Wednesday, February 8, 2023

जन - विज्ञान आंदोलन क्यों?

 जन - विज्ञान आंदोलन क्यों?

पिछले 200 सालों से संसार का चमत्कारी और तेज गति से रूपांतरण हो रहा है।  भौतिक और वनस्पति विज्ञान में हो रही नई नई खोजों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों द्वारा इनके इस्तेमाल ने संसार में बहुत सी जानलेवा बीमारियों मसलन चेचक,प्लेग व मलेरिया का खात्मा संभव बना दिया है। चिकित्सा जगत में नई खोजों के द्वारा अन्य बहुत सी बीमारियों( जिनको आज से 50 साल पहले दैवी प्रकोप के कारण माना जाता था ) का इलाज ढूंढ लिया गया है। रेल, मोटर गाड़ी, आधुनिक समुद्री जहाज और हवाई जहाज के आविष्कार ने दुनिया में दूर-दूर बसे महाद्वीपों के देशों को एक दूसरे के बहुत नजदीक ला दिया है। यंत्र विज्ञान और बुनियादी विज्ञान की तरक्की ने मनुष्य के लिए यह संभव बना दिया है कि वह पहले के मुकाबले अब प्राकृतिक शक्तियों को और अधिक कारगर ढंग से साध सकें। भले ही यह धातु के संदर्भ में हो चाहे, बाढ़ को नियंत्रित करने का मसला हो , चाहे उर्जा के दूसरे स्वरूप पैदा करने की बात हो या जमीन की उत्पादकता बढ़ाने की योजना हो । अब वैज्ञानिक तकनीकी क्रांति के चलते, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स ,जैविक विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान की तरक्की होने से, मानवता आगे बढ़ने के लिए एक लंबी छलांग लगाने की तैयारी में है।

      मगर आमतौर पर देखने में आया है कि विज्ञान और शिल्प विज्ञान बहुसंख्यक लोगों के हितों को ध्यान में रखकर विकसित नहीं हुआ है। इस संदर्भ में विकास की प्रक्रिया का दिशा निर्देशन भी जनता के व्यापक हिस्से के हितों की अनदेखी करता हुआ प्रतीत होता है। विज्ञान और शिल्प विज्ञान पर कुछ धनी व ताकतवर लोगों का प्रभुत्व और इन्हीं लोगों द्वारा निजी मुनाफा कमाने के लिए विज्ञान के एक तरफा इस्तेमाल ने संसार में बहुत गंभीर परिणाम और खतरे खड़े कर दिए हैं । मुनाफे के लिए मनमाने ढंग से जंगलों की कटाई, वातावरण का प्रदूषण एवं व्यापक स्तर पर औद्योगिक प्रदूषण एवं नतीजतन बहुत से लोगों के स्वास्थ्य को खतरा, ये सभी इस प्रकार के निजी मुनाफा कमाने की ललक का नतीजा हैं। आज विज्ञान और यांत्रिकी  क्षेत्र में तरक्की के कारण मिले फलों का रसास्वादन बी इन्हीं लोगों के द्वारा

किया जा रहा है

क्योंकि उत्पादन के साधनों एवं मिलों के मालिक हैं ।

   हमारे भाई बहनों का बहुत बड़ा हिस्सा इस संसार में अभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा, सिर ढांपने के लिये मकान, पहनने के लिए कपड़े तथा यहां तक कि दो जून के भोजन से वंचित है। विडम्बना यह है कि इस सबके बावजूद विज्ञान की उपलब्धियों को शक्तिशाली मिलिट्री-उद्योग प्रतिष्ठानों द्वारा मानव -घाती हथियार बनाने के काम में लाया जा रहा है। इस प्रक्रिया के चलते इन निजी आद्योगिक प्रतिष्ठानों को और अधिक फलने फूलने का मौका मिल रहा है। 


अभी तक विज्ञान के स्तर पर असीम विकास के बावजूद विभिन्न देशों के बीच विद्यमान विषमताएं बरकरार हैं  क्योंकि मुट्ठी भर पूंजीवाद देश वैज्ञानिक ज्ञान तथा भौतिकी संपदा के बड़े हिस्से पर अपना प्रभुत्व जमाए बैठे हैं । इन देशों ने हाल ही के दौर में आजाद हुए विकासशील या अविकसित देशों को आर्थिक स्तर पर अभी भी गुलाम बनाया हुआ है। इस प्रक्रिया को जारी रखने के प्रयास साफ नजर आने लगे हैं।

