये , और लूटना जिनका धर्म कहाय |
जिनके पसीने को गंगा का ,वे गोली में मोल लगाय |
जिनके बूते दुनिया चलती, दुनिया पै हक़ उनका नाय |
सारे दिन जो खटते पिटते, रोती उन्हें रही तरसाय |
कपडा उनको नहीं मयस्सर , दवा दारू की कौन बताय |
उस मेहनत का मौल है ,छाती में बन्दूक अड़ा य |
राय तुम्हारी क्या है ,पंचो,क्या यह नहीं अन्याय कहलाय |
धर्म की बात तुम्हीं कह देना ,लेकिन कहना ध्यान लगाय |
अन्यायी का पक्ष न लेना , पंचो से यकीन उठ जाय |
खूनखोर नरभक्षी देखा,भेद मुखौटा रहा लगाय |
पूरी कौम के ये दुश्मन हैं , इंका तो बस नफा खुदाय |
मेहनतकश का परोपकार है ,नाफखोर की क्या परवाय |
ऊपर से ये चिकने चुपड़े ,अन्दर कोढ़ रहा गन्धाय |
पूरी कौम को कोढ़ी कर दें ,इनसे पिंड छुडाओ भाय |
ये कलंक पूरी दुनिया पर , इंका नामोंनिशा मिटाय |
अब ये दुनिया है नहीं इनकी ,अब ये और बसालें जाय |
पर इन्सान जहाँ होगा ,इनकी पेश पडेगी नॉय |
पंचो मैंने गलत कहा क्या ,झूठ साँच देना बताय |
जिसने इनको जन्म दिया है, वो पग की जूती कहलाय |
बहन खिलौने की वस्तु है , उनको कोठे दिया बिठाय |
हक़ जीने का नारी मांगे ,उसके सिर को रहे जुतियाय |
इनकी यह मर्दूमी देखो , यह इंका दमखम कहलाय |
मांग करेँ जो हक़ अपने की , उसकी खिल्ली दे उडाय |
उसको झांसे दे दे कर ही अब तक उसको भोगे जाय |
नीलामी की यह वस्तु है , इनके मनकी समझें नॉय |
लेकिन पंचो सुनना तुम भी , एक बात देऊँ बतलाय |
नारी जागी है तो देखो ,अब ये हक़ छोड़ेंगी नॉय |
अब ये इनके पग की जूती , और शो पीस बनेंगी नॉय|
मर्जादों की धमकी देकर , उसको रोक सकोगे नॉय |
यह प्रतिबंध हटाना होगा , इनकी शक्ति लेओ परचाय |
शोर शराब नहीं है केवल , पक्की बात लीजियो लाय |
अब ये नहीं कोई पूजा वस्तु ,धर्म कर्म की नहीं परवाय |
एक बराबर मानव शक्ति ,एक को छोटा दिया बताय |
अब यह चालाकी नहीं होगी , सुनियो सजनो ध्यान लगाय |
शोषित पीड़ित जनता की, जो मैं कथा रहा बतलाय |
इतनी लाम्बी कथा है पंचो ,एक एक चीज सुनोगे नॉय |
ना ये किस्सा तोता मैना , ना राजा -रानी की बात |
शोषित पीड़ित जनता की ही ,मैंने आज बताई बात |
नाले के कीड़े सी दुर्गत ,मानुष छोले की हों जाय |
श्रम शक्ति के दुरूपयोग से ,बेडा कैसे पार लगाय |
मानव श्रम को बिन पहचाने , देश रसातल को हों जाय |
गाँधी उनको कम न आया ,अर्थ शाश्त्र को घुन खाय |
मैं पूछूं नेता लोगों से , पहन जो खद्दर रहे इतराय |
कुर्सी जिंका धर्म हों गयी , जनता पडों कुंए में जाय |
कब तक वो देंगे भाषण ही, कब तक वादों की भरमार |
बहुत दिनों की बात नहीं अब , मेहनतकश हों रहे त्यार |
उनके हाथ दरांती अपनी ,और हथोडा रहे उठाय |
लस्सी और कुदाली उनकी ,हाथ बसूला पहुंचा आय |
तैयारी पूरी है उनकी ,अब वो एक लेंय बनाय |
तब मैं आऊंगा और पूछूं ,अब क्यों छुपे किले में जाय |
कहाँ गयी बन्दूक दुनाली ,क्या तलवार गयी बल खाय |
फ़ौज ,पुलिस सब अपने भाई , वो भी शामिल हों जा आय |
वो दिन होगा सज्जनों अपना , वे जल्दी ही पहुंचे आय |
तब तुम सुनना लोकगीत भी , ढोल मजीरा तभी सुहाय |
सही राम

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