Monday, February 6, 2023

 पुस्तिका का संभावित मसौदा।

     *लर्निंग सेंटर परिप्रेक्ष्य।
      *लर्निंग सेंटर संचालन एक अनुभव।
      *लर्निंग सेंटर चुनौतियां : सांगठनिक और वैचारिक।
      *लर्निंग सेंटर और समाज सुधार का काम।
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                    लर्निंग सेंटर परिप्रेक्ष्य
           हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति समाज में व्याप्त भेदभाव के खिलाफ एक वैकल्पिक विचार और व्यवस्था की परिकल्पना करती है । इन विकल्पों के निर्माण में भांति-भांति की गतिविधियां विभिन्न कार्य क्षेत्रों के माध्यम से आयोजित की जा रही हैं।  मूल उद्देश्य मनुष्य के गरिमामय जीवन की वापसी का विचार है । ऐसा विमर्श करते वक्त यह ध्यान रखा जाता है कि एक सहज प्रक्रिया और जन भागीदारी करते हुए मूल समस्याओं के स्रोतों का ज्ञान हासिल किया जाए।  इन जानकारियों और उपलब्ध संसाधनों और परिस्थितियों के हिसाब से कार्यों का चुनाव किया जाता है।
क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में साक्षरता अभियानों के माध्यम से ना केवल निरक्षरता और अंधकार के खिलाफ एक जन अभियान का ठोस अनुभव प्राप्त किया है, वरन् बहुत सारी सकारात्मक प्रक्रियाओं से भी अवगत हुए । अनेकों तरह की संभावनाओं से भी परिचय हुआ है । नई - नई जानकारियां हासिल हुई हैं। बहुत सारी चुनौतियां भी  दरपेश आई । ज्ञान विज्ञान आंदोलन का यह पुख्ता विचार है कि साक्षरता और शिक्षण कार्य सतत रूप से ताउम्र किए जाने वाले लक्ष्य हैं।  अंतिम व्यक्ति तक न्यूनतम ज्ञान के बाद अगली सीढ़ी चढ़ते जाना है। ऐसा नहीं है कि एक समय के अभियान से निरक्षरता खत्म हो गई या सार्वभौमिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया गया है। बल्कि उदारीकरण, निजीकरण और व्यापारीकरण की नीतियों की वजह से 1991 के बाद हमारे देश -प्रदेश में आजादी के बाद के लक्ष्यों से ठीक उल्टी दिशा पकड़ ली है । अतः ज्ञान-विज्ञान आंदोलन ने यह महसूस किया है कि शिक्षा की गुणवत्ता के साथ - साथ  सार्वभौमिक शिक्षण लक्ष्य प्राप्ति तो दूर की बात हो गई है। अब तो शिक्षा के संस्थागत ढांचे को ही तहस - नहस करने का रास्ता सरकारों द्वारा अख्तियार कर लिया गया है। शिक्षा के मौलिक अधिकार  (R T E - 2009) के ठीक विपरीत क्रियान्वयन शुरू हो गया है। इसमें  युवा लड़कियों के लिए परिस्थितियां और भी कठिन हो गई हैं । लिंग भेद और सामाजिक सुरक्षा के कारणों से स्कूलों और कालेजों में दाखिला लेना वर्जित सा बना दिया गया है। बाजारीकरण की नीतियों की वजह से ग्रामीण परिवेश की बड़ी आबादी इसलिए स्वाध्याय से वंचित हो गई है कि घर में जगह उपलब्ध नहीं है और बाजार उसकी पहुंच से बाहर कर दिया गया है।
इस पृष्ठभूमि में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अक्षर ज्ञान जैसी न्यूनतम जरूरत को आज भी महसूस किया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस (8 सितंबर 2020) को यह आह्वान अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क ने किया कि हमें भिन्न तरीकों से अधूरे लक्ष्य की प्राप्ति हेतु काम करना चाहिए, जिसमें साक्षरता और शिक्षा (सभी तरह की शिक्षा ) क्षेत्र में दखल देना है। अभी क्योंकि हम हरियाणा (लर्निंग सैन्टर संचालन) में इसके शुरुआती दौर में ही हैं । सैद्धांतिक तौर पर समझ बनने के बाद विभिन्न जगहों पर थोड़ा-थोड़ा कार्य शुरू किया है । समझ यह है कि बदली हुई परिस्थितियों में साक्षरता क्लासों, पुस्तकालयों और जन वाचन केंद्रों ( जनचेतना केंद्रों )के बीच भी एक प्रक्रिया और भी जरूरी है , जिसमें नए सिरे से क्लास का स्वरूप, पुस्तकालय की भूमिका और जन चेतना केंद्र का संचालन समाहित है।
