Monday, March 18, 2013

HARYANA KA SAMAJIK SANSKRITIK SCENARIO--2

स्वास्थ्य के क्षेत्र में और शिक्षा के क्षेत्र में बाजार व्यवस्था का लालची व दुष्ट्कारी खेल सबके सामने अब आना शुरू हो गया है । सार्वजनिक क्षेत्र में   
साठ साल में खड़े किये ढांचों को या तो ध्वस्त किया जा रहा है या फिर कोडियों के दाम बेचा जा रहा है । शिक्षा आम आदमी की पहुँच से दूर खिसकती जा रही है । स्वास्थ्य के क्षेत्र में और भी बुरा हाल हुआ  है । गरीब मरीज के लिए सभी तरफ से दरवाजे बंद होते जा रहे हैं । लोगों को इलाज के लिए अपनी जमीनें बेचनी पद रही हैं । आरोग्य कोष या राष्ट्रिय बीमा योजनाएं ऊँट के मुंह  में जीरे के समान हैं । उसमें भी कई सवाल उठ रहे हैं । 
आज के दिन व्यापार धोखाधड़ी में बदल चुका  है । यही हाल हमारे यहाँ की ज्यादातर राजनैतिक पार्टियों का हो चुका है । आज के दिन हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा ने दुश्मनी का रूप ले लिया है । हरियाणा में दरअसल सभ्य भाषा का विकास ही नहीं हो पाया है । लठ की भाषा का प्रचलन बढ़ा है । भ्रम व् अराजकता का माहौल बढ़ा है । लोग किसी भी तरह मुनाफा कमाकर रातों रात करोड़पति से अरब पति बनने  के सपने देखते हैं । मनुष्य की मूल्य व्यवस्था ही उसकी विचारधारा होती है । मनुष्य कितना ही अपने को गैर राजनैतिक मानने की कोशिश करे फिर भी वह अपनी जिंदगी  में मान मूल्यों का निर्वाह करके इस या उस वर्ग की राजनीति कर रहा होता है । विचार धारा का अर्थ है कोई समूह ,समाज या मनुष्य खुद को अपने चारों ओर की दुनिया को, अपनी वास्तविकता को कैसे देखता है । इस सांस्कृतिक क्षेत्र के भिन्न भिन्न पहलू हैं । धर्म, परिवार , शिक्षा , प्रचार माध्यम , सिनेमा ,टी वी ,रेडियो ,ऑडियो ,विडिओ ,अखबार , पत्र --पत्रिकाएँ , अन्य लोकप्रिय साहित्य , संस्कृति के अन्य लोकप्रिय रूप जिनमें लोक कलाएं ही नहीं जीवन शैलियों से लेकर तीज त्यौहार , कर्मकांड , विवाह , मृत्यु भोज आदि तो हैं ही ; टोन टोटके , मेले ठेले भी शामिल हैं । इतिहास और विचारधारा की समाप्ति की घोषणा करके एक सीमा तक भ्रम अवश्य फैलाया जा सकता है मगर वर्ग संघर्ष को मिटाया नहीं जा सकता । यही प्रकृति का नियम भी है और विज्ञानं सम्मत भी । इंसान पर निर्भर करता है कि वह मुठठी  भर लोगों के विलास बहुल जीवन की झांकियों को अपना आदर्श मानते हुए स्वप्न लोक के नायक और नायिकाओं के मीठे मीठे प्रणय गल्पों में मजा ले,मानव मानवी की अनियंत्रित यौन आकांक्षाओं को जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता के रूप में देखें , औरत की देह को जीवन का सबसे सुरक्षित क्षेत्र बना डालें या अपने और आम जनता के विशाल जीवन और उसके विविध संघर्षों  को आदर्श मानकर वैचारिक उर्जा प्राप्त करे । समाज का बड़ा तबका बेचैन है अपनी गरिमा को फिर से अर्जित करने को। कुछ जनवादी संगठन इस बेचैनी को आवाज देने व जनता को वर्गीय अधरों पर लामबंद करने को प्रयास रत हैं । 
         आने वाले समय में गरीब और कमजोर तबकों , दलितों, युवाओं और  खासकर महिलाओं का अशक्तिकरण तथा इन तबकों का और भी हासिये पर धकेला  जाना साफ़ तौर पर उभरकर आ रहा है। इन तबकों का अपनी जमीं से उखड़ने ,उजड़ने व् तबाह होने का दौर शुरू हो चुका है और आने वाले समय में और तेज होने वाला है । हरियाणा में आज शिक्षित,अशिक्षित,और अर्धशिक्षित युवा लड़के व लड़कियां मरे मरे घूम रहे हैं । एक तरफ बेरोजगारी की मार है और दूसरी तरफ अंध उपभोग की लम्पट संस्कृति का अंधाधुंध प्रचार है । इनके बीच में घिरे ये युवक युवती लम्पटीकरण का शिकार तेजी से होते जा रहे हैं । स्थगित रचनात्मक उर्जा से भरे युवाओं को हफ्ता वसूली , नशाखोरी , अपराध और दलाली के फलते फूलते कारोबार अपनी और खिंच रहे हैं । बहुत छोटा सा हिस्सा भगत सिंह की विचार धारा से प्रभावित होकर सकारात्मक एजेंडे पर इन्हें लामबंद करने लगा है । ज्ञान विज्ञानं आन्दोलन ने भी अपनी जगह बनाई है ।