    अगर जिन समस्याओं की चर्चा की गई है इन समस्याओं ने हमारे अपने भारत देश के अंदर बहुत ही तीव्र रूप धारण  कर लिया है । यदि हम संस्कृति और सभ्यता के नजरिए से देखें तो हमारे भारत देश को की एक गौरवशाली परंपरा रही है। भारत के वैज्ञानिकों पर हम वास्तव में गर्व कर सकते हैं। आर्य भट्ट, भास्कर, ब्रह्मगुप्त, सुश्रुत आदि वैज्ञानिक पैदा करने का गौरव भारत को मिला। इसी प्रकार विज्ञान की भिन्न भिन्न शाखाएं - मसलन एस्ट्रोनॉमी, हिसाब तथा चिकित्सा शास्त्र भी उल्लेखनीय हैं। लेकिन उसके बाद का दौर काफी कड़वी सच्चाई लिए हुए है।

आज हम दो शताब्दियों से चलते आ रहे गुलामी के फंदे से निकल भर पाए हैं ।  हमारे पिछड़े पन के लिए जहां-जहां औपनिवेशिक राज, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लूट एवं पश्चिमी देशों की लूट महत्वपूर्ण कारण हैं वहीं हमारी आंतरिक सामाजिक संरचना में (जो कि ब्रिटिश शासन काल के दौर में कायम की गई) बचे उस दौर के अवशेषों की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। मौजूदा सामाजिक संरचना के कारण ही आज के ऐतिहासिक दौर में पश्चिम की औद्योगिक  क्रांति से शुरू हुई विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में तरक्की में भारतवर्ष की हिस्सेदारी अपूर्ण रही है तथा मौजूदा सामाजिक संरचना विज्ञान और तकनीक के व्यापक फैलाव में अवरोध का काम कर रही है।

       आज वक्त का तकाजा है कि लोगों की समस्याएं सुलझाने के लिए भारतवर्ष में आधुनिक विज्ञान और तकनीक का क्रमबद्ध ढंग से इस्तेमाल किया जाए। हमें यह ध्यान रखना होगा कि लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए जो संघर्ष किया जा रहा है उसके साथ साथ उन बाहरी तथा अंदरूनी ताकतों के खिलाफ भी जन-सघर्ष चलाया जाए जो हमारे देश की वैज्ञानिक और तकनीकी तरक्की में बाधा बने हुए हैं। इस जन ज्ञान विज्ञान आंदोलन के कर्णधारों को निजी मुनाफे की होड़ में पैदा होने वाले वातावरण के प्रदूषण व वन पर्यावरण जैसे पहलूओं को भी ध्यान में रखकर  चलना होगा।

      इन व्यापक  उद्देश्यों की पूर्ति के लिए देश में कई लोकप्रिय विज्ञान आंदोलन पिछले दो-तीन दशकों में उभर कर आए हैं। इन जन-विज्ञान आंदोलनों ने यह सवाल आत्मसात किया है कि विज्ञान  से किस प्रकार लोगों का जीवन स्तर सुधारा जा सकता है । साथ ही यह भी सवाल उठाया है कि अभी तक विज्ञान और तकनीक के अंदर छिपी असीमित संभावनाओं का विकास करके हमारे देश में यह काम क्यों नहीं हो पाया है ? ये लोकप्रिय आंदोलन सिर्फ इन सवालों के विश्लेषण पर ही केंद्रित नहीं हैं बल्कि लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने का प्रयत्न भी कारगरता से कर रहे हैं । लोगों ने इस चेतना का विकास किया जा रहा है कि विज्ञान और तकनीक के तीव्र विकास के कारण जनसाधारण का जीवन सुधारने की संसार के स्तर पर असीम संभावनाएं पैदा हुई हैं । अपने काम करने के दौर में ही इन आंदोलनों में 'जन विज्ञान आंदोलनों' या दोनों या 'पीपल्ज साइंस मूवमेंट्स' का नाम अर्जित किया है क्योंकि इन सभी आंदोलनों का सरोकार  सैद्धांतिक व व्यावहारिक स्तर पर मुख्य रूप से 'लोगों के लिए विज्ञान' रहा है । ये जन विज्ञान आंदोलन पूर्ण सामाजिक प्रक्रिया के धरातल पर (मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, सिंचाई, जमीन का सार्थक उपयोग, परिवहन, वातावरण एवं वन) सक्रिय  हुए हैं । कहने का अर्थ यह है कि हरेक सामाजिक घटना से इनका वास्ता है क्योंकि आज कोई भी मानव क्रिया कलाप विज्ञान और तकनीक के प्रभाव से अछूती नहीं है।  वर्तमान सामाजिक ढांचे के तथा विज्ञान और तकनीक को लोगों के लिए इस्तेमाल करने के मुद्दे के बीच क्या अंतर संबंध है, यह जन -विज्ञान आंदोलनों को मालूम है , उन्हें कोई भ्रम नहीं है। इस आंदोलन को मालूम है कि भारत में यह भिन्न-भिन्न वर्गों के लोगों पर अलग-अलग प्रभाव डालता है। यहां यह भी साफ करना जरूरी है कि यह जन विज्ञान आंदोलन पश्चिमी देशों द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त करके चलने वाले तथाकथित समाजसेवी संगठनों से भिन्न है।