अब पुस्तकालय केवल उपलब्ध साहित्य का अध्ययन भर नहीं रह गया है ,बल्कि अलग-अलग स्तर पर आवश्यकताओं की  पूर्ति करने का केंद्र बने,  यह मांग उभर  कर आई है। स्कूली और उच्च शिक्षा के विषयों का स्वाध्याय केंद्र और प्रतियोगिताओं की तैयारी का केंद्र तो बने ही , इससेे कहीं बड़ा लक्ष्य मनुष्य में सामाजिकता पैदा करना है। सामाजिक कार्यकर्ताओं में संवेदनशीलता पैदा करने का प्राथमिक केन्द्र है। संवादहीनता के वातावरण में संवाद से समाधान की ओर बढ़ने का पहला कदम है। ‍
बहुत से और भी कारणों और प्रभावों से वंचना की परिस्थितियों से जूझने के लिए नई नई जरूरतों को पूरा करने के लिए लर्निंग सेंटरों का संचालन विकल्प पैदा करने की संभावना रखता है । विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास की संभावनाएं भी खोल सकता है । ऊर्जावान युवा लड़के - लड़कियों के लिए अपना जीवन संवारने और सामाजिक भूमिका में रचनात्मक काम करने का अवसर मुहैया करवाने की क्षमता भी रखता है। नए औजारों और विचारों से लैस होकर विकेंद्रीकरण प्रक्रियाओं के माध्यम से अविश्वास और निष्क्रियता को तोड़ते हुए , आशा जनक माहौल निर्मित करते हुए , नवजागरण की प्रक्रियाओं को सघन और ठोस किए जा सकने की संभावना भी खोलता है।
हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति के परिप्रेक्ष्य में युवा लड़के - लड़कियों की भूमिका को बहुत अच्छे से रेखांकित किया गया है । दोराहे पर खड़े युवा भारत को बाजारीकरण की नीतियों और विधियों से सेक्स ,हिंसा और नशाखोरी में धकेलते हुए हमारे देश और समाज को बर्बाद किया जा रहा है । इसका विकल्प तैयार करने में लर्निंग सेंटर आधारभूत शुरुआत और निर्माण की क्षमता रखता है ।
ऐतिहासिक तौर पर हमारे देश और दुनिया में भी विभिन्न नामों और प्रक्रियाओं से संचालित ऐसे केन्द्र ,भेदभाव मुक्त समाज व्यवस्था कायम करने में सक्षम हैं। पुस्तक, पुस्तकालय, पुस्तकालय संचालक (वॉलिंटियर )और संगठित समुदाय के  सहयोग से उपलब्ध विपुल साहित्य का सदुपयोग जनहित में किया जा सकेगा।
निष्कर्ष रूप में यह कहना ठीक ही रहेगा की सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए हम थोड़े और ठोस अनुभवों के आधार पर विस्तार की समझ बना रहे हैं।आज वैकल्पिक व्यवस्था ही समाज सुधार का आधारभूत विचार है।
लर्निंग सेंटर कंवारी, हिसार के कुछ अनुभव
गंभीर संकट जो समाज में है , वही स्थिति कमोबेश गांव कंवारी में भी है। आदमी को घोर निराश और पंगु बना दिया है। सामने बैठकर टुकुर-टुकुर देखने को मजबूर किया गया है। राजनीतिक, आर्थिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक गलबे के तंबू के नीचे, लीक से हटकर काम करना बेहद मुश्किल हो गया है। लेकिन सिक्के के दो पहलू भी होते हैं। प्राकृतिक रूप से भी यह सच बात है कि" रात का अंधेरा कब रोक पाया है सवेरा"  इस उम्मीद के साथ ठोस संज्ञान लेते हुए संगठन के साथियों ने 23 मार्च , 2021 को शहीद भगत सिंह की शहादत के दिवस पर सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया। युवाओं की पहचान - भगत सिंह की शिक्षा के बल पर वैचारिक मजबूती और संघर्ष (चहुमुखी वर्तमान संकट के आधार पर ) की सोच को प्रस्तुत किया गया। लगभग 8 माह की उठापटक के बाद लर्निंग सेंटर शुरू कर पाए । कोई ठोस परिकल्पना और अनुभव के अभाव में शुरू करना इसलिए जरूरी समझा गया कि जितना जानते हैं और समझते हैं, उसी के सहारे जनसाधारण के बीच संवाद करते हुए , हम पहल खुद समझें वो सारी परिघटनाएं नोट करें। साथ साथ दैनिक कार्य निरंतर रूप से करते चले जाएं। अपनी बात साझा करते रहें। दो तरह से कामों की शुरुआत की गई। प्रथम स्कूली शिक्षा में दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम में , जो कमजोरी आड़े आ रही थी, उसको दूर करने में मदद की जाए। दूसरा,  हमने स्कूली कक्षा में शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच संबंध को समझा।  