        प्रजातंत्र में विकास  का लक्ष्य सबको समान  सुविधाएँ और अवसर उपलब्ध करवाना होता है । विकास के विभिन्न सोपानों को पर करता हुआ संसार यदि एक हद तक विकसित हो गया है तो निश्चय ही उसका लाभ बिना किसी भेदभाव के पूरी दुनिया की पूरी आबादी को मिलना चाहिए परन्तु आज का यथार्थ ही यह है कि एस नहीं हुआ । आज के दौर में तीन खिलाड़ी नए उभर कर आये हैं (पहला डब्ल्यू टी ओ विश्व  व्यापर संगठन , दूसरा विश्व बैंक व तीसरा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ), खुली बाजार व्यवस्था के ये हिम्मायती दुनिया के लए समानता की बात कभी नहीं करते बल्कि संसार में उपलब्ध महान अवसरों को पहचानने और उनका लाभ उठाने की बात करते हैं , गड़बड़ यहीं से शुरू होने लगती है । बहुराष्ट्रीय संस्थाओं का बाजार व्यवस्था पर दबदबा कायम है । आज छोटी बड़ी लगभग 67000 
बहुराष्ट्रीय संस्थाओं की 1,70,000 शाखाएं विश्व के कोने कोने में फ़ैली हुई हैं । ये संस्थाएं विभिन्न देशों की राजनैतिक , सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों पर भी हस्तक्षेप करने लगी हैं । ध्यान देने योग्य बात है कि इन सबके केन्द्रीय कार्यालय अमेरिका ,पश्चिम यूरोप या जापान में हैं । इनकी अपनी प्राथमिकतायें हैं । बाजार वयवस्था इनका मूल मन्त्र है । हरियाणा को भी इन कंपनियों ने अपने कार्यक्षेत्र के रूप में चुना  है । गुडगाँव एक जीता जागता उदाहरन  है । साइनिंग गुडगाँव तो सबको दिखाई देता है मगर सफरिंग गुडगाँव को देखने को हम तैयार ही नहीं हैं । 
       आज के दौर में बहार से महाबली बहुराष्ट्रीय निगम और उनका जगमगाता बाजार और भीतर से सांस्कृतिक फासीवादी ताकतें समाज को अपने अपने तरीकों से विकृत कर रही हैं । इस   बाजारवाद ,कट्टरवाद  की मिलीभगत जग जाहिर है । इनमें से एक ने हमारी लालच ,हमारी सफलताओं की निकृष्ट इच्छाओं को सार्वजनिक कर दिया है और दुसरे ने हमारे मनुष्य होने को और हमारे आत्मिक जीवन को दूषित करते हुए हमें एक हीन मनुष्य में तब्दील कर दिया है । यह ख़राब किया गया मनुष्य जगह जगह दिखाई देता है जिसमें धैर्य और सहिष्णुता बहुत कम है और जिसके भित्तर की उग्रता और आक्रामकता दुसरे को पीछे धकेल कर जल्दी से कुछ झपट लेने ,लूट लेने और कामयाब होकर खिलखिलाने की बेचैनी को बढ़ा  रही हैं ।  इस समय में समाज के गरीब नागरिकों को अनागरिक बनाकर अदृश्य हाशियों की ओर फैंका जा रहा है । उनके लिए नए नए रसातल खुलते जा रहे हैं जबकि समाज का एक छोटा सा मगर ताकतवर हिस्सा मौज मस्ती का परजीवी जीवन बिता रहा है । समाज के इस छोटे से हिस्से के अपने उत्सव मानते रहते हैं जो की एक कॉकटेल पार्टी की संस्कृति अख्तियार करते जा रहे हैं । बाकि हरियाणवी समाज की जर्जरता बढाने के साथ साथ इस तबके के राग रंग बढ़ते हैं क्योंकि संकट से बचे रहने का , मुसीबतों को दूर धकेलने का तात्कालिक उपाय यही है । यह लोग बाजार में उदारतावाद और संस्कृति में संकीर्णतावाद व  पुनरूत्थानवाद  के समर्थक हैं । आजकल प्रचलित हरियाणवी सीडियों में परोसे जा रहे वलगर गीत नाटकों को यही ताकतें बढ़ावा दे रही हैं । असल में हमारा समाज पाखंडों और झूठों पर टिका हुआ अनैतिक समाज है । इसलिए हमें जोर जोर से नैतिकता शब्द का उच्चारण करना जरूरी लगता है । वस्तुत हमारे समाज में लाख की चोरी करने वाला यदि न पकड़ा जाये तो पकडे जाने वाले एक रुपये की चोरी करने वाले की तुलना में महान  बना रह सकता है । 

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