        इन जन- विज्ञान आंदोलनों ने बहुत से मुद्दे उठाए हैं।  इनमें से ज्यादा चर्चित मुद्दे- नदियों के पानी के प्रदूषण का सवाल, व्यवसाय से जुड़ी बीमारियों का सवाल, खतरनाक एम प्रतिबंधित दवाओं का सवाल, लोगों की स्वास्थ्य नीति, वनों की कटाई, तर्कसंगत औद्योगिकरण आदि रहे हैं । जहां भी विभिन्न वर्गों के हितों को लेकर इन विषयों पर कोई संघर्ष उभरा है तो जन साधारण के हितों की तरफदारी की है। इनमें से बहुत से संगठन अपने अस्तित्व के लिए सरकारी सहायता या दूसरी संस्था पर निर्भर नहीं करते । 

  सन 1987 में 5 भारत जन विज्ञान  जत्थों के इर्द गिर्द हुई कार्रवाहियों के चलते , इस तरह के पहले से काम कर रहे लोकप्रिय विज्ञान आंदोलनों को एक दूसरे के नजदीक आने का मौका मिला--- इनमें से कुछ का तो बहुत ही लम्बा अनुभव भी है । इस कार्यक्रम के दौरान भारत के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक 2 अक्टूबर 1987 से 7 नवंबर 1987 तक विभिन्न गतिविधियां आयोजित की गई।

       इसके पीछे केरल साहित्य परिषद जोकि पिछले 25 साल से इस विज्ञान जन आंदोलन को केरल में चलाए हुए है, जैसे संगठनों की प्रेरणा ने काफी सक्रिय भूमिका निभाई है। कुछ ऐसे नए संगठन  भी हैं जो हैं तो नए मगर जिन्होंने बहुत से अग्रणी वैज्ञानिकों की भागीदारी इन जन विज्ञान आंदोलनों में सुनिश्चित की है । विज्ञान और समाज के अंतर संबंधों एवं विज्ञान नीति को लेकर बहुत ही महत्वपूर्ण सवालों को रेखांकित किया है। कई संगठन  ऐसे भी हैं जो बिल्कुल नए हैं। लेकिन जन विज्ञान आंदोलनों की एक खासियत यह है कि इनके संगठनकर्ता और नाभि बिंदु बहुत ही समर्पित व्यक्ति हैं । जनसाधारण तथा वैज्ञानिकों ने सारे भारत के भिन्न भिन्न हिस्सों में भारत जन विज्ञान जत्थे का बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया। इस जत्थे ने इन जन आंदोलनों में विद्यमान एकरूपता को ही रेखांकित किया है। अगले पड़ाव की ओर यह काम अपने आप में एक महत्वपूर्ण कदम है । इस प्रक्रिया ने विभिन्न ग्रुपों  के बीच एक  वार्तालाप की शुरुआत की है। सूचनाओं, विचारों तथा अनुभवों का आदान-प्रदान आरंभ हुआ है।

       

