Wednesday, February 8, 2023

सुदीप बनर्जी

 स्वर्गीय कवि सुदीप बनर्जी ने यह कविता भोपाल गैस त्रासदी के संदर्भ में लिखी थी।आज भी यह कितनी प्रासंगिक है,जैसे आज पर हो:


इतनी इतनी बड़ी मौतों के बाद भी

इतनी बड़ी चुप्पी, ऐसा पहरावा

ऐसा चालचलन


 उड़ते हुए आना, उड़ते हुए चले जाना

 कुछ आंकड़ों के मांसल टुकड़े बीन कर चले जाना


 मैंने देखा है ऐसों को अक्सर

 सब बेखबर है़ंं

अपने-अपने धंधों में मशगूल


 इतनी तबाही के बाद इतना बड़बोलापन 

 इतने जन्मोत्सव, इतने इश्तेहार 


हम सब समकालीन हैं, इन सबके हमराह 

जरायमपेशे में या चश्मदीद

खामोशी के गुनाहगार 


पर और भी हैं जो अभी शाया नहीं सड़कों पर

पूरी तरह हरकत में तो नहीं पर जमींदोज भी नहीं 


अभी कोई नहीं सुन रहा है

कोई नहीं सुन रहा है उन्हें

उनका जोर- जोर से चुप रहना 

धीरे-धीरे चिल्लाना।

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