Monday, July 7, 2014

शिक्षा का बाजार और विश्व बैंक

शिक्षा का बाजार और विश्व बैंक
सन 1992 में शिक्षा नीति का संशोधित रूप प्रस्तुत करते हुए संसद ने तीसरी बार "समान स्कूल व्यवस्था " के प्रति अपनी कटिबद्धता जाहिर की । लेकिन इस संशोधित नीति ने भी एक ओर चंदेक चुने हुए विद्यार्थियों के लिए अति खर्चीले नवोदय विद्यालय और दूसरी और करोड़ों बल मजदूरों के लिए रात्रि कालीन औपचारिकेतर शिक्षा केन्द्रों की दोहरी नीति को आगे बढ़ाया ।  केवल इतना ही नहीं वरन 1994 से विश्व बैंक द्वारा पोषित जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डी.पी.ई.पी.) के जरिये स्कूल विहीन गावों के लिए वैकल्पिक विद्यालय के नाम पर स्कूलों की एक और श्रेणी खड़ी की जा रही है । दरअसल ,शिक्षा एक बुनियादी हक़ के  रूप में नहीं , बल्कि एक आकर्षक धंधे के रूप में विकसित हो रही है । अब इसमें अनिवाशी भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनिया भी अपनी जगह बना रही हैं । इस माहौल में लुडलो कासल क्रं 2 के द्वारा अपनी बस को खचाखच भरकर मुनाफा कमाने की बात स्वाभाविक ही दिखती है , चूंकि शिक्षा एक व्यवसाय के रूप में स्वीकारी जा चुकी है । -----शिक्षा में बदलाव पेज --158  

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