    इस जन विज्ञान आंदोलन की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक उपलब्धि यह भी है कि थियेटर के माध्यम से विज्ञान का संदेश बहुत सशक्त ढंग से लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। इस आंदोलन ने लोक शैलियों के अंदर प्रचलित विकृत सरोकारों को तिलांजलि देकर इन लोक शैलियों के अंदर विद्यमान उस लोके तत्व को पुनः बहाल करने की शुरुआत की है जिसमें मेहनत कर जनता की समस्याओं को पुन: परिभाषित किया जा रहा है । आंदोलन ने समझा है कि उपयुक्त विषयों को उठाना ही काफी नहीं है, वह रूप जिसमें उसकी अभिव्यक्ति होती है समान रूप से महत्वपूर्ण है।

       इस जत्थे के दौरान एक अन्य रोमांचकारी अनुभव इस आंदोलन में 'खेल खेल में विज्ञान' प्रणाली के माध्यम से हासिल किया है। यह एक वास्तविकता है कि बच्चों को कठिन से कठिन वैज्ञानिक सिद्धांत भी  इन सिद्धांतों पर बने हुए सस्ते एवं साधारण खिलौनों के माध्यम से रूचिकर ढंग से सिखाया जा सकता है। इसके साथ ही विभिन्न विषयों पर पोस्टर प्रदर्शनी, स्लाइड शो एवं वीडियो फिल्म जैसे माध्यमों का भी सफल प्रयोग इस जन विज्ञान आंदोलन ने करके दिखाया है।

    


        इस आंदोलन ने राष्ट्रीय एकता के साथ अपना संबंध जोड़ा है क्योंकि सच्चाई को ढूंढने के वैज्ञानिक दृष्टिकोण में जो व्यापकता तथा सार्वभौमिकता निहित है वह इसकी संरचना में समाहित है। इसी के कारण आज के दौर में संकीर्ण, गैर तर्कसंगत तथा प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोण के मुकाबले विज्ञान एक सार्वभौमिक, तर्क संगत तथा धर्मनिरपेक्ष व मानवतावादी रूझान एवं विचार का हिमायती है । उदाहरण के लिए विज्ञान हमें बताता है कि जहां तक विभिन्न जातियों में नस्लों के मनुष्यों में प्रवाहित खून का सवाल है , वह खून सभी में एक समान है, इन सब के खून में कोई भिन्नता नहीं है। वैज्ञानिक सोच एवं विचार इस प्रकार प्रमाण तर्क एवं सिद्धांत के आधार पर हमें जात-पात, नस्लवाद,रूढ़िवाद व धार्मिक कट्टरता के बंद व अंधेरे गलियारों से बाहर निकालने में मदद करता है ।

   यह उपलब्धि भी इसी जन आंदोलन की है कि इसने प्रोफेसर उदगांओंकर (टाटा इंस्टीट्यूट मुंबई )श्री एम. पी. परमेश्वरन , इंजीनियर(केरल सहित्य परिषद) दिनेश अबरोल,डी रघुनन्दन वैज्ञानिक (दिल्ली साइंस फोरम), तथा सुकन्या अगारो (कैंसर अनुसन्धान संस्थान बम्बई) जैसे हजारों वैज्ञानिकों को यह सोचने पर मजबूर किया है कि विज्ञान के लिए वास्तव में कुछ करने के लिए प्रयोगशालाओं में कार्य करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इस संदेश को जन विज्ञान के माध्यम से जन जन तक पहुंचाना भी बहुत आवश्यक है कि"ज्ञान का समस्त भंडार जनता की धरोहर है।" विज्ञान कोई सिद्धांत अथवा सूत्र नहीं है जिसे किताबों से रटकर याद किया जाये। यह जीवन के प्रति दृष्टिकोण है जिसमें व्यावहारिक अमल की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए बच्चों को प्रयोग स्वयं करने का ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलना बहुत आवश्यक है। विज्ञान एक खेल की तरह सीखा जा सकता है, जिससे उत्साह और आनंद मिले। इसके लिए शिक्षा में नवोदय स्कूलों वाला परिवर्तन नहीं बल्कि बुनियादी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। मगर यह परिवर्तन अपने आप नहीं आएगा । यह तभी सम्भव है जब हम , हमारे शिक्षक, अभिभावक और छात्र यह निर्णय लें कि ऐसा होना चाहिए।

          आने वाले दौर में जन विज्ञान आंदोलन को भारत जन विज्ञान जत्थे के  दौर में उभरकर आए सहमत मुद्दों के आधार पर आगे बढ़ते जाना है । जन विज्ञान आंदोलन देश के पैमाने पर एक सशक्त आंदोलन के रूप में उभर रहा है।

