Saturday, November 6, 2010

जुलूस ----अश्वनी चौधरी
सुनो
कितना शोर उठता है
उस शहर से
जहाँ बसा करते थे ऐसे लोग
जो गूंगे समझे जाते थे
देखो
कितनी आसानी से नापते हैं
राह को कदम उनके
जिनकी आँखों पार पड़े थे परदे
देखो
कितने जोशीले हैं लोग
उठो--- देखो
आ गया है जुलूस
तुम्हारे घर के सामने
उठो
और शामिल हो जाओ
इस जुलूस में
कहीं ऐसा न हो
कि जुलूस निकलने के बाद तुम
दब कर रह जाओ
उसी गर्द के नीचे
जिसे तुम झाड़ नहीं पा रहे हो
उस डर के कारण जिसे बसा दिया है
तुम्हारे दिल में
उन मुठी भर लोगों ने
जिनके खिलाफ
काले झंडे लिए
जा रहे हैं
ये लोग
प्रयास पत्रिका
जन -फरवरी १९८३ अंक
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