यह पाया कि विद्यार्थी सहज नहीं है, इस औपचारिक शिक्षा ग्रहण की प्रक्रिया में।  इस पर फोकस तरीके से काम शुरू किया गया। प्रत्येक विद्यार्थी को आत्म अभिव्यक्ति हेतु मंच प्रदान किया गया। यह भाव पैदा किया कि प्रत्येक विद्यार्थी (लड़का और लड़की दोनों ) व ( गरीब व अमीर दोनों) बहुत कुछ सीख सकते हैं और बड़े से बड़ा काम कर सकते हैं।  यानी उन बाधाओं को दूर किया गया , जो उनके सीखने में आड़े आ रही थी। उदाहरण के तौर पर मनोवैज्ञानिक तौर पर कमजोर होने की हीन भावना को खत्म किया गया। इस प्रक्रिया और सेंटर संचालन में हम खुद संगठन के साथ ही बहुत कुछ सीख और जान रहे थे। नई-नई कल्पनाएं जन्म ले रही थी। कामों की श्रृंखला बन रही थी। स्थानीय संगठन के साथियों में रचनात्मकता और सहकारिता का भाव पनप रहा था। अभिभावकों को उम्मीद बंध रही थी कि कुछ हो सकता है। सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ रही थी। सहायता के रूप में कुछ जन समर्थन मिलने लगा था। किताबें,बोर्ड, दरी और कुर्सियां आदि सामग्री  मदद के रूप में  मिलनी शुरू हो गई। लर्निंग सेंटर संचालन में देखभाल का जिम्मा गांव के लोगों ने लेना शुरू किया । शौचालय का निर्माण इस सैंटर में उन्होंने खुद किया। औपचारिक स्कूली ढांचे से संवाद बढ़ने लगा । संगठन के साथियों ने स्कूल में जाकर अनेक गतिविधियां करना सुनिश्चित किया। ठोस रूप में कुछ विषयों की औपचारिक क्लास  भी लेनी शुरू कर दी। इस अनुभव के आधार पर हम कह सकते हैं कि जितना हमने सोचा था उससे कहीं ज्यादा की संभावनाएं मौजूद हैं। संगठन और समाज की कमजोरियों और खूबियों की पहचान की जा सकी है । उजले पक्ष को उभारा जा सकता है। हम अपने वैचारिक पक्ष को इस लर्निंग सेंटर के माध्यम से स्थापित कर सकते हैं । इसके अलावा भी संगठन निर्माण की प्रक्रियाओं को सहज भाव से आगे बढ़ाया जा सकता है। भेदभाव की दुनिया में दूरियां कम करने की ओर बढ़ चले हैं। इस विश्वास के सहारे नेतृत्व विकसित करने का ठोस अनुभव भी हमने हासिल किया है ।अब हम यह कह सकने  की स्थिति में है कि वैचारिक और सांगठनिक निर्माण की महत्वपूर्ण उत्पादन इकाई, लर्निंग सेंटर बन सकता है। वैकल्पिक स्थितियों को निर्मित किया सकता है। एक अनुभव यह भी आया है कि इस तरह की स्थापना के लिए व्यक्ति विशेष का प्रबंधन होना चाहिए । मिशनरी रूप में इस काम को करने के लिए उपलब्ध हो। स्थायित्व प्रदान करने के लिए इस तरह के साथी की पहचान और उसकी उपलब्धता सुनिश्चित की जानी अनिवार्य हो गई है। अन्यथा यह सैंटर भेदभाव वाली व्यवस्था के प्रहारों को झेल नहीं पाएगा।
एक समय के बाद तो कुछ  साथी प्रशिक्षित भी हो जाएंगे तो वे इस अद्भुत कार्य को निरन्तर चला लेंगे,यह भी इसमें गुंजाइश है। एक अन्य काम यह भी किया गया है कि एक सूची सर्वेक्षण के माध्यम से प्राप्त की  गई है  , जिसमें शिक्षक वालंटियर्स और संचालन सहयोगी मिले हैं।
इस अनुभव को सरल और सहज कहानी के रूप में आत्मसात करने से पहले उन सभी चुनौतियों को भी रेखांकित करना आवश्यक है। हमारी अपनी समझ इस तरह के सेंटरों के बारे में स्पष्ट हो।  समाज की स्थिति को स्थानीय तौर पर सभी जगह अलग-अलग समझा जाए। यह प्रत्येक गांव में भी भिन्न होगी।
हम प्राथमिक कामों में इसे प्रथम स्थान पर रखें। सामाजिक स्तर पर विरोधाभासों को समझें। नवनिर्माण पर केंद्रित होकर आगे बढ़े। इस प्रक्रिया को सहज और सरल तरीकों से निरंतर बनाए रख सके तो उम्मीद करते हैं कि बहुत कुछ बदलने के क्षमताएं भी पैदा होंगी। नई चेतना और नई दुनिया संभव है।
आओ इसे साकार करें !

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