Tuesday, February 14, 2023

दो शब्द जगदीश सांगवान

 दो शब्द

मानवीय विवेक और तर्कशीलता के अभाव मैं मानवीय सभ्यता संभव नहीं थी क्योंकि सभ्यता का विकास विश्व को जानने एवं नियंत्रित करने के, इंसान के अथक, अनवरत प्रयास से हुआ - ऐसा उसनै तर्क आधारित विचारों और क्रियाकलापों के सहारे किया। अरस्तू पहला विचारक था जिसने हमको  तर्क की, विवेक की विधि बताई। विज्ञान का एक ताकत के रूप में उद्भव गैलिलियो के काल मैं हुआ। विवेक अर तर्कवाद का उद्देश्य मानव के दिमाग पर छाये अंधविश्वासां के जाले दूर करना है। ये मांग करता है कि सारे तरह के विश्वास अर आस्थाएं बुद्धि और विवेक पर आधारित होने चाहिएं और बुद्धि और विवेक का मतलब है कि हम सारी बातों पर विवेक और तर्क के हिसाब से विचार करें। ये अंधविश्वास के बुतों को नष्ट करने का तर्कशील रास्ता है।
   अनुसन्धेय, जांच पड़ताल-रहित, पूछताछ रहित, सूफीवाद (रहस्यवाद), रूमानी भावुकतावाद, संस्कारवाद, चमत्कार आदि के बुतों का खात्मा वैज्ञानिक जीवन पद्धति करती है। दो हरफी बात है वो सब कुछ जो खुद को तर्क और धैर्यपूर्ण जांच पड़ताल के सामने असेध समझता है उसको वैज्ञानिक चेतना धराशायी करने का काम करती है। इस हमारे समाज मैं स्वार्थी तत्वों ने अंधविश्वासों को  स्थाई बनाया और नये-नये अंधविश्वासों को जन्म दिया। मानव समाज को तब तक सभ्य नहीं बनाया जा सकता जब तक, धार्मिक कट्टरता, पारम्परिक अर रूढ़िवादी विश्वासों और आस्थाओं से उसका संबंध विच्छेद नहीं हो जाता। इंसान को सभ्य बनाने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानव में जो कुछ भी उदात्त है अर बढ़िया है उसे अपनाना होगा।
असल मैं अंधविश्वास है क्या?
पहली बात कि प्रमाण के होते होए भी विश्वास न करना और या प्रमाण के ना होते हुए भी विश्वास करना अंधविश्वास के खाते में आता है।
दूसरी बात किसे एक रहस्य का स्पष्टीकरण किसे दूसरे रहस्य के माध्यम से प्रस्तुत करना। इस बात मैं विश्वास करना कि संसार का कारोबार दैवयोग अथवा सनकी तरीके से चलता आ रहा है।
तीसरी बात है कार्य-कारण के बीच के वास्तविक संबंध की अवहेलना करना।
चौथी बात विचार, आकांक्षा, उद्देश्य, रूपरेखा को प्रकृति के अस्तित्व का कारण बनाना। पांचमी बात कि यह विश्वास करना कि बुद्धि ने पदार्थ की उत्पत्ति की है और बुद्धि ही इसका संचालन करती है।
बल को पदार्थ से अलग मानना अथवा पदार्थ को बल से अलग मानना।
छठी बात चमत्कारों, मंत्र-तंत्र और भाग्य, सपनों और भविष्य वाणियों में विश्वास करना।
सातमी बात अलौकिक मैं विश्वास करना।
ये अंध विश्वास अज्ञानता की नींव पर टिका हुआ है, धार्मिक कट्टरवाद इसकी आधी स्वता होती है और दुराशा इसका गुम्बद होता है। अंधविश्वास अज्ञान का शिशु होता है और कष्टों का जन्मदाता। आम तौर पर हरेक दिमाग मैं अंधविश्वास का कुछ ना कुछ अंश पाया जाता है। बर्तन धोते वक्त किसी औरत के हाथ से बर्तन धोणे वाला कपड़ा गिर जाये  तो वो इसका मतलब निकालती है - कोए आणे वाला है। कपड़े के धरती पर गिरने और मेहमान के आणे के बीच कोई संभव होने योग्य संबंध नहीं है। गिरा हुआ कपड़ा उन लोगां के मन में जो वहां हाजिर नहीं हैं मुलाकात की इच्छा उत्पन्न नहीं कर सकता। हजारों लोग शुभ अर अशुभ दिनों, अंकां, शकुन, राशि तथा मणि एवं कीमती पत्थरों मैं विश्वास करते हैं। बहोत से लोग शुक्रवार को अशुभ मानेंगे तै दूसरे शनिचर को अशुभ मानेंगे। इसी तरह अनेक लोगों का विश्वास है कि तेरह पुरुषों को इकट्ठे होकर भोजन नहीं करना चाहिये। अगर तेरां का अंक एक खतरनाक अंक है तो छब्बीस का अंक तो दोगुणा खतरनाक हुआ। हम अपने चारों तरफ नजर मारकर देखें कि कितने अंधविश्वास बिखरे पड़े हैं और आजकल तो इनको सुनियोजित ढंग से बढ़ावा दिया जा रहा है।
अंधविश्वासों के खिलाफ वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने के रास्ते हिंदुस्तान में मुश्किल किये जा रहे हैं।
ऐसे समय में जगदीश सांगवान जी के द्वारा अंधविश्वासों के खिलाफ पुस्तक लिखने का काम बहुत ही सामयिक और महत्वपूर्ण है। अंधविश्वास के बहुत से पक्षों पर बहुत ही सरल ढंग से लिखा गया है। 17 के लगभग विषयों पर विस्तार से अपने अनुभवों को शामिल करते हुए लिखने का बहुत अच्छा प्रयास किया है। मुझे विश्वास है कि यह किताब आम जन को अंधविश्वासों के बारे जानने समझने और  इनसे मुक्ति दिलवाने में अहम भूमिका निभाएगी।
रणबीर सिंह दहिया।

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