         अपने उद्देश्य में उन तमाम चीजों के साथ इन बातों को मुख्य रूप से अपने व्यवहार का हिस्सा बनाकर अग्रेषित करना है 

* विज्ञान और तकनीक के विकास के कारण पैदा हुई समाज विकास की संभावनाओं को लोगों के सामने करके दिखाना 

* इस आवश्यकता पर बल देना कि अपना भविष्य बनाने के लिए लोगों की भागीदारी विज्ञान व तकनीकी नीतियों के निर्धारण में बढें ताकि लोगों का सामूहिक संभव हो पाए 

* लोगों को इतना चेतन करना कि वह समझ सकें कि विज्ञान व तकनीक के विकास व इनके गलत उपयोग के कारण पैदा होने वाले हानिकारक परिणामों का कारण विज्ञान का विकास नहीं अपितु हमारे समाज की आर्थिक सामाजिक संरचना में है 

* जनसाधारण तथा वैज्ञानिकों तक यह बात पहुंचाई जानी चाहिए कि वैज्ञानिकों और तकनिशियनों  का एक सामाजिक दायित्व भी है कि उन्हें जनसाधारण की आशाओं के अनुरूप इस दायित्व को पूरा करना है ।

* इस बात की आवश्यकता पर जोर देना कि भारत का स्वतंत्रता विकास हो (आत्म निर्भरता  की ओर बढ़े।) इसके लिए  उपलब्ध साधनों  के विकास के बारे में भी विचार करना होगा ।

* इस विज्ञान (जो कि मानवता की हमारी बहुमूल्य धरोहर रहा है ) का इस्तेमाल एकता के हथियार के रूप में विघटनकारी ताकतों (जो कि जात-पात , इलाके या भाषा का बुर्का ओढ़ती हैं और विदेशी आर्थिक मदद का दामन थामती हैं तथा देश की एकता को तार-तार कर देना चाहती हैं के खिलाफ किया जाए।

       कोई भी आंदोलन अपने उद्देश्यों  को कुछ खास नारों के रूप में रूपांतरित करता है। जन विज्ञान आंदोलन ने भी संघर्ष के दौरान अर्जित नारे किए हैं ।

* लोगों के लिए विज्ञान 

* देश के लिए विज्ञान 

* आत्मनिर्भरता के लिए विज्ञान 

* राष्ट्रीय एकता के लिए विज्ञान 

* ज्ञान के लिए विज्ञान 

* मूलभूत आवश्यकताओं के लिए विज्ञान * भोजन के लिए विज्ञान 

* कपड़ों के लिए विज्ञान 

* सबको स्वास्थ्य के लिए विज्ञान 

      यह उपयुक्त वक्त है मुक्ति संघर्ष के लिए निर्भरता तथा गुलामी से मुक्ति, अज्ञानता से मुक्ति, अंधविश्वास से मुक्ति, सांप्रदायिक माहौल से मुक्ति।

   यह जन विज्ञान आंदोलन आत्मनिर्भरता का आंदोलन बने साक्षरता का आंदोलन बने और राष्ट्रीय एकता का आंदोलन बने।

   हम इक्कीसवीं शताब्दी   में एक ऐसे देश के रूप में नहीं जाना चाहते जिसमें :-

* दुनिया के सबसे ज्यादा अनपढ़ लोग रहते हैं।

* दुनिया के सबसे ज्यादा भूखे लोग रहते हैं। 

* लोग एक दूसरे के (भाई बहन )के खून से सने हैं। 

* देश की स्वतंत्रता तथा आत्मसम्मान को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास गिरवी रख दिया गया हो ।

* हमें निश्चित करना होगा कि---

'हम गरीबी और शोषण का खात्मा करके ही दम लेंगे'

यदि हम में लगन है तो रास्ता भी मिलेगा और मंजिल भी।

यदि हम में इच्छा शक्ति है तो  हम कर सकते हैं। हमें सोचना चाहिए । आज  हमारे लिए समय है जब हम ,आप, सब मिलकर सवाल उठाएं, बहुत से सवाल और बार-बार उठाएं- साइंस क्या है?.... मेहनत है 

मेहनत क्या है?.... दौलत है 

दौलत किस की?... जनता की 

तो साइंस भी हो ?...जनता की

रणबीर सिंह दहिया 

1989 

    

         

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