Saturday, January 1, 2011

राम बान दवाई

घरों में बुढ़ापा ठिठुरता रहा
मजारों पे चादर चढाते रहे
बिकाऊ जो खुद हैं वही लोग
तेरी मेरी कीमत लगाते रहे ||
कपड़ों से दाग मिटने वाले और डीटरजेंट बेचने वाले को यदि अस्पताल में घुसा दिया जाये तो वह पोशाक देखना पसंद करेगा जबकि मौत से जूझ रहे मरीज को जरूरत आक्सीजन की है
दरअसल मानवीय प्राथमिकताओं के भयावह असंतुलन से नजरें चुराकर ही आप आज की दुनिया में तथाकथित वैश्वीकरण , उदारीकरण , व निजीकरण की हिमायत कर सकते हैं
सांस्कृतिक व आर्थिक खाई को पाटने की रामबन दवाई बताई जा रही हैं वे हैं तीन शब्द --- वैश्वीकरण ,उदारीकरण व निजीकरण |इन दवाईयों ने रिएक्सन कर दिया है और यह करना ही था | यह रिएक्सन क्यों हुआ ? इस रिएक्सन के लक्षण क्या हैं ? इस रिएक्शन पर कैसे काबू पाया जा सकता है ?

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