Monday, July 14, 2014

आज अमरीका और आर एस एस के लक्ष्य एक क्यों हैं ?


तेल के लालच में अमरीका ने सभ्यताओं  संघर्ष के सिद्धांत का प्रतिपादन किया और उसका प्रचार किया ।  में आर एस एस हिन्दू राष्ट्र की स्थापना  करना चाहता है जिससे कि जाति और लिंग के पूर्वाधुनिक संबंधों को पुनः स्थापित किया जा सके । अपनी इन नीतियों को लागू करने में आर एस एस को जहाँ   भी कठिनाई हुई , उसने इस्लाम का दानवी  करण किया । इस प्रकार आर एस एस की विचार धारा औपनिवेशवादियों और साम्राज्य वादियों के अनुकूल है । सामाजिक स्तर पर आर एस एस उन समूहों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्होंने  औपनिवेशिक शक्तियों से पिछले कई वर्षों से सम्बन्ध स्थापित किया हुआ था  । आजकल साम्राज्य वाद की चापलूसी से आर एस एस पुनः आश्वश्त है क्योंकि  अमरीका का प्रभुत्व लोकतान्त्रिक प्रक्रिया और सामाजिक रूपांतरण  हद तक रोके रखेगा और आर एस एस का सामाजिक आधार यही चाहता है । इसलिए यह आकास्मिक नहीं है कि ज्यादातर अमरीकी नीतियों और आर एस एस की नीतियों में परस्पर समानता होती है । कभी कभी स्वदेशी की बात करना अपवाद स्वरूप ही होता है । 
अपने साम्प्रदायिक मकसद को हासिल करने के लिए आर एस एस अपने देश में मुसलमानों का दानवीकरण कर रहा है । अमरीका तेल के लालच के लिए सभ्यता का संघर्ष का नाम देकर इस्लामिक देशों पर हमला कर रहा है । इसने इस्लाम को सभ्यता के लिए खतरे के रूप में प्रचारित और प्रसारित किया है । 
साम्राज्य वाद को  भौतिक संसाधनों  के अपने लालच के लिए हमेशा किसी न किसी आवरण की जरूरत रहती है । सदियों पहले  शक्तियों ने पहले सभ्यता के विस्तार की विचारधारा के नाम पर  उपनिवेशों को गुलाम बनाया ,  उन्हें  क्रूरता पूर्वक लूटा । कुछ वर्ष पहले अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इन ताकतों द्वारा "स्वतंत्रता और लोकतंत्र  के बचाव" को एक आवरण में प्रस्तुत किया गया । इसी के नाम पर अमरीका ने वियतनाम और चिल्ली पर हमला किया । इस विचारधारा के तहत जेहादियों को अफगानिस्तान में लड़ने के लिए तैयार किया गया । सोवियत संघ  ध्वस्त के बाद आजादी और स्वतंत्रता के बचाव की अपील भी धुँधली हो गयी । इसलिए पश्चिमी सभ्यताओं ने इस्लामी सभ्यताओं के दुष्परिणामों को नए रूप में प्रस्तुत किया । इसी संदर्भ में जार्ज बुश, ओबामा  और सुदर्शन की विचारधारा में साम्य  है । 








No comments:

Post a Comment