Monday, February 13, 2023

शेरो शायरी

 शेरो शायरी

1
गर्मी के मौसम में भी ओला पड़ने लगा है,
जिसका पेट भरा वो बेवजह लड़ने लगा है.
मेरा पानी उतरा देखकर मेरे किनारे घर मत बसा लेना,
मैं समंदर हूं लौटकर वापस जरूर आऊंगा.
2
सोचियेगा… काँच पर पारा चढ़ा दो तो आईना बन जाता है,
और किसी को आईना दिखा दो तो उसका पारा चढ़ जाता है.
3
अपने नेता जी जनता को हंसाने लगे है,
अपनी आशिकी जानवरों से जताने लगे हैं,
इंसानों की हालत जानवरों से भी बदतर है
नेता जी ये बात बताने से कतराने लगे है.
4
एक रोटी चोरी हो जाएँ
तो आप लड़ने को तैयार हो जाते है,
ये नेता आपके घर को लूट रहे है
आप कैसे चुप रह जाते है.
5
नक्शा लेकर हाथ में बच्चा है हैरान,
नेता रुपी दीमक कैसे खा रहा है हिन्दुस्तान.
6
जनता फरेब खा जमीन पर सो गई,
नेता जी उबालते रहे पत्थर तमाम रात.
7
नेता विकास का एजेंडा लेकर आते हैं,
और पार्टी के एजेंडे के विकास में लग जाते है.
8
बेरोजगारी और ट्विटर पर नेताओं की तारीफ़
करने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है.
9
बादाम भिगोये थे याद्दाश्त बढाने के लिए,
और अब याद नहीं आ रहा रखे कहाँ है.
10
भारत में चुनाव दो चरणों में होता है,
पहले नेता जी जनता के चरणों में
फिर जनता नेता जी के चरणों में.
11
अब किसी को भी नजर आती नहीं कोई दरार,
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार,
रोज अखबारों में पढ़कर यह ख्याल आया हमें,
इस तरफ आती तो हम भी देखते फस्ले-बहार.
12
इन्साफ जालिमों के हिमायत में जाएगा,
ये हाल है तो तो कौन अदालत में जाएगा.
13
सरकार को गरीबों का ख्याल कब आता है?
चुनाव नजदीक आ जाए तो मुद्दा उछाला जाता है.
14
मुर्दा लोहे को औजार बनाने वाले,
अपने आँसू को हथियार बनाने वाले,
हमको बेकार समझते हैं सियासतदां
मगर हम है इस मुल्क की सरकार बनाने वाले.
15
चोर, बेईमान और भ्रष्ट नेताओं की क्यों करते हो बात,
लोकतंत्र की ताकत है जनता में, दिखला दो इनकी औकात.
16
मूल जानना बड़ा कठिन हैं नदियों का, वीरो का,
धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता हैं रणधीरो का,
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
“जाति-जाति” का शोर मचाते केवल कायर, क्रूर.
17
जहाँ सच हैं, वहाँ पर हम खड़े हैं,
इसी खातिर आँखों में गड़े हैं.
18
नेता की बातों में सच्चाई का अभाव होता है,
झूठ बोलना तो इनका स्वभाव होता हैं.

नेता भी क्या खूब ठगते हैं,
ये तो 5 साल बाद ही दिखते हैं.
19
नजर वाले को हिन्दू और मुसलमान दिखता हैं,
मैं अन्धा हूँ साहब, मुझे तो हर शख्स में इंसान दिखता हैं.
20
मैं अपनी आँख पर चशमाँ चढ़ा कर देखता हूँ
हुनर ज़ितना हैं सारा आजमा कर देखता हूँ
नजर उतना ही आता हैं की ज़ितना वो दिखाता है
मैं छोटा हू मगर हर बार कद अपना बढ़ा कर देखता हूँ
21
लोकतंत्र जब अपने असली रंग में आता हैं,
तो नेताओं की औकात का पता चल जाता हैं.
22
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था,
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था.
23
राजा बोला रात है
राणी बोली रात है
मंत्री बोला रात है
संत्री बोला रात है
यह सुबह सुबह की बात है
24
सभी एक जैसा ही लिखते हैं, बस मतलब बदल जाते हैं,
सरकारे वैसे ही चलती हैं, बस वजीर-ए-आजम बदल जाते हैं.
25
गंदी राजनीति का यह भी एक परिणाम हैं,
बीस रूपये एक बोतल पानी का दाम हैं.
26
मुझको तमीज की सीख देने वाले,
मैंने तेरे मुँह में कई जुबान देखा है,
और तू इतना दिखावा भी ना कर अपनी झूठी ईमानदारी का
मैंने कुछ कहने से पहले अपने गिरेबां में देखा है.
27
सियासत की रंगत में ना डूबो इतना,
कि वीरों की शहादत भी नजर ना आए,
जरा सा याद कर लो अपने वायदे जुबान को,
गर तुम्हे अपनी जुबां का कहा याद आए.
28
राजनीति में अब युवाओं को भी आना चाहिए,
देश को ईमानदारी का आईना दिखाना चाहिए.
29
न मस्जिद को जानते हैं,
न शिवालो को जानते हैं,
जो भूखे पेट हैं,
वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.
30
क्या खोया, क्या पाया जग में,
मिलते और बिछुड़ते मग में,
मुझे किसी से नही शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में.
31
सवाल जहर का नहीं था, वो तो मैं पी गया,
तकलीफ लोगों को तब हुई, जब मैं फिर भी जी गया.
32
हमारी रहनुमाओ में भला इतना गुमां कैसे,
हमारे जागने से, नींद में उनकी खलल कैसे.
33
इस नदी की धार में ठंडी हवा तो आती हैं,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो हैं.
34

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